वैज्ञानिक दृष्टि से अध्यात्म का प्रतिपादन साहित्य

June 1979

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अपने विषय की अनोखी, तथ्य, तर्क और प्रमाणों से परिपूर्ण पुस्तकें।

अध्यात्म तत्वज्ञान को विज्ञान, तर्क, तथ्य, प्रमाण के आधार पर प्रतिपादित करने की युग-पुकार को पूरा करने के लिए ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान के माध्यम से युगान्तरकारी प्रयास किये जा रहे है। उसी प्रयत्न श्रृंखला के अंतर्गत इस प्रयोजन की पूर्ति कर सकने योग्य साहित्य भी प्रकाशित किया जा रहा है। इस सीरीज में प्रथम बार निम्नलिखित 42 पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं। सभी के लेखक परम पूज्य गुरुदेव है। उनकी प्रतिपादन शैली से परिचित लोग भली भाँति जानते हैं कि वे प्रस्तुत विषयों पर कितनी गहराई से प्रकाश डालते हैं और तथ्यों को प्रमाणित करने वाले कितने अकाट्य प्रमाणों और तर्कों का संग्रह करते हैं। उनके अगाध ज्ञान एवं अध्यावसाय का चमत्कार एकबार फिर इस नव प्रकाशन के पृष्ठों पर उछलता देखा जा सकता है।

पुस्तकों की सफाई, छपाई मुखपृष्ठ की सुन्दरता देखने ही योग्य है। प्रकाशन सामग्री की घोर महंगाई के दिनों में भी इन पुस्तकों का मूल्य तीन-तीन रुपया मात्र रखा गया है। कलेवर की दृष्टि से इसे अन्य प्रकाशनों की तुलना में अत्यधिक सस्ता ही कहा जा सकता है।

ईश्वर कोन है? कहाँ है? कैसे है?

ईश्वर को चर्म चक्षुओं से तो नहीं देखा जा सकता है पर उसकी कृतियों को देख कर, उसके अस्तित्व का परिपूर्ण परिचय और प्रमाण मिल जाता है। किस वृत्ति को किस विशेषता और विलक्षणता का देखकर ईश्वरीय सत्ता का आभास, किस प्रकार प्रत्यक्ष होता है इसकी क्रमबद्ध प्रतिपादन श्रृंखला इस पुस्तक में है। प्रस्तुत प्रतिपादनों को पढ़कर नास्तिक भी आस्तिक बन सकते है।

विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व

ईश्वर का अस्तित्व इन्द्रिय गम्य भले ही न हो पर बुद्धि गम्य निश्चित रूप से है। जो इन्द्रियानुभूति को ही सब कुछ मानते हो उनकी बात दूसरी है पर जिसमें बुद्धि को भी प्रमाण और परख का आधार स्वीकार किया हो, उन्हें ईश्वर की सत्ता और महत्ता स्वीकार करने में तनिक भी कठिनाई नहीं हो सकती है। ईश्वर के होने न होने के संदर्भ में जो विवाद चलता रहता है उसका बुद्धिवादी स्तर पर आत्यन्तिक समाधान इस पुस्तक में मौजूद है।

क्या धर्म अफीम की गोली है?

साम्प्रदायिक विकृतियों और वर्ग विशेष में प्रचलित परम्पराओं को धर्म मानकर उसकी उपयोगिता को अमान्य ठहराया जाता रहता है और उस पर अनेकानेक आक्षेप होता है। किन्तु धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझने और उसके प्रतिफल पर दृष्टिपात किया जा सके तो प्रतीत होगा कि ‘धर्म’ व्यक्ति की गरिमा और समाज की व्यवस्था बनाये रहने के लिए कितना उपयोगी और आवश्यक है। अपने विषय की अनूठी पुस्तक।

मनुष्य चलता फिरता पेड़ नहीं

पिछले दिनों अधकचरे विज्ञान के मुरीद ‘आत्मा’ के अस्तित्व से इनकार करते है और मनुष्य को चलते-फिरते पेड़ की उपमा देते हैं। जो जन्म के साथ प्रकट और मरण के साथ समाप्त होता रहता है। इस संदर्भ में नास्तिक मंच से जो कहा जाता रहा है उसके उत्तर में इस पुस्तक के ऐसे तर्क और तथ्य प्रस्तुत किये गये है कि अनास्था में पैर टिक नहीं सकते।

मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु?

