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September 1983

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न चक्षुषा गृह्यते नापि वाचा, नान्यैर्देवैस्तरसा कर्मणा वा। ज्ञान प्रसादेन विशुद्धसत्वस्ततस्तु, तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः। - मुण्डक 3। 1। 8

अर्थात् - वह परमेश्वर वाणी, नेत्र आदि इन्द्रियों से नहीं देखा जाता। न उसे बाह्य क्रियाकृत्यों से ही पाया जा सकता है। निर्मल अन्तःकरण वाले ज्ञानवान ही उसे ध्यानावस्था में उसका दर्शन करते हैं।


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