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June 1979

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गंगादि तीर्थेषु वसन्ति मत्स्या देवालये पक्षिगणाश्च सन्ति। तीर्थाच्च देवायतनाच्च मुख्यात् भावं ततो हृत्कमले निधाय तीर्थानि सेवेत् समाहितात्मा (नारद पुराण)

अर्थात् गंगा आदि तीर्थों में मछलियाँ निवास करती हैं, देव मन्दिरों में पक्षीगण रहते है; किन्तु उनके चित्त भक्ति भाव से रहित होने के कारण उन्हें तीर्थ सेवन और देव मन्दिर में निवास करने से कोई फल नहीं मिलता है। अतः हृदय कमल में भाव का संग्रह, करके एकाग्र चित्त होकर तीर्थ सेवन करना चाहिये।

नृणाँ पापकृताँ तीर्थे पापस्य शमनं भवेत्। यथोकृफलदं तीर्थ भवेच्छुद्धात्मनाँ नृणाम्॥

अर्थात्- पापी मनुष्यों के तीर्थ में जाने से उनके पाप की शान्ति होती है। जिनका अन्तःकरण शुद्ध है, ऐसे मनुष्यों के लिए तीर्थ यथोक्त फल देने वाला है।


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