मनुष्य क्या है? उसकी मूल प्रवृत्तियां क्या है? उसके स्तर का मूल्याँकन किस कसौटी पर किया जाय? इस संदर्भ में नृतत्व विज्ञान के मंच से पिछले दिनों सिद्ध किया जाता रहा है कि मनुष्य भी अन्य प्राणियों की तरह स्वार्थ सिद्धि के लिए जीवन यापन करने वाला जीवधारी है। नीति, सदाचार, परमार्थ आदि उसके गुण स्वभाव नहीं थे। ये आधार हैं। इस प्रकार की भ्राँतियों का निराकरण करते हुए मानवी सत्ता को देव वर्ग की सिद्ध करने वाली अनूठी पुस्तक है।

आत्मा न नारी है न नर

शरीर भेद से जीव नर मादा बनते, बदलते रहते हैं पर उनमें निवास करने वाली मूल सत्ता लिंग भेद से परे है। इच्छानुसार वह किसी लिंग को अपनाये रहती है और अरुचि होने पर उसे बदल भी लेती है। हर शरीर में नर मादा के दोनों तत्व विद्यमान रहते हैं और उनके समन्वय से जीवन प्रवाह में सन्तुलन बनता है। इस तथ्य को अकाट्य प्रमाणों द्वारा प्रस्तुत करके नर-नारी के बीच चल रही प्रचलित भेद बुद्धि को समाप्त किया गया है।

जड़ के भीतर विवेकवान चेतन

जड़ पदार्थ न तो निष्क्रिय है और न निर्जीव। उनके भीतर भी एक विशेष स्तर की क्रियाशीलता एवं चेतना विद्यमान है। इस तथ्य से अवगत होने पर जड़ें चेतन में समान रूप से विद्यमान ब्रह्मचेतना की सर्वव्यापकता का दर्शन होता है। अर्जुन, यशोदा, कौशल्या, काक भुशुंडी को हुए विराट् दर्शन की झाँकी इस पुस्तक के आधार पर कोई भी कर सकता है।

दृश्य जगत के अदृश्य संचालन सूत्र

कहा जाता है कि यह संसार अपनी धुरी पर आप घूम रहा है। प्रकृति क्रम अपने आप बह रहा है उससे किसी संचालक सत्ता की झाँकी नहीं मिलती। प्रत्येक बाद के इस प्रतिपादन को इस पुस्तक में उखाड़ कर रख दिया गया है और तथ्यों को सामने रख कर सिद्ध किया गया है कि कठपुतली के नाच के पीछे किस बाजीगर की उँगलियाँ किस प्रकार सृष्टि संचालन के समस्त सूत्र बाँधे हुए हैं।

चेतना की प्रचण्ड क्षमता -एक दर्शन

प्रकृति की शक्तियों का स्वरूप और महत्व समझा जाता रहा है। विज्ञान ने इन्हीं का उपयोग करके भौतिक समृद्धि एवं सुविधा साधनों की अभिवृद्धि में आश्चर्य जनक सफलता पाई है। इतने पर भी चेतना की प्रचण्ड क्षमता को जानने और उसका उपयोग करने की दिशा में उदासीनता ही बरती जाती है। यह उपेक्षा छोड़ी जा सके, चेतना की क्षमता को समझा और उसकी प्रचण्डता को जीवन क्रम में जोड़ जा सके तो उससे व्यक्ति और विश्व के वैभव में कितनी अभिवृद्धि हो सकती है; इसकी सारगर्भित जानकारी।

पाँच प्राण-पाँच देव

मानवी काया में काम करने वाले पाँच प्राण कितने रहस्यमय, कितने शक्तिशाली एवं कितनी महान संभावनाओं से भरे पूरे है। इस तथ्य पर इस पुस्तक में प्रकाश डाला गया है। पढ़ने पर आत्मसत्ता के साथ घुले हुए इन पाँच देवताओं की विद्यमानता को अनुभव करके अपने को सौभाग्य शाली होने की अनुभूति होती है। इन पाँच देवताओं को सिद्ध करके सच्चे अर्थों में सिद्ध पुरुष बनने का उत्साह उठता है।

