आद्यशक्ति की सार्वभौम उपासना एक मनीषी का अभिमत

September 1983

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प्रस्तुत समय की सबसे विषम सामयिक समस्या है। अदृश्य वातावरण में भरती जा रही विषाक्तता की। अदृश्य वातावरण में भरती जा रही विषाक्तता की। विकिरण-प्रदूषण का भयावह स्वरूप सर्वविदित है। यही नहीं मानवी चिन्तन की निकृष्टता और दुष्कृत्यों ने प्रकृति को भी विक्षुब्ध बना दिया है। फलतः वह गत एक दशक से अनेकानेक प्रकार के प्रकोप बरसा रही है। भविष्य में इस क्षेत्र में और भी भयावह संकटों की सम्भावना विज्ञजन बताते हैं। असंतुलित मौसम, अतिवृष्टि, भूकम्प, अनावृष्टि, महामारी, भूस्खलन, तूफान जैसे संकट प्रकृति प्रकोप स्तर के ही हैं। अपराधों, सामूहिक बलात्कारों, वधू-दहन जैसे प्रकरणों की वृद्धि दुर्बुद्धिजन्य दुरभि सन्धि ही है। इन सभी के निराकरण में प्रत्यक्ष प्रयास अपने-अपने स्तर पर चलने चाहिए।

महाप्रज्ञा गायत्री का स्वरूप युग शक्ति के रूप में है। कम अक्षरों में - सारगर्भित धर्मशास्त्र - तत्वदर्शन के रूप में यह अनादिकाल से उच्चारित किया जा रहा है बुद्धि के आह्वान से भरा मन्त्र है। व्यक्ति के अन्तराल में उतरने पर उसकी त्रिविधि शक्तियाँ स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर को प्रभावित करती हैं। साधक को मनस्वी, ओजस्वी और तेजस्वी बनाती हैं। दूरदर्शी विचारणा और आदर्शवादी आस्था की परिपक्वता में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। जब यही शिक्षा विश्व व्यवस्था के क्षेत्र में लागू की जाती है तो वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना समष्टिगत रूप में कूट-कूटकर भर देती है। इस सम्बन्ध में शस्त्रों - आप्त वचनों का अभिमत तो है ही, आधुनिक काल के मनीषी भी ऐसा मन्तव्य व्यक्त करते रहे हैं।

आर्थर कोस्लर अपने विवादास्पद रूप में काफी ख्याति प्राप्त फिजिसिस्ट रहे हैं। जीवन के मध्यकाल में वे साम्यवादी से लेकर उसके आलोचक के रूप में बहुचर्चित रहे लेकिन अन्तिम वर्षों में पूर्वार्त्त गुह्यवाद आध्यात्म की ओर उनका रुझान काफी बढ़ गया था। विशेषकर गायत्री मन्त्र की शक्ति का उन्होंने एक वैज्ञानिक चिन्तक दार्शनिक की दृष्टि से विवेचन किया और उसे असीम ऊर्जा का स्रोत माना। ‘द योगी एण्ड कमिसार’ रुट्स ऑफ कॉइन्सीडेन्स’ ‘इनसाइट एण्ड आउटलुक” “गॉड दैट फेल्ड”, डार्कनेस एट नून” “ब्रिक्स टू बैवेल” जैसी अनेकानेक पुस्तकों के कारण ख्याति प्राप्त इस चिन्तक ने गायत्री मन्त्र पर विशेष अध्ययन किया था और इसके उच्चारण में निहित असीम सामर्थ्य की जानकारी पाश्चात्य समुदाय को देने का प्रयास भी किया।

युद्धोन्माद से बढ़ते विश्वव्यापी तनाव की सम्भावना को सामने रखते हुए उन्होंने कहा था कि वे इस महाविनाश को देखना नहीं चाहेंगे, इसके पूर्व ही अपनी जीवन-लीला समाप्त कर देंगे। भारत के विषय में उन्होंने कहा कि इस राष्ट्र को जो अध्यात्म सम्पदा का धनी है, आयुध निर्माण संग्रह से दूर ही रहना चाहिए। क्योंकि उसके पास, गायत्री मन्त्र के रूप में एक विज्ञान समस्त ऊर्जा शक्ति है। यदि भारतवासी एक साथ इस मन्त्र का उच्चारण आरम्भ करें तो इससे उद्भूत ऊर्जा आणविक विभीषिका को टाल सकती है। समूह शक्ति के साथ जुड़ी इस मन्त्र के अर्थ की विशिष्ट तथा छन्द के रूप में शब्द ऊर्जा का गुँथन सारे विश्व को सम्भावनाओं से मुक्त कर सकता है।’

यह एक ऐसे मनीषी का मत है जो अब इस धरती पर नहीं पर जिसके चिन्तन ने विश्व मानस पर एक अमिट छाप छोड़ी है। सामूहिक उपासना का जो स्वरूप उन्होंने महाप्रज्ञा के अनुष्ठान के रूप में अनुमोदित किया है, वह प्रज्ञा परिजनों द्वारा आरम्भ किया जा चुका । नैष्ठिक साधना के रूप में तो युग सन्धि की उपासना साथ चल ही रही है। जन-मानस से आद्य शक्ति के युग शक्ति के रूप में बदलने की सम्भावना को साकार होते देखने में अब कोई संशय नहीं रहना चाहिए।


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