बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य सर्वश्रेष्ठ नहीं है

July 1980

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मनुष्य अपनी स्थिति और क्षमताओं को देखते हुए जितना परिपूर्ण दिखाई देता है , सृष्टि की अन्य कोई रचना अन्य कोई जीव भी कम परिपूर्ण नहीं हैं। यह बात अलग हैं कि मनुष्य को उपहार के रुप में कई विभूतियाँ प्राप्त हुई हैं , जो अन्य प्राणियों के पास नहीं हैं। लेकिन उन विभूतियों के साथ उत्तरदायित्वों की शर्त भी जुड़ी हुई है । लेकिन जगत में भी उसी व्यक्ति को विशेष अधिकार मिलते हैं, जिन्हें विशेष उत्तरदायित्व निभाना पड़ता है। इसी प्रकार परमात्मा ने मनुष्य को कुछ विशिष्ट उत्तरदायित्व पूरे करने के लिए विशेष अधिकारों के रुप में वे विशेष क्षमताएँ प्रदान की हैं । यह नहीं सोचना चाहिए कि परमात्मा ने उसे किसी पक्षपात के कारण अथवा विशेष लाड़-दुलार के कारण से विभूतियाँ प्रदान की हैं। उसे तो अपनी सभी सन्तानें समान रुप से प्रिय है और अपने प्रत्येक शिशु शावक को उसकी आवश्यकता के अनुरुप साधन क्षमताएँ प्रदान की है ।इनमें से कई विशेषताएँ ऐसी हैं जो लाख प्रयत्न करने पर भी मनुष्य अर्जित नहीं कर सकता । अर्जित करना तो दूर रहा , वह उनकी कल्पना भी नहीं कर सकता ।

इतना होने पर भी परमात्मा नें, प्रकृति ने प्रत्येक जीव को उसकी दुनिया के हिसाब से परिपूर्ण और साधन सक्षम बनाया है । उदाहरण के लिए लीभट प्राणी को ही लें । उसके शरीर पर बहुत घने बाल होते हैं आर वह इन बालों की सफाई अपनी जीभ से करता है , यह सफाइ करते समय उस बेचारे प्राणी के बहुत से बाल दाँतो में फंस सकते थे । किन्तु रचसियता ने उसे जीवन भर की इस परेशानी से मुक्त रहने के लिए जीभी के नीचे एक दूसरी छोटी जीभनुमा कंघी लगा दी है । इस कंघी की सहायता से वह पहले फँसे हुए बालों को निकाल लेता है और जीभ की सहायता से उनकी सफाई करता है ।

घेंघे को अपना आहार खुरच-खुरचकर खाना पड़ता है । इसलिए प्रकृति ने उसकी जीभ में इतने अधिक दाँत लगा दिये हैं कि उसे भोजन करने में कोई परेशानी नहीं हो । जीव शास़्ियो के अनुसार घोंघे की जीभ में 12 सौ से 1400 दाँत होते हैं। अनातीदी जाति के पक्षियों में प्रकृति ने पंखों के नीचे ऐसी ग्रन्थियाँ लगा दी है , जिनसे एक तैलीय पदार्थ निकलता रहता है । इस तैलीय पदार्थ के कारण उनके पंखों का विकास होता रहता है तथा वे चिकने और स्वस्थ बने रहते है। एक प्रयोग में इस जाति के पक्षी की इस द्रव को उत्पन्न करने वाली ग्रन्थि को आप्रेशन करके निकाल दी गई । इसके बाद देखा गकया कि इस पक्षी के पंख तेजी से झड़ने लगे और धीरे-धीरे पूरे पंख झड़ गये।