अणु में विभु-गागर में सागर

‘अणोरणीयान् में महतो महीयान्’ कैसे समाया हुआ है। पिण्ड में ब्रह्माण्ड की, बिन्दु में सिन्धु की, परमाणु में सूर्य की, जीव में ब्रह्मा की, सत्ता किस प्रकार अपने समग्र रूप में विद्यमान है। किस प्रकार उस चिनगारी को दावानल बनाया जा सकता है, इसका रहस्योद्घाटन इस पुस्तक में शोधपूर्ण शैली के साथ किया गया है।

तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति

भव बन्धनों से जीव के बंधे होने और मुक्ति को परम पद मानने के संदर्भ में दार्शनिक दृष्टि से बहुत कुछ कहा जाता रहा है। इस संदर्भ में प्रस्तुत किये गये प्रतिपादनों में परस्पर विरोधी तथ्यों की भी कमी नहीं। प्रस्तुत पुस्तक में इस प्रसंग को तात्विक दृष्टि से परखा है और जन जिज्ञासा के समाधान का उपयोगी आधार प्रस्तुत किया है।

मानवी क्षमता-असीम, अप्रत्याशित

तुच्छ समझे जाने वाले मानव प्राणी में बीज रूप में कितनी अद्भुत सम्भावनाएँ भरी पड़ी हैं। उनके जागरण और सदुपयोग से कितने उच्चस्तरीय लाभ उठाये जा सकते हैं, इस रहस्य पर इस पुस्तक में आँखें खोल देने वाला प्रकाश डाला गया है। आत्मबोध और आत्म विकास की दृष्टि से इसमें महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख है।

असीम पर निर्भर-ससीम जीवन

जीवन सम्पदा अपने आप में पूर्ण और समर्थ प्रतीत होता है पर उसकी विशेषताएँ किस प्रकार किसी अन्य पर निर्भर है इसकी चौंका देने वाली जानकारी इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है। पढ़ने पर जी करता है कि उस ‘अन्य’ से असीम से -सम्बन्ध सूत्र और सघन किया जाये ताकि उपलब्ध विभूतियों को असंख्य गुना बढ़ाया और असीम आनन्द पाया जा सके।

संसार चक्र की गति-प्रगति

संसार चक्र किस प्रकार चलता है। उसके साथ किस प्रकार ताल-मेल बिठाया और अनंत ऐश्वर्य कमाया जा सकता है इस तथ्य पर सारगर्भित प्रकाश इस पुस्तक में डाला गया है। यों इस विराट् विश्व में मनुष्य का स्थान नगण्य जितना लगता है पर यदि वह अपने स्वरूप को विस्तृत कर सके तो प्रगति का -अनन्त सम्भावनाओं का द्वारा सामने ही खुला दीखेगा। यही है इसका प्रतिपादन।

पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य

आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार न करने वालों के सामने तो पुनर्जन्म का प्रश्न ही नहीं उठता। कई आस्तिकतावादी प्रतिपादनों में भी पुनर्जन्म से इनकार किया गया है। जीवन दूसरी बार न मिलने की मान्यता अपनाकर मनुष्य में खिन्नता, निराशा, लिप्सा एवं आतुरता जैसी कितनी ही हेय मान्यताएँ पनपती है और मरण अतीव कष्टकारक प्रतीत होता है। प्रस्तुत पुस्तक में उन भ्रान्तियों को हटाकर पुनर्जन्म होने के अगणित प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं। इससे अनवरत जीवन का उत्साह भरा और रचनात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है।

स्वर्ग और नरक की स्वसंचालित प्रक्रिया

स्वर्ग नरक किसी विशेष लोक में अवस्थित माने जाते हैं और उनमें मृत्यु के उपरान्त ही पहुँचने की मान्यता है। प्रस्तुत प्रस्तुत में बताया गया है कि यह दोनों ही मनुष्य के उत्कृष्ट एवं निकृष्ट दृष्टिकोण के फलस्वरूप उपलब्ध होने वाली प्रतिक्रिया भर है। जो आये दिन सामने खड़ी रहती हैं। इन्हें बनाना बिगाड़ना और बदलना किस प्रकार सम्भव हो सकता है इसका उल्लेख इस पुस्तक में है।

मरें तो सही पर बुद्धिमत्ता के साथ

मरना सभी को पड़ता है। पर लोग मूर्खता पूर्वक जीते और रोते कलपते मरते हैं। जब मरण अनिवार्य ही है तो उसकी ऐसी पूर्व तैयारी क्यों न की जाय जिससे कार्य परिवर्तन की घड़ी उत्साहवर्धक प्रवास जैसी प्रतीत हो। इसी तैयारी का अति महत्वपूर्ण परामर्श इस पुस्तक में है।

भूत कैसे होते हैं-क्या करते हैं?

