अनीति के दूरगामी दुष्परिणाम

July 1980

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अनीति, अत्याचार, दूराचार व्यक्तियों को ही नहीं वातावरण को भी प्रभावित करते हैं। अचिन्त्य चिन्तन और अकरणीय कर्मो का प्रभाव वातावरण में बना रहता हैं और सर्म्पक में आने वाले व्यक्यों एवं वस्तुओं को प्रभावित करते हैं। उनका प्रभाव स्थायी रुप से विद्यमान रहता है। इस तथ्य को सूक्ष्मदर्शी जानते है। यही कारण है कि शास्त्रो से लेकर महामानवों तक सबने ही नीतियुक्त उपार्जन एवं उपभाग पर ही बल दिया है। दुष्कर्मा से बचने तथा सत्कर्मा की ओर बढ़ने की प्रेरणा दी है। अनीति अनाचार से तुरन्त का लाभ तो मिल जाता है, पर लाभ कमाने वाला भी अनततः नफे में नहीं रहता । अनैतिक उपार्जन विभिन्न प्रकार के रोग-शोक साथ लेकर प्रकट होता तथा मानव मन पर वैसा ही संस्कार भी डालता है। यह संस्कार इसी जीवन तक नहीं रहते वरन् जन्म-जन्मान्तरों तक बने रहते तथा मनुष्य को परेशन करते हैं । मन की सूक्ष्म परतों मर जमे इन संस्कारों को दूर कर सकतना अति कठिन पड़ता हे। साधना उपचार की सामान्य क्रियाओं से लेकर कठोर असामान्य तपश्चर्याओं तक का अवलम्बन लेना पड़ता है ?

दुष्कर्मा का प्रभाव अपने तक ही सीमित नहीं रहता । वातावरण पर भी पड़ता हे। सर्म्पक में आने वाले उसी स्तर की प्रेरणाऐं लेते तथा कर्म करते देखे गये हैं। कमजोर मनोभूमि के व्यक्ति उनके प्रभाव में आकर पतन की ओर बढ़ते हैं ? अनीति युक्त उपार्जन एवं दुष्कर्मो का प्रभाव जड़ वस्तुओं पर भी पड़ते देखा गया हैं। वैभव एवं अनैतिक संग्रहित सम्पति को देखकर प्रत्येक व्यक्ति के मन में स्वाभाविक घृणा एवं ईर्ष्या उत्पन्न होती है आक्रोश उभरता है अनीति के शिकार बने पीडित हुए व्यक्तियों की संवेदनाएँ एक ऐसे उत्तेजनापूर्ण विचारों से युक्त वातावरण का निर्माण करती है, जो प्रयोगकर्ता के इर्द-गिर्द चारों ओर छायी रहती है। अनैतिक व्यक्ति उन विचारों के कारण सदा उत्तेजित एवं अशान्त बना रहता है। शान्ति एवं सन्तोष उसके लिए दुर्लभ वस्तु बन जाती हैं। उसकी स्वयं की अन्तरात्मा भी सदा कोसती रहती है। आत्म प्रताड़ना एवं दूसरों के संवेदनात्मक विचारों के दोहरे प्रहार से उसकी स्थिति विक्षित्तों जैसी हो जाती है।

अनीति मार्ग से उपार्जित वस्तुएँ भी अभिशिप्त बन जाती हैं और उपयोगी साधन के स्थान पर बाधक सिद्ध होती हैं। कई बार तो उसके प्रयोग करने वाले अनेंको व्यक्ति जान से तक हाथ धोते देखे गये है।

आस्ट्रिया के युवराज अंकिड्यूक फ्राँज फर्डिनेड की खरीदी हुई आलीशान कार एक ऐसे ही दुर्भाग्य की कहानी है जिसमें अनेकों व्यक्तियों की जाने गइ। युवराज की क्रूरता एवं अत्याचार अपने समय पर चरम सीमा पर था । शोषण और दमन के चक्र में अनेकों बेगुनाह पीसे गये । कितनों को कर न दे सकने के कारण जान से मरवा दिया ।

शोषित धन से युवराज फर्डिनेड ने एक लाल रंग की कार खरीदी । 28 जून 1914 को वह अनी पत्नी ‘डचेस होहेनवुर्ग’ को ‘वेस्तियाँ’ के गवर्नर के यहाँ एक निमन्त्रण में रवाना हुआ । नगर अभी दूर था । अचानक एक बम का गोला सनसनाता हुआ कार के निकट आकर फूटा । कार के साथ चल रहे चार अंगरक्षक घुड़सवार विस्फोट से घायल हो गये। उनकी स्थिति आगे बढ़ने की नहीं थी, पर युवराज ने मरहम पट्टी कराकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए किसी प्रकार राजी किया । ‘सराजेलो’ नामक नगर में पहुँचते ही एकाएक ड्राईवर का हाथ अपने आप स्टेयरिंग पर एक गली में घूम गया । जहाँ एक व्यक्ति रिवाल्वर लिए खड़ा था । इसके पूर्व की अंगरक्षक पहुँचे और युवराज सम्भले, बिना एक पल रुके रिवाल्वरधारी अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलाने लगा । देखते ही देखते युवराज एवं उसकी पत्नी ‘तत्कार मृत्यु की गोद में पहुँच गये । हत्यारे आक्रमणकारी का कोई सुराग न मिल सका ।

