सुनो - सुनो आवाज दे रही देव, सन्त की वाणी । उतर रहा प्रज्ञा युग भू-पर ले मधु ऋतु कल्याणी॥
आदि अन्त मिलने आये हैं लेकर नव सन्देश । यह युग वेला निकल न जाये, पीड़ा लिये अशेष॥
हैं चुनौतियों पर चुनौतियाँ खड़े हुए भूचाल । प्रज्ञा ज्ञान खड़े पग-पग पर ज्ञान मशाल सम्भाल ।
आज क्रान्ति की गीता गाती, दिग्दिगंत की वाणी । उतर रहा प्रज्ञा युग भू पर ले मधु ऋतु कल्याणी ॥
आदर्शों की कोख न बन्ध्या, सन्ध्या लिये सवेरा । यह प्रकाश का देश यहाँ से होता सदा उजेरा ॥
नतमस्तक हो रहा ध्वंस है दिव्य सृजन के आगे। शाप-ताप हरने को सारा, युग के प्रहरी जागे ॥
कंठ कंठ को सुधा पिलाती ज्योतिवन्त की वाणी । उतर रहा प्रज्ञा युग भू-पर ले मधु ऋतु कल्याणी॥
वह बसन्त आया है जिसमें ज्ञान मशाल जलेगी । बासन्ती जिन्दगी मनुज की, फूले और फलेगी ॥
कोई तन बीमार न होगा, कोई मन बेजार न होगा । सबकी सेवा में सब होंगे, कोई जन बेकार न होगा ।
सबके दुख का अन्त करेगी, गुरु अनन्त की वाणी । उतर रहा प्रज्ञा युग भू-पर ले मधु ऋतु कल्याणी॥
अनगढ़ पाहन, गढ़कर तप से, जीवन देव रचेंगे। मानव में क्षमता अपार बल, हम स्वयमेव रचेंगे ॥
नारी नहीं शिला होकर, अब पड़ी रहेगी घर में। सत्यवान सावित्री होंगे, नर नारी घर-घर में ॥
अपने भाग्य विधाता है हम, युग ज्वलन्त की वाणी। उतर रहा प्रज्ञा युग भू-पर ले मधु ऋतु कल्याणी॥
*समाप्त*