एक व्यक्ति था तो शरीर से हट्टा-कट्टा, पर अपने को निर्धन कहकर भीख माँगता रहता था। एक बुद्धिमान ने उससे पूछा— "तुम्हारे पास इतनी संपदा मौजूद है, फिर क्यों भीख माँगते हो?" भिखारी ने उलटकर कहा— "मेरे पास संपदा कहाँ है?"
बुद्धिमान ने उससे पूछा— "शरीर के अंग-अवयव के प्रत्यारोपण का विज्ञान अब निकल आया है। सभी अंगों का मुँह माँगा मोल मिल सकता है। इतनी कीमत तो मैं ही देने को तैयार हूँ, अधिक मिल जाए तो तुम्हारा भाग्य।"
दोनों हाथ तीस-तीस हजार, दोनों पैर दस-दस हजार, आँख पचास हजार, नाक पंद्रह हजार, दिल एक लाख, गुर्दे पचास हजार। बोलो— "इनमें से तुम क्या बेचने को तैयार हो?" भिखारी बेचने को कुछ भी तैयार न हुआ, पर उसे एक नई दृष्टि मिली कि मेरे पास इतना बहुमूल्य शरीर है। उसके सभी अंगों का यदि पूरी तरह सही सदुपयोग किया जाए तो किसी प्रकार का अभाव नहीं रह सकता।
भिखारी का दृष्टिकोण बदला तो वह नए उत्साह से तत्परतापूर्वक परिश्रम करने लगा और थोड़े ही दिनों में सुसंपन्न बन गया।