मंत्र विद्या ध्वनिशक्ति का उच्चस्तरीय उपयोग

June 1979

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ध्वनि को सामान्यतया कानों को अमुक प्रकार की जानकारी देने का माध्यम माना जाता है। किसी शब्द को सुनकर उसमें सन्निहित अर्थ का बोध प्राप्त किया जाना है। अथवा किसी हलचल का - घटना क्रम का अनुमान लगाया जाता है। यह सर्वविदित ध्वनि परिचय हुआ। किन्तु गहराई में उतरने पर ध्वनि की सामर्थ्य उसकी अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होती है जैसा कि साधारणतया अनुमान लगाया जाता है।

विज्ञान ने ध्वनि को भी ऊर्जा वर्ग में गिना है। यह ऊर्जा आमतौर से कानों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचती है और अपने लिए उपयुक्त संस्थानों को तरंगित करके अपने प्रभाव से प्रभावित करती है। इस ज्ञान के सहारे ही जीवन का अधिकाँश काम चलता है। ध्वनि के माध्यम से बालकों को अभिभावकों की भाषा सीखने का अवसर मिलता है उसके बाद ज्ञान क्षेत्र की अन्याय उपलब्धियों का अधिकाँश उपार्जन कान से माध्यम से ही होता है। बधिर व्यक्ति गूँगा भी होता है और उसकी ज्ञान परिधि अन्धे की अपेक्षा भी कम रह जाती है। ग्रहण की तरह प्रेषण भी एक काम है। अभिव्यक्तियों, आवश्यकताओं, प्रेरणाओं का आदान-प्रदान प्रायः ध्वनि की सहायता से ही सम्भव होता है। लेखनी से भी प्रभाव ग्रहण तो किया जाता है, पर उस ग्रहण की अधिकाँश पृष्ठभूमि उसके पहले वाणी की सहायता से बन चुकी होती है। लेखनी उस वाणी संचित मनोभूमि से आगे का ही कुछ काम कर सकने में समर्थ होती है।

विज्ञान की शोधों ने इससे आगे की जानकारियाँ प्राप्त की हैं और पता चलाया है कि ध्वनि का कार्य क्षेत्र ज्ञान का संवहन करने तक ही सीमित नहीं है वरन् वे ऐसी प्रचण्ड ऊर्जा भरी रहती हैं जो मनुष्य के लिए संसार के लिए हानि और लाभ दोनों ही प्रचण्ड परिमाण में कर सकती हैं। कोलाहल के फलस्वरूप वातावरण इतना विक्षुब्ध हो जाता है कि उस ओजित क्षेत्र में रहने वालों को शारीरिक और मानसिक अस्वस्थता का सामना करना पड़ता है। मशीनों वाहनों, एवं हलचलों से उत्पन्न अनगढ़ शोर की हानि का दिन-दिन अधिक परिचय मिल रहा है। फलतः उससे बचने के उपायों को गंभीरता पूर्वक सोचा जा रहा है, अन्यथा बढ़ता हुआ कोलाहल सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भयंकर संकट बन सकता है।

दूसरी ओर उपयोगी एवं सुनियोजित ध्वनियों का उपयोग प्रभाव भी देखा जाता है। सुमधुर संगीत की सृजनात्मक सामर्थ्य की जानकारी क्रमशः बढ़ती जा रही है और सोचा जा रहा है कि इस ध्वनि सम्पदा का लाभ किसी प्रकार अधिक मात्रा में, किस क्षेत्र में - किस प्रकार उठाया जाय।

कर्णेन्द्रिय के माध्यम से समझी जाने वाली ध्वनियाँ समस्त ध्वनि प्रवाह का एक बहुत छोटा अंश होती हैं। कान अपनी बनावट के अनुरूप मध्यम स्तर की ध्वनियों को ग्रहण कर पाते हैं। उनकी पकड़ से धीमी या तीव्र ध्वनियाँ भी अनन्त आकाश में परिभ्रमण करती रहती हैं। इनमें से कुछ तो ऐसी होती हैं कि उनका उपयोग प्रचण्ड शक्ति की तरह किया जा सकता है। उनसे ऐसा लाभ उठाया जा सकता है जो एक प्रकार से अद्भुत या अनुपम ही कहा जा सके।

