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June 1979

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न जलाप्वुत देहस्य स्नानमित्यभिधीयते स स्नातो यो....मस्नातः शुचिः शुद्धमनोमलः

अर्थात्- जल में शरीर को डूबो लेना ही स्नान नहीं कहलाता। जिसने दम रूपी तीर्थ में स्नान किया है, मन इंद्रियों को वश में कर रखा है, उसी ने वास्तव में स्नान किया है। जिसने अपने मल को धो डोला वही शुद्ध है। वही स्नान है।


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