बटिल कीटक पानी के भीतर भी रहता है और सतह पर भी तैरता है । प्रकृति ने उसकी आँखो पर एक विशेषे प्रकार का चश्मा चढ़ा दिया है । इस चश्मे के कारण वह जब सतह पर होता है तो हवा में देखने के लिए ऊपर की आँखे काम में लाता है तथा जब पानी में उतर जाता है तो नीचे की आँखों से देखने लगता है । सात-आठ फुट लम्बा एक-डेढ़़ क्िवटल भारी शुतुर्मुग जिस तेजी के साथ भागता है , उतनी तेजी से भागना मनुष्य तो क्या उस जैसे किसाी दूसरे पक्षी के भी बस की बात नहीं है। इसकी दौड़ने की गति प्रायः 70 किला मीटर प्रति घन्टा है । वह अपनी चोंच से इतना तीखा प्रहार करता है कि लोहे की एक-ढेढ़ इन्च मोटी चादर में भी छेद हो जाए । इतना बड़ा शरीर होने पर कुछ तो भी खाते रहना स्वाभाविक ही है । इसलिए परमात्मा ने इसकी पाचन शक्ति को इतना प्रखर बनाया है कि वह कठोर से कठोर वस्तु भी खाकर पचा सकता है ।

भार की दृष्टि से हृल मछली सबसे बजनी जीव है 100 फीट लम्बी हृल मा भर 125 टन के लगभग होता है । यउसके शरीर में 35 टन चर्बी और 70 टन माँस होता है। अकेले उसकी जीभ का चजन एक क्िवटल वजन का होता है, जो उसके शरीर में रहने वाले 8 टन खून की नियमित रुस्प से सफाई करता रहता है। हृल के बच्चों का वजन 6 टन के लगभग होता है और वह प्रतिदिन एक क्िवटल के हिसाब से बढ़ता है । इस गति से विकास करना किसी भी मनुष्य के लिए सम्भव नहीं है ।

इतनी बडी़ काया लेकर किसी शिकार के पीछे भागना बेचारी हृल के लिए बडे़ ही झंझट का काम हो सकता है। इसलिये परमात्मा ने उसमें ऐसी विद्युत क्षमता उत्पन्न कर दी कि वह इसी शक्ति द्वारा शिकार करती है। सैकड़ो मीटर दूर हृल मछली अपने एक ही झटके से तैरते हुए घोड़े को भी मार गिराती है। विद्युत शक्ति की बात चली तो इस सर्न्दभ में तारपीडोफिश का उल्लेख किये बिना बात अधूरी रहेगी । इसकी विद्युत क्षमता के कारण ही इस इलेक्ट्रिक फिश भी कहा जा सकता है । देखने में यह कोई खास आकार की नहीं होती, परन्तु विद्युत क्षमता इतनी गजब की होती है कि उसी से यह अपना शिकार प्रयोजन पूरा करती है।

तारपीडो फिश की विद्युत क्षमता उल्लेख करते हुए प्रसिद्ध जीव शास्त्री डा. जेराल्ड ड्यरेल ने एक घटना का उल्लेख किया है । घटना कुछ इस प्रकार है कि कोई लड़का त्रिशुल से मछलियों का शिकार किया करता था । उसने एक बार इस मछली का निशाना साधा और उस पर त्रिशूल फेंका । मछली के शरीर में त्रिशूल लगा ही था कि लड़के को इतना तेज विद्युत करन्ट लगा कि वह वहीं बेहोश होकर पानी में जा गिरा । उसे इतना जबर्दस्त् विद्युत झटका लगा था कि काफी समय बाद वह स्वस्थ हो सका ।

