सहिष्णुता से हृदय जीता!

November 1988

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घटना अरब देश के एक सुसम्पन्न परिवार की है। उन दिनों अरब में हजरत मूसा का मूसाई मत बड़े जोरों पर अपना प्रभाव जमाये बैठा था। उन दिनों इस धर्म में अन्ध-विश्वास रूढ़िवादिता और कट्टरता प्रधान रूप से विद्यमान थे।

इस धर्म से पूर्ण प्रभावित और आबद्ध अजमत नाम की एक महिला थी। इनके पति अमीर वास्तव में अमीर थे। खुदा ने उन्हें सब कुछ दे रखा था। किसी भी वस्तु की कमी न थी। अजमत को इस बात का भी बहुत बड़ा घमण्ड था और वह पास-पड़ौस तथा मोहल्ले की स्त्रियों में अपने को नवाबजादी बताया करती थीं। जब भी वह कहीं जाती दूसरी स्त्रियों को उपेक्षा भरी नजरों से देखती और बात-चीत तथा व्यवहार में भी अभिमान एवं अहंकार टपका करता था।

अजमत के घर के बगल से जो रास्ता जाता था उसी से इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मोहम्मद साहब नित्य ही प्रातः साँय वायु सेवन के लिये निकला करते थे। अपने मत को वह सही मानती थी और इस्लाम की निन्दा किया करती थी। मोहम्मद साहब से भी इसे चिढ़ थी। अजमत को ऐसी शरारत सूझी कि वह अपने घर का कूड़ा-कचरा एक टोकरी में इकट्ठा कर लेती और उनकी प्रतीक्षा में बैठी रहती थी। ज्योंही वे उस मार्ग से निकलते त्योंही उनके ऊपर निःसंकोच भाव से फेंक देती। ऐसा लगता था मानों वह उन्हें कूड़ा-करकट का घेरा समझती हो।

यही नित्य का क्रम चल पड़ा था देखने वाले राहगीर और आस पड़ौस के लोग भी हैरत करते थे। सहिष्णुता और दुष्टता दोनों में जोरों की होड़ लगी हुई थी देखें कौन बाजी मार ले जाता है? अन्त में अजमत को हार माननी पड़ी। आत्म-ग्लानि से उसका पराजित दिल बेतरह घायल हो गया और अपने कुकृत्यों पर स्वयं पश्चाताप करने लगी। इसी अफसोस में वह बीमार पड़ गई और चारपाई पकड़ ली।

डस दिन मोहम्मद साहब शान्त भाव से आगे निकल गये और कूड़ा कचरा उन पर न पड़ा इसी तरह दूसरा तीसरा और चौथा दिन भी व्यतीत हो गया जब अजमत बिलकुल ही दिखाई न दी अन्त में मोहम्मद साहब ने पास के एक पड़ौस से पूछा भाई! कई दिनों से बहन अजमत दिखाई नहीं दे रही है पड़ौस मुस्कराते हुए बोला कूड़े-कचरे का मोह सिर बरसते हुए अधिक आनन्द आता है क्या? हंसते हुए मोहम्मद साहब ने कहा हाँ भाई! बहन की इन सेवाओं को भी मुझे स्वीकार ही करना पड़ता है। इसलिये तो मुझे इतनी बेचैनी है। आगे पड़ौसी के द्वारा मालूम हुआ की वह कई दिनों से बीमार है।

अजमत की बीमारी का समाचार सुनते ही हजरत साहब का चेहरा उदास हो गया मानो उनका कोई परम स्नेही संबंधी बीमार पड़ गया हो तुरन्त ही वे परिचारिका से आज्ञा लेकर वहाँ पहुँचे जहाँ अजमत बिस्तर पर लेटी पड़ी हुई थी। उसे इस अवस्था में देखते ही हजरत का हृदय करुणा से भर आया और बोले बहन अजमत तुम्हारी यह क्या दशा हो गई? तबियत कैसी है? उन्हें देखते ही अजमत की आंखें शर्म से नीचे गड़ गई। अन्तःकरण अपने कुकृत्यों पर पश्चाताप करके नीचे दबा जा रहा था। आखिर वह बोली क्या? उसके आँखों के सामने तो वे सब दृश्य नाच रहे थे, जो उनके साथ व्यवहृत किये थे। हजरत उसकी कठिनाइयों और उलझनों को समझ रहे थे।

उन्होंने अधिक वार्तालाप की आवश्यकता न समझी और तुरन्त चिकित्सा व्यवस्था में लग गये। अच्छे चिकित्सक को दिखाकर लाना दवादारु तथा परिचर्या की व्यवस्था करना मोहम्मद साहब का दैनिक कार्य बन गया और वह तब तक चलता रहा जब तक कि अजमत पूर्ण स्वस्थ न हो गई।


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