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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 2
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November 1988
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हम झंझट में तब पड़ते हैं जब आत्म संतोष की बात छोड़कर, दूसरों को प्रसन्न करने के फेर में पड़ते हैं।
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Page Titles
अन्तर्ज्योति को प्रदीप्त रखें!
आत्मज्ञान से देवत्व की प्राप्ति
अपरिमित सामर्थ्य का स्वामी है मनुष्य
सतयुगी गरिमा को प्रतिभाएं जीवन्त करेंगी!
योगत्रयी का मर्म एवं विधि व्यवस्था
मनुष्य शरीर में ही देवोपम उपलब्धियाँ (Kahani)
परोक्ष जगत के अस्तित्व को स्वीकारना ही पड़ेगा!
विचित्र विलक्षण यह सृष्टि
Quotation
त्रिविध भव बंधन एवं उनसे मुक्ति
सहिष्णुता से हृदय जीता!
मानवी गरिमा से जुड़ी सभ्यता-सुसंस्कारिता
मिथ्या प्रदर्शन-संकट को आमंत्रण
भाव संवेदनाओं की गंगोत्री सूखने न पाए
आत्म विश्वास की महती शक्ति सामर्थ्य
लय व तालबद्ध है-मानव का जीवनक्रम
Quotation
सुपात्र कौन?
सदैव जागरुक रहें!
पितृ-पक्ष में ब्राह्मण भोजन (Kahani)
मनुष्य पर्यावरण से जुड़े तो व्यक्तित्व का बिखराव रुके!
एकान्त सेवन की तपश्चर्या
आत्मिकी का प्रवेशद्वार ध्यानयज्ञ
नवयुग की संभावनाएं-लेखमाला-1 - भ्रान्तियों के घटाटोप में रह रहे हम सब!
नवयुग की संभावनाएं-लेखमाला-4 - आ रहा है एकता और समता का नवयुग
नवयुग की संभावनाएं- लेखमाला-5 - भव्य भवन का छोटा मॉडल!
युग संधि-महापुरश्चरण प्रयोजन और प्रयास
VigyapanSuchana
दीप चाहिए ऐसे
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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