कनाडा के दो खदान नगरों के पास की खानों में कई दिन तक श्रमिक बहुत बड़ी संख्या में स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से काम पर हाजिर नहीं हुए। जो कुछ व्यक्ति आये, वे शारीरिक स्वास्थ्य और मनोदशा ठीक न होने के कारण सही ढंग से काम नहीं कर सके। इन लोगों की आम शिकायतें थी सिर दर्द, अनिद्रा, थकावट काम में मन एकाग्र न होना चेहरे का संज्ञा रहित हो जाना, मन बेचैन हो जाना, बहुतों की शिकायतें थी कि उन्हें अपने आस-पास रिक्त स्थान में से तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती है।

कनाडा के ध्वनि वैज्ञानिकों के एक दल ने वैज्ञानिक जाँच के बाद इन परिस्थितियों के लिए रूस पर आरोप लगाया कि उसने कनाडा के इन नगरों पर रेडियो तरंगें जैसी एक खास तरह की शक्तिशाली तरंगों का प्रहार किया है, जिनके प्रभाव से वहाँ के निवासियों का शरीर व मन दोनों ही अस्वस्थ हो गये हैं।

वास्तव में यह अब कपोल कल्पना नहीं रही कि अस्थायी मनोविकारों से ग्रस्त शत्रु सेना आत्म-समर्पण करने को विवश हो जाये व इन मनोविकारों का कारण ‘ध्वनि-युद्ध’ यानी “साउण्डवार” हो। यह अब उस शीतयुद्ध की विभिन्न शृंखलाओं में सम्मिलित हो चुकी है, जो पूँजीवादी एवं साम्यवादी देशों के मध्य चल रहा है। इस युद्ध में रूस ने अग्रणी रहकर ऐसा अस्त्र बना लिया है जिसके प्रयोग से नियंत्रित रेडियो तरंगें फेंककर शत्रु सैनिकों के मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव पैदा किया जाता है जिससे वे युद्ध विमुख होकर शस्त्र त्याग करने की मनोदशा से आक्रान्त हो जायें एवं आत्म-समर्पण कर दें। ऐसा होने से शत्रुओं पर भयंकर बम या अन्य संहारक अस्त्रों के चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। धन-जन की हानि से बचाव इस नये युद्धास्त्र की एक उपलब्धि होगी।

आखिर ये रेडियो तरंगें क्या हैं? क्या वस्तुतः ध्वनि तरंगों में इतनी शक्ति होती है। ध्वनि विज्ञान हमारे ऋषि-मनीषियों द्वारा प्रतिपादित पुरातन विद्या है जिसके ऊपर मंत्रशक्ति आधारित है। हमारे पूर्वजों ने इसी का आश्रय लेकर ऐसी ऋचाओं का आविष्कार किया जिनके माध्यम से वे तरंगें फेंककर सूक्ष्म वातावरण को भी प्रभावित करते थे एवं स्थूल रूप से विश्व के मानव- मस्तिष्क को भी। मनोयोग से लक्ष्य पर फेंकी गई ध्वनि तरंगें प्रभावोत्पादक होती हैं। इसी पुरातन ज्ञान के आधार पर इन्फ्रारेडियो तरंगों का आविष्कार किया गया है।

इन तरंगों को ट्राँसमिशन टावर द्वारा दूरदेश पर रेडियो तरंगों की ही तरह सीधे फेंका जा सकता है। ये तरंगें सूक्ष्म तरंग पट्टी की आवर्तिता में नहीं है बल्कि उन तरंगों से लम्बाई (वेव लेंग्थ) में कहीं ज्यादा लम्बी और प्रतिसेकेंड आवर्तिता (फ्रीक्वेंसी) में कहीं कम आवर्ती है। इनकी लम्बाई और आवर्तिता मानव मस्तिष्क की विविध तरंगों के आसपास है और इसीलिए ये मस्तिष्क तरंगों को जगह-जगह छूती है, उन्हें काटती हैं, प्रभावित करती हैं और परिणामस्वरूप मन और दिमाग में व्यवधान पैदा करती हैं जिससे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य विकृत हो जाता है। इन तरंगों को ‘रेडियो से इस ओर’ की तरंगें या इन्फ्रारेड वेण्स कहा जाता है।

