आत्म विश्वास की महती शक्ति सामर्थ्य

November 1988

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मन से हारा व्यक्ति आमतौर से हारता है पर जिसे अपनी जीत पर पूरा विश्वास है वह देखता है कि अपने में इतनी क्षमता का भण्डार भरा पड़ा था जिसे कभी जाना पहचाना नहीं गया और वैसा सोचने का भी अवसर नहीं आया। वस्तुतः मनुष्य का मनोबल ही उच्च स्तरीय वैभव है। उसी के सहारे लोग साधारण से असाधारण बनते हैं और कम योग्यता होते हुए भी कथित समर्थ कहे जाने वालों के कान काटते हैं। आत्म विश्वासी कछुआ अस्थिर मन वाले खरगोश से बाजी मार ले गया था यह सर्वविदित है।

अपने आपको दीन-हीन कमजोर मानने वालों का अनायास ही मनोबल गिरा रहता है। वह आज की अपेक्षा कल को अधिक अच्छा बनाने की बात सोच तक नहीं पाता। कहते है कि जो अपनी सहायता आप नहीं करता उसकी सहायता करने के लिए ईश्वर भी आगे नहीं आता है। भ्रूण जब आवश्यक शक्ति अर्जित कर लेता है तो बाहर निकलने का प्रयत्न करता है। कठिनाइयों से जूझने का नाम ही “प्रसव पीड़ा” है। इसके बाद ही कभी बालक का जन्म संभव होता है। यदि वह अत्याधिक दुर्बल हो और बाहर आने का पुरुषार्थ न अपनाए तो कदाचित उसे सही स्थिति में जन्म लेने का अवसर ही न मिले। अण्डा जब खोखले के भीतर पकता है और बाहर निकलने की आवश्यकता अनुभव करता है तो छिलके को तोड़ने की भीतर से ही शक्ति निकालता है। अण्डे में दरार पड़ती, हलचल होती और चूजा बाहर निकल आता है। आत्मविश्वास और पराक्रम की यह शिक्षा जन्म से पहले ही मिल चुकी होती है। ताकि उसे जीवन भर भुलाया न जाय और कठिनाई से निबटने तथा प्रगति पथ पर अग्रसर होने के लिए हर पल ध्यान में रखा जा सके। ऐसी ही मनःस्थिति में स्वतंत्र निर्णय बन पड़ते है। अपनी स्थिति के अनुरूप अभिष्ट प्रयोजन के लिए साहस भरे कदम उठाते बन पड़ते है जिनमें हर मौलिक क्षमता का अभाव है वे दूसरों का मुँह ताकते रहते है। अवसर आकर उन्हें स्वयं गोदी में उठाएँ, सफलता छप्पर फाड़कर आँगन में आ टपके, इसी का इन्तजार करते रहते है। ऐसी हतप्रभ मनोभूमि वाले या तो निराश होकर भाग्यवादी बन जाते हैं या फिर शेखचिल्ली जैसे इस प्रकार के सपने देखते रहते हैं, जिनका वास्तविकता के रूप में विकसित होने का कभी अवसर आता ही नहीं। तार में बिजली होने पर बल्ब जलते और पंखे घूमते है। पर यदि बिजली गुल हो जाय तो न पंखे चलते हैं और न बल्ब जलते है। आत्म विश्वास एक प्रकार की बिजली है, जो मनुष्यों की अनेक विशेषताओं को उभारता और प्रस्तुत क्षमताओं को जगाकर इस योग्यता बनाता है कि व्यक्ति कुछ महत्वपूर्ण कार्य कर से और अपने क्रिया-कलापों से अनेकों को प्रभावित करके उन्हें प्रतिभावान बनाने में समर्थ हो सके। समझना चाहिए कि मनुष्य में आधी क्षमता शरीर और कौशल के साथ जुड़ी होती है और शेष आधी आत्मा विश्वास पर अवलम्बित रहती है।

आत्म विश्वास आत्म गौरव को विकसित करता है और अपने अनुरूप मनःस्थिति एवं परिस्थिति बनाकर रहता है। भूमि की उर्वरता और बीज की सशक्तता मिलकर जिस अंकुर को उगाते हैं उसमें अपनी निज की सशक्तता भरी रहती है और उसके सहारे पौधा, झाड़ तथा वृक्ष बनने में बहुत दिन लगते है। एक दिन का अंकुर विकास क्रम पर ठीक प्रकार चलते हुए फूलों, फलों से लदा सघन छाया और विशाल कलेवर वाला वृक्ष बन जाता है। विकास का यही क्रम उन पर भी लागू होता है जो आत्म विश्वास के धनी होते हैं। वे न तो देय परिस्थितियों में पड़े रह सकते है और न सामान्य जनों जैसे निर्वाह उपार्जन तक सीमित जीवन जी पाते हैं। यही है आत्म विश्वास का चमत्कार एवं उसी महती सामर्थ्य।


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