वृद्धावस्था शरीर का नही,मन का रोग

July 1980

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यूनान के एक प्राचीन चिकित्सा शास्त्री और सन्त इब्नेसिया से किसी ने पूछा कि मृत्युपर्यन्त युवा और स्वस्थ रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए ? इब्नेसिया ने जो उत्तर दिया वह बहुत ही साधारण था। उन्होने कहा ‘आजीवन युवा और स्वस्थ रहने के लिए किसी कठिन या विशेष उपाय की आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी भूलों को सुधार लें और भ्रान्तियों से छुटकारा पा ले । क्या हैं वे भूले, जो असमय ही बुढ़ापा ला देती हैं और क्या हैं वे भ्रान्तियाँ जो रोग बीमारियों को नियन्त्रण देती हैं ? इसका उत्तर भी साधारण-सा ही है कि मनुष्य अपने आहार-बिहार और आचार-विचार को न जाने क्यों इतना बिगाड़ लेता है कि स्वास्थ्य संकट उत्पन्न् हो जाता है ? वस्तुतः किसी को स्वस्थ रहने के लिए डाक्टरों से सलाह लेने और मल्टी विटामिन, आँनिकों के सेवन की आवश्यकता नहीं है, डाक्टर की सलाह और औषधियों का सेवन तो तब आवश्यक है जब बीमार पड़ा जाय । प्रश्न उठता है कि बीमार हुआ ही क्यों जाए ? स्वस्थ रहना जब अपने हाथ की बात है तो बीमार होना भी अपनी ही इच्छा पर निर्भर है। चाहे तो स्वस्थ रहें, चाहे तो बीमार पडे़।

खानपान का असंमय, दिनचर्या की अनियमितता, श्रम-विश्राम का असन्तुलन और कृत्रिम अप्राकृतिक जीवन ही वे कारण है जो मनुष्य के स्वास्थ्य को चौपट करते है। अन्यथा खानपान में सादगी और संयम रखा जाय, नियमित दिनचर्या बना कर रहा जाय, पर्याप्त श्रम और पर्याप्त विश्राम किया जाय तो शरीर यन्त्र के किसी कलफर्जे को बिगड़ने-गड़बड़ाने की स्थिति ही नहीं आती और लम्बे समय तक स्वस्थ, निरोग और शक्तिशाली रहा जा सकता है। कहा जा सकता है कि बुढ़ापा तो अनिवार्य है। वह तो आना ही है, उसे रोका नहीं जा सकता । वह कहावत पुरनी हो चली जिसमें कहा जाता था कि ‘जवानी वह देखी जो जाकर के नहीं आती और बुढ़ापा वह देखा जो आकर के नहीं जाता ‘ हाल ही में हुई वैज्ञानिक शोधों के निर्ष्कष को दृष्टिगत रखते हुए इस कहावत में यदि कोई संशोधन करना पडे तो वह इस प्रकार होगा कि ‘जवानी वह देखी जो आने पर भगा दी जाती बुढ़ापा वह होता जो न आने पर बुलाया जाता ।’

स्वास्थ्य विज्ञानियों ने पिछले दिनों जो शोध अनुसंधान किये हैं उनसे यह निर्ष्कष सामने आये हैं कि जवानी का उम्र से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है। वह उस समय भी बनी रह सकती है जिसे हम आमतौर पर वृद्धावस्था कहते हैं । जीवन की सभी अवस्थाएँ मनुष्य की आयु से कहीं किसी रुप में सम्बन्धित हैं तो उसकी धुरी चिन्तन पर ही टिकी हुई है। यदि कम उम्र का व्यक्ति अपने आपका प्रोढ़ समझे और तदनुरुप उत्तरदायित्व ओढे़ तो वह प्रौढ़ो की भूमिका प्रस्तुत कर सकता है इसके विपरीत उपेक्षा और अवसाद के कारण जवानी भी बुढ़ापे में बदल सकती है। बुढ़ापे में भी जवान रहा जा सकता है यह मनुष्य के साहस, उत्साह, परिश्रम और मनोबल पर निर्भर है। ऐसे कई ऐतिहासिक उदाहरण मिल सकते हैं जिन्होंने वृद्धावस्था में जवानों से अधिक स्फूर्ति दर्शायी और जीवन के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम किये। गोस्वामी तुलसीदास ने पचास वर्ष की आयु हो जाने के बाद रामचरित मानस लिखना श्रु किया था । रवीन्द्रनाथ टैगार 90 वर्ष की उम्र तक साहित्य लेखन का काम करते रहे थे । वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार और संस्कृत के मर्मज्ञ विद्वान सालवलेकर पचपन वर्ष की आयु तक अध्यापकी करते रहे थे । रिटायर होने के बाद उन्होंने संस्कृत का अध्ययन आरम्भ किया और जीवन के उत्तरार्ध में संस्कृत तथा संस्कृति की वह सेवा की कि आज उन्हें इस देवभाषा के पुनरुद्धारकर्ता के रुप में ही जाना जाता है।