हमारे रेडियो सेटों को किसी खास स्टेशन को पकड़ने के लिए उसके लिए ट्यून होना पड़ता है, परन्तु उपर्युक्त मामले में रूस से प्रसारित तरंगों की फ्रीक्वेंसी मानव मस्तिष्क रूपी रेडियो सेटों की फ्रीक्वेंसी के आसपास होने से वे स्वाभाविकतः ‘इनट्यून’ हो गये एवं बजने लगे यानी प्रभावित होने लगे। यह प्रभाव अस्थायी होता है। इसमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य इतना ही विकृत किया जाता है कि शत्रु युद्ध से विमुख हो जायें एवं आत्म-समर्पण की मनोदशा में आ जायें। जबकि माइक्रो तरंगों पैदा होने वाली शिकायतें न केवल ज्यादा खतरनाक बल्कि स्थायी प्रकार की होती हैं। माइक्रो तरंग के शिकार रैडार पर काम करने वाले होते हैं। रैडार पीड़ितों का एक संगठन अमेरिका में है जिसके सदस्य द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कुछ ही वर्षों की रैडार साजी के शिकार हो गये हैं। कुछ पर बार-2 हृदय रोग के आक्रमण हुए हैं। कुछ को पक्षाघात, कुछ को मोतियाबिन्द एवं कुछ की प्रजनन शक्ति चली गयी है। इनके बालों का रंग भूरे से लाल हो गया है। इस संगठन के अध्यक्ष जोसेफ टाडने सरकार से आग्रह कर रहे हैं कि माइक्रो तरंगों के बढ़ते खतरों से रक्षा के लिए वह ठोस कार्यवाही करें। ये तरंगें न केवल रक्तरोग पैदा करती हैं अपितु इनसे कैंसर तक हो जाता है।

इन तरंगों के बारे में जो वैज्ञानिक जानकारी हमें उपलब्ध हुई है उससे भय की एक लहर दौड़ जाती है। ये तरंगें मनुष्य को उत्तेजित एवं तुरन्त बाद हताश कर उसे अक्षम बना देती हैं। रूस अकेला ही ‘इन्फ्रारेडियो’ तरंगों के मामले में आगे नहीं है। अमेरिका भी ऐसा आविष्कार कर चुका है।

इस बात की कल्पना करने की आवश्यकता है कि मानव-मस्तिष्क को नियंत्रित करने वाले ये प्रयोग आखिर मनुष्य को किस श्रेणी में ला देंगे? इन तरंगों का सदुपयोग विज्ञान ने संचार साधनों के विस्तार हेतु किया, तब तक तो उचित था, पर जब इनका विनाशकारी उपयोग हो रहा है तो इसकी निंदा की जानी चाहिए। दूसरी ओर कुछ वैज्ञानिक ध्वनि तरंगों का उपयोग कर अल्ट्रासोनिक थेरेपी द्वारा मनुष्य की विभिन्न व्याधियों का उपचार करने का दावा करते हैं। ध्वनि का यही सृजनात्मक उपयोग मंत्रों की विद्या में प्रयुक्त हुआ है। विज्ञान विनाश की ओर न बढ़कर सृजन की ओर बढ़े तो लाखों पीड़ितों की सहायता हो, उन्हें अपने कष्ट से मुक्ति मिले।

