पीपल का एक बीज-नीम की कोतर में किसी तरह पहुँचकर अंकुरित हो गया। धीरे-धीरे वह बढ़ने लगा परन्तु उसका अधिक विकास नहीं हुआ। एक अपने बौनेपन के लिए नीम को जिम्मेदार ठहराते हुए पीपल के पौधे ने नीम से कहा- “अत्याचारी! तू मुझे बढ़ने नहीं देता है। मेरे हिस्से का भोजन पानी छीनकर तू आकाश छू रहा है। इस अन्याय का दुष्परिणाम भगवान तुझे कभी तो बतायेगा !”
नीम ने कहा - “मित्र औरों पर आश्रित रहने वाले अपना विकास उतना ही कर पाते हैं जितना कि तुमने किया है। उससे अधिक करना हो तो तुम नीचे जमीन पर जाओ और अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयत्न करो।”
पीपल से यह करते तो नहीं बना वह नीम को ही गालियाँ देता रहा। कुछ दिनों बाद बड़े जोरों की आँधी आयी। नीम का पेड़ थोड़ा हिला था कि पीपल कमजोर होने के कारण धराशायी हो गया। नीम के आश्रय पर पलने से आखिर वह कब तक जिंदा रहता।