मनुष्य शरीर में ही देवोपम उपलब्धियाँ (Kahani)

November 1988

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भारद्वाज ने चलने से इंकार कर दिया और मुझे मनुष्यों के बीच ही जीने मरने दे ताकि सत्य सत्य तक पहुँचाने वाला ज्ञान निरन्तर अर्जित कर सकूँ। संयम साध सकूँ और सेवा साधना का संतोष प्राप्त करता रहूं।

देवदूतों का आग्रह अस्वीकार कर दिया गया और महर्षि ने जन्म मरण का सिलसिला जारी रखा। मनुष्य शरीर में ही वे देवोपम उपलब्धियाँ प्राप्त करते हैं।


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