मंत्र शक्ति की विधेयात्मक और निषेधात्मक शक्ति की प्रायः चर्चा होती रहती है। शाप और वरदान की बात असंगत नहीं युक्ति युक्त है। समर्थ व्यक्तित्व अपनी विशिष्ट सूक्ष्म प्राण शक्ति में घोलकर ऐसा शब्द प्रवाह उत्पन्न सूक्ष्म प्राण शक्ति में घोलकर ऐसा शब्द प्रवाह उत्पन्न कर सकते हैं जो अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंच कर अभीष्ट प्रभाव उत्पन्न कर सके। शब्द बेधी बाण की चर्चा होती रहती है। कहा जाता है कि यह बाण तरकस से निकलकर उस स्थान पर अचूक निशाना लगाता हैं जहाँ से अमुक शब्द निसृत हुआ था। इस संदर्भ में प्रमाण के अभाव में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता, पर शाप और वरदान की अमोघ शक्ति के बारे में अनेकानेक प्राचीन एवं अर्वाचीन प्रमाण उपलब्ध हो सकते हैं।

मन्त्र साधना से साधक अपनी सामर्थ्य बढ़ाते हैं, दैवी शक्तियों का अनुग्रह प्राप्त करते हैं तथा अन्यान्य व्यक्तियों एवं वस्तुओं को प्रभावित करते हैं। यह न तो कपोल कल्पना है और न अंध विश्वास। इसे शब्द शक्ति का विज्ञान सम्मत प्रयोग कह सकते हैं। मन्त्र की शब्द संरचना उसकी उच्चारण प्रक्रिया, निर्धारित साधना पद्धति- साधक का मनोबल एवं व्यक्तित्व आदि के सम्मिलित स्वरूप से वह शक्ति निखरती है जिसके आधार पर वे चमत्कारी परिणाम उत्पन्न होते हैं जिनकी मन्त्र योग की साधना से अपेक्षा की जाती हैं।

ध्वनि शक्ति का परिष्कृत उपयोग ही मन्त्र साधना है। उससे परोक्ष अध्यात्म उद्देश्य ही नहीं- प्रत्यक्षतः शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन के उपयोगी लाभ भी मिल सकते हैं। वैज्ञानिक क्षेत्रों में ऐसे प्रयोगों को चिकित्सा उपचार का महत्वपूर्ण अंग माना जाने लगा है।

ध्वनि विज्ञान का सृजनात्मक उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी हो सकता है, इसका उदाहरण पश्चिमी जर्मनी के डाक्टरों की वह अनूठी खोज है, जिसमें मूत्राशय या वृक्क की पथरी पर छोड़ी गई ध्वनि तरंगें कुछ ही क्षणों में पथरी को सूक्ष्म-सूक्ष्म कणों में बाँटकर उसे मूत्रमार्ग से बाहर निकाल देती हैं। नियंत्रित ध्वनि तरंगें निश्चित आवृत्तियों में जब छोड़ी जाती हैं, तब वे आसपास के ऊतकों को घायल किये बिना पथरी को पीस डालती हैं। बिना आपरेशन के मुक्ति पाने का यह अद्भुत उपाय है।

उपकरण के उपयोग की विधि यह है कि रोगी को नहाने के एक टब में बैठाया जायेगा और डेढ़ मीटर की दूरी से ध्वनि तरंगें उसके गुर्दे की पथरी को लक्ष्य बनाकर छोड़ी जावेगी जो पथरी को चाहे उसका आकार कितना भी बड़ा हो, भस्म कर देती है।

इससे पूर्व आल्ट्रासोनिक थेरेपी के द्वारा शरीर के विभिन्न जोड़ों में दर्द आदि की चिकित्सा की जाती रही है। चिकित्सा के अलावा रोगों के निदान में भी ध्वनि व प्रतिध्वनि के सिद्धान्त का आश्रय लिया जाता है। हृदय की विभिन्न व्याधियों में उसके कपाटों द्वारा आने वाली प्रतिध्वनि को ग्राफ बनाकर पढ़ा जाता है व तदनुसार बीमारी जानी जाती है। मस्तिष्क में चोट, रक्तस्राव आदि में भी इसी सिद्धान्त के द्वारा रोग का निदान किया जाता हैं।

विज्ञान जिस तत्परता के साथ ध्वनि शक्ति को खोजने और उसका सदुपयोग करने का मार्ग निकालने में दत्तचित्त है उसी प्रकार मन्त्र शक्ति के अनुसंधान में संलग्न होने पर और भी उच्चस्तर के लाभ मिल सकने की सम्भावना है।


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