सन् 1932 में महात्मा गाँधी ने एक विदेशी पत्रकार द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा था कि मै 63 वर्ष का जरुर हो गया हूँ, पर मुझे कभी ख्याल ही नहीं आता कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ जिस आदमी को ऐसा लगेगा वह पाठशाला के विद्यार्थी की तरह उर्दू का अध्ययन करेगा और कैसे बंगला तमिल, तेलुगू पढ़ने के सपने देखेगा ?” प॰जवाहर लाल नेहरु अस्सी वर्ष के करीब जा पहुँचे थे, पर उस उमर में भी वे दौड़ कर सीढ़ियाँ चढ़ते थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई भी इसी के लगभग है, परन्तु वे अभी भी जवानों के से स्फूर्तिवान दिखाई देते है। दो वर्ष पूर्व ही समुन्द्र में एक जहाज से दूसरे जहाज पर रस्से के सहारे गये।

इतिहास में भी इस तरह के कई उदाहरण मिलते हैं जब लोगों ने जीवन के उत्तरार्द्ध में ही ऐसे काम किये जिनसे वे विश्वविख्यात हो गये । यूनानी नाटककार सोफोक्लीन ने 90 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध नाटक ‘आडीपस’ लिखा था । अंग्रेजी कवि मिल्टन 43 वर्ष की आयु में अन्धे हो गये थे । अन्धे होने पर उन्होंने अपना सारा ध्यान साहित्य सृजन पर केन्द्रित किया और 50 वर्ष की आयु में ‘पैराडाइज लास्ट’ लिखा । जर्मन कवि गेटे ने 80 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘फास्ट ‘ पूरा किया था । 92 वर्ष का अमेरिकी दार्शनिक जानडेवी अपने क्षेत्र के अन्य सभी विद्वानों में अग्रणी था।

अंगे्रजी राजनीति का इतिहास जिनने पढ़ा होगा वे जानते होंगे कि ढलेडस्टन 79 वर्ष की आयु में तीसरी बार प्रधानमंत्री बना था और 85 वर्ष की आयु में उन्होनें ‘ओडेसी आँफ हारस’ नामक ग्रन्थ की रचना की । आठवीं जर्मन सेना का सेनापतित्व जअ पाल्वान हिन्डैन वर्ग को सौंपा गया तो वे 67 वर्ष के थे। 78 वर्ष की आयु में वह पार्लामेण्ट के अध्यक्ष चुने गए और 87 वर्ष की आयु तक इसी पद पर प्रतिष्ठित रहे। हैनरी फिलिनिम पिटैन जब फ्राँस के प्रधानमंत्री बनाये गए तब उनकी आयु 84 वर्ष की थी लायड जार्ज ब्रिटेन के मूर्धन्य राजनेता रहे हैं, 85 वर्ष की आयु में भी उनमें युवकों जैसी स्फूर्ति और काम करने की शक्ति थी । चर्चिल ने दूसरे विश्व युद्ध के समय जब इंगलैण्ड का प्रधानमन्त्री पद सम्हाला तो वे 80 वर्ष के थे। जनरल मेक आर्थर 90 वर्ष की आयु में भी 45 वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों के समान सक्रिय रहे। दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति सिगमन 80 वर्ष की आयु में भी पूरी तरह सक्रिय रहे।