भूतों की करतूतों के सम्बन्ध में अनेकानेक घटनाएँ और किम्वदंतियां देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। उनके होने न होने के सम्बन्ध में विवाद चलते रहते हैं। इस प्रसंग में अधिक गम्भीर और महत्वपूर्ण जानकारी देने वाली सामग्री इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है। जीवन की स्थिति की तरह ही मरणोत्तर स्थिति जानने की जो इच्छा रहती है उसका उपयुक्त समाधान इस पुस्तक में मिलेगा।

पितरों को श्रद्धा दें-वे शक्ति देंगे

भूतों को निकृष्ट और पितरों को उत्कृष्ट स्तर का माना जाता है। भूत हानि पहुँचाते और पितर सहायता करते हैं इन मान्यताओं पर प्रस्तुत पुस्तक में तथ्यपूर्ण प्रकाश डाला गया है, भूतों का डर निकालने और पितरों के साथ आदान-प्रदान करके लाभान्वित होने का उपयोगी मार्गदर्शन इस पुस्तक में है।

शरीर की अद्भुत क्षमताएँ एवं विशेषताएँ

सामान्य से दीखने वाले शरीर में कितनी विशेषताएं और विलक्षणताएँ भरी पड़ी हैं इसकी अविज्ञात जानकारियों का इस पुस्तक में संग्रह है और बताया गया है कि इनका उभरता तथा उपयोग में लाना, किस प्रकार संभव हो सकता है। निरोग, दीर्घजीवी, बलिष्ठ एवं प्रफुल्ल रहो’ के सूत्र का व्यवहार विस्तार इसके पृष्ठों पर अंकित है।

अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

मनुष्य के अन्तराल में ऐसी अद्भुत क्षमताएँ भरी पड़ी हैं जिनके जागृत होने पर वह चमत्कारी, सिद्ध पुरुष, देवात्मा स्तर की भूमिका निभाता है। सर्वसाधारण में इनके न पाये जाने के कारण उन्हें अतीन्द्रिय अथवा अतिमानवी कहा जाता है यह विचित्र सिद्धियाँ चमत्कारी तो लगती हैं; पर उनके स्रोत या सूत्र का पता नहीं चलता। इस पुस्तक में अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि और उनके विकसित करने का मार्ग दर्शन किया गया है।

दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से

प्राणतत्व मानवी चेतना के अन्तराल में सन्निहित दिव्य सामर्थ्यों का उद्गम है। प्राणमय कोश में ऐसी रत्न राशि के भाण्डागार भरे-पड़े हैं, जिनके आधार पर मनुष्य को प्रगति पथ पर द्रुत गति से बढ़ते हुए उच्चतम स्थिति तक पहुँचने का अवसर मिल सकता है। इस प्राणशक्ति को उभारने और उपयोग में लाने का मार्गदर्शन इस पुस्तक में है।

शब्द ब्रह्म-नाद ब्रह्म

सामान्य जीवन में बोलचाल के लिए शब्द शक्ति का प्रयोग होता रहता है। वाद्य एवं घोष में नाद का प्रयोग होता है। ध्वनि तरंगें स्वर लहरियाँ विचारों और भावनाओं को उत्तेजित करके विकास क्रम में असाधारण सहयोग प्रदान करती हैं। अध्यात्म की उच्चस्तरीय भूमि में भी शब्द, ब्रह्म का प्रतिनिधि बनता और मन्त्र रूप में प्रकट होता है। नाद के सहारे ब्रह्म के साथ भावनात्मक आदान-प्रदान चल पड़ते हैं और ब्राह्मीस्थिति की भूमिका तक पहुँचना सम्भव होता है। शब्द और नाद के उच्चस्तरीय रहस्यों का उद्घाटन इस पुस्तक में है।

