इहैव नरक व्याधेश्चिकित्साँ न करोति यः। गत्वा निरौषधं स्थानं व्याधिस्थः किं करिष्यति॥
अर्थात्- जो मनुष्य इस जन्म में ही नरक रूपी व्याधि की चिकित्सा नहीं करता, वह रोगाकुल फिर औषध रहित स्थान में जाकर अपनी क्या चिकित्सा कर सकता है। अर्थात् जन्म मृत्यु, जरा आदि व्याधियों की चिकित्सा इस मनुष्य जन्म में ही सुलभ है, अन्यत्र नहीं।