अमेरिका के प्रख्यात उद्योगपति राकफैलट ने पूरी 100 वर्ष की आयु पाई और उन्हें कभी बेकार समय गुजारते नहीं देखा गया । एक-दूसरे व्यवसायी कोमोडोर विण्डरविट ने 70 वर्ष की आयु में व्यापार के क्षेत्र में प्रवेश किया और 90 वर्ष की आयु में उनकी गणना संसार के प्रसिद्ध उद्योग पतियों में की जाने लगी। मोटर उत्पादक हैनरी फोर्ड 82 वर्ष की आयु में भी युवकों के समान चुस्त और क्रियाशील रहते थे।

महान साहित्यकार जार्ज बर्नार्डशाँ ने 90 से 93 वर्ष की आयु के बीच इतना अधिक साहित्य लिखा जितना कि वे 50 से 90 की आयु के बीच नहीं लिख पाये थे। दार्शनिक वेनेदित्तो क्रोचे 80 वर्ष की अवस्था में भी नियमित रुप से 10 घण्टे काम करते थे । उन्होने दो पुस्तकें तो 85 वर्ष की अवस्था में ही लिखी। नोबुल पुरस्कार विजेता साहित्यकार मारिल मैटरलिक ने 88 वर्ष की आयु में ‘द ऐवाट आँफ सेटुवाल’ नामक पुस्तक लिखी जिसे उनकी रचनाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ब्रिटेन के प्रसिद्ध समाचार पत्र ‘डेली एक्सप्रेस’ के संचालक लार्डबीवन वर्क 80 वर्ष की आयु में भी दस घण्टे नियमित रुप से अपने दफ्तर में बैठ कर काम करते थे।

टैनीसन ने 88 वर्ष की आयु में अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘क्रासिंग द वार’ पूरा किया । दार्शनिक काण्ट ने 74 वर्ष की आयु में ख्याति अर्जित की और ‘गनथृपोलाजी’ ‘मेटाफिक्स आँफ ईथिक्स’ और ‘स्ट्राइफ आफ फैकल्टिज’ नामक पुस्तकें लिखी जो दर्शन की उच्चकक्षाओं में पढ़ाई जाती है। होबस ने 88 वर्ष की आयु में ‘इलियड’ का अनुवाद प्रकाशित कराया था चित्रकार टीटान का विश्व विख्यात चित्र ‘बैटिल आफ लिटाण्टो’ जब पूरा हुआ था तब उनकी आयु 98 वर्ष की थी।

अमेरिका की सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री दादी रेनाल्डम ने पश्चिमी जगत में बहुत ख्याति अर्जित की । 65 वर्ष की आयु में जब वे चार बच्चो की माँ और दर्जनो नाती-पोतों की दादी बन चुँकी थी तब शिक्षा प्राप्त करने की सूझी और काँलेज जाने लगी । 69 वर्ष की आयु में वे कैलिफोनिया विश्वविद्यालय में स्नातिका हुई । इसके बाद वे हालीवुड पहुँची । उनकी रुचि, लगन और मधुर व्यवहार देखकर फिल्म डायरेक्टर ने उन्हे एक छोटा-सा रोल दे दिया । इस भूमिका को उन्होंने इतनी कुशलता के साथ निभाया कि बाद में उनके सामने फिल्मों के ढेर लग गये और वे लगातार 13 वर्ष तक फिल्मो में काम करती रही ।

कहा जा चुका है कि यौवन का आयु में कोई सम्बन्ध नहीं है वह वृद्धावस्था में भी वैसा रहा सकता है और छोटी आयु में भी विकसित हो सकता। बुढापे में भी जवान रहा जा सकता है और लोग वृद्धावस्था में युवको कीसी स्फूर्ति तथा कुशलता के साथ काम करते है इसके कुछ उदाहारण ऊपर दिये गए हैं। इसी प्रकार कम आयु में भी परिष्कृत और विकसित व्यक्तित्व का परिचय देने वालों की कमी नहीं है। आद्यशपराचार्य ने 32 वर्ष की आयु में ही इतना साहित्य रच डाला था कि उसे पढ़ने और समझने के लिए कई जीवन चाहिए । इतना ही नहीं उन्होने चारों धामों की स्थापना की , देशभर में घूम-घूमकर पंडितों से शास्त्रार्थ किया। 16 वर्ष की आयु से लेकर 32 वर्ष की आयु तक के सोलह वर्ष यदि लगन के साथ किसी दिशा में जुटा दिये जाये तो हर किसी के लिए उतना कुछ कर सकना सम्भव है जितना कि आद्यशंकराचार्य ने कर दिखाया ।