प्रकृति ने मछलियों को कोई विशेष क्षमताएँ प्रदान कर रखी हैं, जिन्हें देखकर मनुष्य को भी दग्ड रह जाना पड़ता है । सुप्रसिद्ध जीवशास्त्री जान॰एच॰टाड ने एक बार मछलियों पर एक प्रयोग किया । यह प्रयोग ऐसी मछलियों पर किया गया था जो नियत समय पर अपने सामान्य निवास से बहुत दूर जार कर किसी विशेष स्थान पर अण्डे देती हैं। ये अण्डे निश्चित अवधि के बाद फूटते हैं। इस बीच अण्डे देने वाली मछलियाँ वापस अपने स्थान पर चली जाती हैं। उनके बिना भी बच्चे विकसित होते हैं और वे विकसित होने के बाद स्वतः ही अपने माता-पिता के पास पहुँच जाते है। श्री टाड ने अपने प्रयोग में उस स्थान को छोड़ दिया जहाँ मछलियाँ थीं और उस स्थान का सम्बन्ध एक कुए से जोड दिया ऐसा करने पर वे मछलियाँ कुएँ की ओर नहीं गई , अपितु उसी समुद्री स्थान की ओर बढ़ने लगी जहाँ वे अण्डे देने जाती थीं । टाड के अनुसार वे मछलियाँ नियत स्थान से कोई रासायनिक संकेत ग्रहण करती हैं और उसी के सहारे नियत स्थान की ओर बढ़ती है ।

उल्लू को मूर्खता को प्रतीक समझा जाता है , पर इतना मूर्ख वह है नहीं । प्रकृति ने उसे ऐसी विलक्षणताएँ दे रखी है कि उनकी कल्पना करने पर ही प्रकृति की सचेतन कलाकारिता पर आर्श्चय किये बिना नहीं रहा जाता । कहते हैं कि उल्लू रात का राजा होता है और उसे दिन में दिखाई नहीं देता । यह सच है कि उस दिन में नहीं दिखाई देता । किन्तु इस कमी की पूर्ति के लिए प्रकृति ने उसे ऐसे कान दिये हैं , जिनमें विचित्र ढक्कन से लगे होते हैं । यह कान को पूर्ण तरह नहीं ढकते । जब कोई ढवनि होती है तो उल्लू पहले उसे अध ढके कानों से सुनता है और कुछ क्षणों बाद पूरे कान से , सुनने के इस अन्तर द्वारा ही वह कुछ ही क्षणों में किसी राडार यन्त्र की भाँति यह हिसाब लगा लेता है कि आवाज किस दिशा से और कितनी दूर से आई है ?

आमतौर पर गाँव , मुहल्लों में कोई सूचना देने , कोई घोषणा करने के लिए ढोल पीट कर मुनादी करने की प्रथा है । यह परम्परा दीमकों में भी बडे़ आर्श्चयजनक रुप से पाई जाती हैं । सैनिक दीमकों को जब किसी शत्रु का पता चलता है तो वे एक विशेष ध्वनि उत्पन्न करके अपने कुनवे को सचेत कर देते है और बात की बात में सारे दीमक नगर को पता हो जाती है तथा उसके सभी निवासी अपना माल असबाब सब इकट्ठा कर दूसरे आश्रय के लिए चल पड़ते है । ठी उसी प्रकार जैसे सीमा पर स्थित नगरों , बस्तियों में रहने वाले लोग शत्रु देश का आक्रमण होने के समय अपना माल असबाब लेकर दूसरे स्थानों पर पहुँच जाते हैं। मनुष्य यदि अपने कला-कौशल और बौद्धिक सामर्थ्य का गौरव करे और इसे ही श्रेष्ठता का मानदण्ड मान लिया जाय तो सृष्टि के अन्य प्राणी उससे इस मामले में उन्नीस नहीं इक्कीस ही सिद्ध होगें ।

यह ठीक है कि मनुष्य ने अपने कला-कौशल और बौद्धिक सामर्थ्य के बल पर धरती , वायु , जल , सागर आकाश सर्वत्र अपनी कीर्ति-पताका फहरा दी है । अन्य प्राणियों के पास मनुष्य जैसी बौद्धिक क्षमता और कला-कौशल भले ही उपलब्ध न हो किन्तु प्रकृति ने उन्हें सहज ही ऐसी क्षमताएँ प्रदान कर रखी हैं , जो मनुष्य अपनी बुद्धि, कुशलता के द्वारा भी अर्जित नहीं कर सकता है । उदाहरण के लिए अमेरिका में ऐसी गिलहरियाँ पाई जाती हैं, जो जमीन पर भी साधारण गिलहरियों की तरह भग लेती हैं, पेड़ों पर चढ़ जाती हैं और आकाश में उड़ भी लेती है । भलाया सिंगापुर की छिपकलियाँ और साँप उड़ने के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। एक समय था जब टेरोडक्टाइल नामक विशालकाय सरीसृप प्राणी आकाश में उन्मुक्त होकर उड़ते थे । यह प्राणी सामान्यतः पृथ्वी पर रेंग कर चलते थे और उस समय हुआ करते थे जब मानवी सभयता अस्तित्व में भी नहीं आई थी ।

