दीप चाहिए ऐसे

November 1988

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दीप चाहिए ऐसे, जो मावस को करदें पूनम। दीप चाहिए ऐसे, जिनकी बाती सदा रहे नम॥

जितनी हो सामर्थ्य, बहायें हम प्रकाश की धारा। तम हरने में लग जाये, जीवन सम्पूर्ण हमारा॥

खिले, उषा बन, अंधकार के घर मनवा दें मातम। दीप चाहिए ऐसे, जो मावस को करदे पूनम॥

हो प्रकाश ऐसा जो अन्दर भी उज्ज्वलता भर दे। बचे न तमस् किसी कोने में, अन्तर भासित करदे॥

दीप चाहिए ऐसे, कि बने सूरज का परचम। दीप चाहिए ऐसे, जो मावस को करदें पूनम॥

इन दीपों का स्नेह सूत्र हो शाश्वत और अनश्वर। बुझे न ज्योति कभी, चाहे आये तूफान भयंकर॥

हर घर-हर आँगन हर देहरी, हो प्रकाश का आलम। दीप चाहिए ऐसे, जो मावस को करदें पूनम॥

कुछ मनुष्य भी जलें दीप की भाँति-ज्ञान फैलाएँ इस प्रकाश से लोग, अंधेरा अज्ञान का मिटाएँ॥

तो इस जग का हाहाकार स्वतः हो जाएगा कम। दीप चाहिए ऐसे, जो मावस को करदें पूनम॥

*समाप्त*


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