वायुयान के अविष्कारक विल्वट राइट और आरविल राइट बीस और तीस वर्ष के ही थे जबकि वे वायुयान उड़ाने का परीक्षण करने लगे थे और कुछ ही वर्षो में उन्होंने हवाई उड़ान भर कर संसर को आर्श्चय चकित कर दिया था । ब्लेज पास्कल ने +++ पर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 19 वर्ष की अवस्था में लिखी और उसी आयु में गणना यन्त्र एडिन मशीन का अविष्कार कर लिया । वैज्ञानिक क्षेत्र में कितनी ही प्रतिभाएँ ऐसी हुई जिन्होने छोटी आयु में अविष्कार किये । एलीब्हिरची ने 28 वर्ष की आयु में कपास ओटाने की मशीन का आविस्कार किया । चार्ल्स मार्टिन हाल ने 23 वर्ष की आयु में विद्युत संश्लेषण द्वारा अल्युमिनियम उत्पादन की नई विधि पेटेण्ट कराई ।

इन बाल प्रतिभाओं के सम्बन्ध में यह भी कहा जा सकता है कि ये विलक्षण विभूतियों से सम्पन्न रही होगी। पूर्वजन्म के संस्कार इनके इस जन्म में छोटी अवस्था में ही उत्पन्न हो गए होगे। किन्तु इससे यौवन की अवस्था से कोई सम्बन्ध सिद्ध नहीं होता । पूर्व जन्म के संस्कार स्वरुप ही सही इस जन्म में बचपन में ही प्रतिभा के अंकुर तो फूटे। फिर भी इस विषय को यही छोड़ दिया जाए तो उन लोगो को क्या कहेंगे जो वृद्धावस्था में भी जवानों से अधिक स्फूर्तिवान रहे हैं और । स्वस्थ, चुस्त ढंग से सक्रिय जीवन व्यतीत करते रहे है। वस्तुतः युवावस्था का आयु से उतना सम्बन्ध नहीं है जितना कि मनोभूमि और चित्र की दशा से । ब्रिटेन के सुप्रसिद्ध साहित्यकार और रजानेता बेगामिन डिजरायली यौवन का सम्बन्ध मन की अवस्थासे बताते हुए कहा करते थे कि जिनने जवानी गँवा दी उनके पास कुछ और बचा ही नहीं । उनका अभिप्राय था कि महत्वपूर्ण कार्य करने का उत्साह, क्रियाशीलता, जोश, उमंग , स्फूर्ति और लगन का नाम ही यौवन है और यह यौवन स्वस्थ शरीर के भीतर विद्यमान स्वस्थ मन में निवास करता है।

इस सर्न्दभ में यूनान के प्रसिद्ध सलय चिकित्सक इब्नेसिया का कथन है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विचारों को स्वस्थ रखना आवश्यक हे । स्वास्थ्य रक्षा के सभी आवश्यक साधन निबाहते रहने पर भी यदि विचार शुद्ध नहीं हैं, मन निर्मल नहीं है तो स्वास्थ्य प्राप्ति का उद्देश्य कदापि प्राप्त नहीं किया जा सकता । शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार के स्वास्थ्यो पर आचार विचार का गहरा प्रभाव पड़ता है। अस्तु अपने आचार विचार को ठीक रखते हुए मन में उत्साह और उमंग रखकर स्फूर्ति , आशा तथा उत्साह को ही जीवन धन बनाया जाए तो चिरयौवन की प्राप्ति कोई असम्भव बात नही। वह तो एक मनःस्थिति का नाम है, जिसे तैयार करने के लिए आचार-विचार से लेकर रहन-सहन तक सर्वागपूर्ण साधना करनी पड़ती है।


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