कामं क्रोध च लोभ च यो जित्वा तीर्थ भाविशेत्। न तेन किंचिद प्राप्त तीर्थ्राभिगमानद् भवेन्॥
अर्थात् जो काम क्रोध और लोभ को जीतकर तीर्थ में प्रवेश करता है उसे तीर्थ यात्रा से कोई भी वस्तु अलभ्य नहीं रहती।