आदमी की आह (kavita)

July 1980

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आदमी की आह प्रभु की अर्चना करने न देती । ध्यान पल-पल टूटता है, पीड़ितो की चीख सुनकर । वृतियाँ रहती नहीं थिर, छटपटाता देख पिंजर ॥

सिसकियाँ उनकी विकल, आराधना करने न देतीं। आदमी की आह प्रभु की अर्चना करने न देती ॥

मन्त्र-स्वर ही मौन हो जाते, मनुष्य कराह सुनकर । आचमन जल फैल जाता , आँसुओं का देख निर्झर ॥

पीड़ितों की पीर-प्रतिमा,प्रार्थना करने न देती । आदमी की आह प्रभु की अर्चना करने न देती॥

देखते है रोज दुनियाँ, दीन दूर धकेलती है। खून पीकर मुस्कुराती, जिन्दगी से खेलती है॥

वेदना उनकी हमें, विभु वन्दना करने न देती । आदमी की आह प्रभु की अर्चना करने न देती ॥

चाहते हम दर्द का मन्दिर बनें, संसार सारा । पीड़ितों की पीर में ही मिल सके , वह प्राण प्यारा॥

वीर-प्लावित भावनायें, वंचना करने न देती । आदमी की आह प्रभु की अर्चना करने न देती ॥

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118