परिवार केवल मनुष्य ही नहीं बसाते और न ही पृथ्वी पर पारिवारिक जीवन बिताने वाला वह कोई एकमात्र प्राणी है। “एक्सोसिरायडी “ नामक मछलियाँ भी मनुष्य की तरह ही पारिवारिक जीवन बिताती हैं। वे हमेशा समूह बना कर रहती हैं , जैसे मनुष्य गाँव , मुहल्ले और नगर बसा कर रहते हैं । इसके अतिरिक्त वे प्रसव , रोग, बीमारी में अपने सहचरों , पडौ़सियों का ध्यान रखती हैं कि मनुष्य भी अपने पडौ़सायों का क्या ध्यान रखता होगा ? और दुःख विपदा के समय क्या उनकी सहायता करता होगा ? निस्सन्देह पारिवारिकता और परस्पर सहायता के मामले में मछलियाँ मनुष्य से कही अधिक आगे बढ़-चढ़ कर हैं। ये मछलियाँ न केवल कठिनाई के समय अपने साथियों की सेवा सहायता करती हैं , बल्कि अपने बच्चों का उस समय तक ध्यान रखती हैं, जब तक कि वे आत्म-निर्भर नहीं हो जाते।

इन मछलियों के साथ आर्श्यच की बात यह जुडी हुई हैं कि ये न केवल पानी में तैरती हैं, वरन् हवा में उड़ भी सकती है । मछलियाँ अपने बच्चों को भी विधिवत् उड़ना सिखाती हैं, इस तरह समूचा समुदाय ही उड़नदस्ते की तरह जीवन जीता है । कुछ मछलियो को तो प्रकृति ने पीठ और पेट पर पंख भी लगा दिये है । यह अपने पीठ के कन्धों से ग्लाईडर का काम लेती है। उड़ने वाली मछलियाँ में पेलभिक मछली बहुत प्रसिद्ध है। उसमें यह विशेषता है कि वह आकाश में उड़ते हुए किसी स्थान विशेष पर ठहरना चाहे तो अपने पंखो को हवा में लहराती हुई ठहर भी जाती है । इतनी उन्नत किस्म की उड़ान भरने वाले विमान तो अभी मनुष्य भी नहीं बना पाया । मनुष्य ने तो उड़ान के जितने भी तरीके खोजे हैं , लगता है उनकी प्रेरणा उसने हैचेक तथा बटरफ्लाई मछलियों को देखकर ही प्राप्त की । ये मछलियाँ पहले पानी में ही बडा बेग लेकर ऊपर उड़ जाती है।

यह ठीक है कि प्रकृति ने , परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि, भावना , प्रतिभा , कौशल और विश्लेषण करने की विशेष क्षमताएँ प्रदान कर रखी हैं। किन्तु इसी कारण मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी सिद्ध नहीं होता । अधिकार और विशेष स्थिति मनुष्यों में भी कई व्यक्तियों को प्राप्त होती है , किन्तु यदि वे उनका दुरुपयोग करते हैं तो भ्रष्ट ही कह जाते है । उनकी निन्दा भर्त्सना भी की जाती है । इसी प्रकार मनुष्य यदि परमात्मा के दिये हुए विशेष अधिकारों और सभ्यताओं का दुरुपयोग करता है तो वह भ्रष्ट और पतित अधिकारी के समान ही निन्दा और भर्त्सना का पात्र बनता है । न कि इस कारण वह सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जायेगा ।


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