सरजिवी के पाँचवी आस्ट्रियन सेना के सेनापति जनरल पोत्योरके ने उक्त कार की ओर आकर्षित होकर अपना आधिपतय जमाया । जिस दिन कारसेनापति के कब्जे में आयी उसके इक्कीसवे दिन वह युद्ध में हार गया तथा कार से भागते हुए रास्ते में एक दुर्घटना के फलस्वरुप मृत्यु हो गई । जनरल पोत्येरेक की मृत्यु के बाद उक्त सेना के कप्तान ने ‘कार ‘ का प्रयोग आरम्भ किया । किन्तु दुर्भाग्यवश ठीक नवे दिन दो किसानों को कुचलती हुई पुलियामें जा टकरायी । इस प्रकार कप्तान सहित दोनों किसान मारे गये । अब सेना के अन्य किसी अधिकारी को भयवश कार प्रयोग करने की हिम्मत नहीं पड़ी । फलस्वरुप उसे गवर्नर के पास भेजा गया। कार के आकर्षण से गवर्नर के पास भेजा गया। कार के आकर्षण गवन्र भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा । उसे ठीक कराकर उसने प्रयोग करने की बात सोची । अभी दो माह ही मरम्मत के बाद प्रयोग करते हुए होंगे। इतनी ही अवधि में पाँच दुर्घटनाएँ हुई। जिसमें अन्तिम दुर्घटना इतनी खतरनाक थी कि किसी प्रकार गवर्नर की जान बच सकी । पर उसे अपने दाहिने बाजू से हाथ धोना पड़ा । क्रोधित होकर गवर्नर ने कार को नष्ट करा देने की बात सोची । पर एक डाक्टर के अनुनय-विनय पर कम कीमत में ही कार को दे दी ।

दुर्भाग्य ने साथ यहाँ भी नहीं छोड़ा एक रात डाक्टर हास्पिटल से वापस लौट रहा था कि कार के ब्रेक ने काम करना बन्द कर दिया , कार सडक के किनारे एक बिल्डिग से जा टकरायी और उलट गयीं। डाक्टर की तत्कार मृत्यु हो गई।

पर इसे एक आर्श्चय ही कहा जाना चाहिए कि इतनी दुर्घटनाओं के बाद भी कार का इन्जिन चालू स्थिति में बना रहा । लगता था कोई अदृश्य आत्मा उसके साथ बैठी सुरक्षा कर रही हो। यह सिसिला यहीं समाप्त नहीं हुआ । कार को कम कीमत पर एक व्यापारी खरीद कर ले गया । एक सप्ताह बाद उसने आत्म हत्या कर ली । पुलिस ने कार को अपने संरक्षण में लिया । जिसे स्विटजरलैण्ड के एक रेस ड्राईवर ने खरीद लिया । उसने कार की ठीक प्रकार से मरम्मत करायी । ‘डेलायाइट’ नामक स्थान पर एक ‘कार’ रेस प्रतियोगिता’ आयोजित हुई । रेस में कार का प्रयोग किया गया । पर कार ने अपनी करामात यहाँ भी दिखायी । ड्राईवर एक दीवार से जा टकराया दुर्घटना के फलस्वरुप उसकी जीवनलीला समाप्त हो गई।

एक व्यक्ति द्वारा पुनः यह कार अपने पुराने स्थान ‘सेराजेवा’ पहुँची । एक किसान ने सस्ते दाम पर खरीदा तथा दो बैलगाडियों में बाँधकर बनवाने के लिए चला । कुछ ही दूर चलने के बाद अचानक कार का इन्जन अपने आप स्टार्ट हो गया । कार दौड पडी । फलस्वरुप गाडी बैलो समेत कुचल गई और किसान भी मारा गया इस बार कार चकनाचूर हो गई । फिर भी उसका आकर्षण बना रहा पुरानी कारो की खरीद बिक्री करने वाले ‘टाईवर इर्शफील्ड’ नामक व्यक्ति कार की मरम्मत कराकर चलाने लगा । कार इतनी अच्छी चलने लगी जैसे कभी कोई दुर्घटना न हुई हो । एक दिन इर्शफील्ड अपने छै मित्रो के साथ कार में बैठ कर एक भोज में भाग लेने के लिए चला । कुछ ही दूरचलने के बाद सामने आती हुई एक दूसरी कार से जा टकरायी । अपने चार साथियों के साथ वह मारा गया । बचा हुआ एक मित्र घायल अवस्था में अस्पताल में भर्ती हुआ ।

इस बीच कार की ख्याति चारों ओर फैल चुकी थी । उसके अभिशप्त होने की खबर सबको लग चुकी थी । आस्ट्रिया सरकार ने उसको ठीक कराकर एक मुर्दा घर को सौंप दिया । उन दिनों द्वितीय महायुद्ध आरम्भ हो चुका था। एक दिन अचानक मुर्दा घर में कई बम गोले फट पडे़ और साथ ही आग लग जाने के कारण कार भी ध्वस्त हो गई । अपने साथ अनेको व्यक्तियो की जान लेते हुए कार सदा के लिए समाप्त हो गई सूक्ष्य-दर्शियो ने दुर्घटनाओं का तारतम्य युवराज के शोषण एवं दमन की शिकार से व्यक्तियों की सम्वेदनाएं भूत बनकर साथ लगी हुई है। वे नहीं चाहतीं कि उनके शोषण से खरीदी गई कार का कोई उपयोग करे। अतः जिसने भी प्रयोग किया उनके कोप का भाजन बना ।

अनीति युक्त उपाज्रन सदा हानिकारक ही सिद्ध होता है। आत्म प्रताड़ना, लोक प्रताड़ना से लेकर अनेकों प्रकार के कोपों का भाजन बनना पड़ता है।


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