सपने झूठे भी - सच्चे भी

सपनों का एक अनोखा संसार है जिसके साथ अधिकाँश मनुष्यों को रात्रि का अधिकाँश समय गुजारना पड़ता हैं। वे सार्थक होते हैं या निरर्थक। उनके पीछे कोई रहस्य संकेत छिपा रहता है क्या? कईबार सपने भूत और भविष्य की पूर्णतया सही सिद्ध होने वाली घटनाओं की महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी देते हैं। इस सपने की दुनिया का स्वरूप, रहस्य और प्रतिफल इस पुस्तक में समझाया गया है।

जीव जन्तु बोलते भी हैं- सोचते भी हैं,

मनुष्येत्तर प्राणियों को मूक अथवा निरर्थक बोलने वाला माना जाता है। उनमें विचारशीलता नहीं होती ऐसा भी समझा जाता है। इस पुस्तक में बताया गया है कि प्राणियों की अपनी-अपनी भाषा है, जिसके आधार पर सजातियों के साथ आदान-प्रदान करते है। इसी प्रकार उनमें अपने जीवन में काम आने वाली विचार शक्ति एवं बुद्धिमत्ता भी है। इस तथ्य को जानने पर मनुष्य का सर्वोच्च बनने का अहंकार गलता है। पुस्तक में अपने विषय या प्रतिपादन खोजपूर्ण तथ्यों के साथ किया गया है। उपन्यास की तरह मनोरंजक है।

हम सब एक दूसरे पर निर्भर

सृष्टि की सभी जड़े चेतन इकाइयों का स्वतन्त्र अस्तित्व होते हुए भी वे एक-दूसरे के साथ सम्बद्ध ही नहीं, निर्भर भी हैं। परस्पर सहयोग और आदान-प्रदान के सहारे ही सृष्टि क्रम चल रहा है। एकता के बीच अनेकता की यह स्थिति ही सर्वात्मा का -परमात्मा का अस्तित्व सिद्ध करती है। वसुधैव कुटुम्बकम् की-आत्मवत् सर्व भूतेषु की-सर्व खिल्विदं की मान्यताओं का परिपोषण ‘सह जीवन’ धारा के आधार पर किस प्रकार हो रहा है इस तथ्य की गम्भीर विवेचना।

दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ

प्रत्यक्ष जगत यो सीधा सादा-सा लगता है, पर बारीकी से देखने पर उसके साथ अगणित अनबूझ पहेलियाँ जुड़ी दीखती हैं। इन्हें सुलझाये बिना मनुष्य भूल-भुलैयों में भटकता रहता है और शान्ति एवं प्रगति की अतृप्ति ही बनी रहती है। जिन पहेलियों का समझना और उनका सुलझाना नितान्त आवश्यक है उनका स्वरूप और समाधान इस पुस्तक में दिया गया है।

असामान्य एवं विलक्षण - किन्तु सम्भव और सुलभ

आये दिन ऐसे तथ्य सामने आते तथा घटनाक्रम घटित होते रहते हैं जिनका कारण ढूँढ़ने में बुद्धि हतप्रभ होकर रह जाती है। इन आश्चर्यजनक रोमाँचकारी रहस्यों के पीछे जो तथ्य छिपे रहते हैं, उसे इस पुस्तक में सर्वसाधारण को अवगत कराया गया है। चमत्कारों को देवताओं के कौतूहल मानने वालों का इस प्रतिपादन से सन्तोषजनक समाधान हो सकता है।

धर्म और विज्ञान-विरोधी नहीं पूरक

धर्म मंच से विज्ञान को नास्तिक और विज्ञान मंच से धर्म को अन्धविश्वास ठहराया जाता रहा है। इस विरोध ने दोनों को अपूर्ण और अनगढ़ रखा। तत्व-दर्शन और पदार्थ विज्ञान का समन्वय ही अन्तरंग उत्कृष्टता और बहिरंग सम्पन्नता का लाभ दे सकता है। धर्म और विज्ञान को एक-दूसरे का पूरक एवं सहयोगी बनाने से किस प्रकार समग्र प्रगति का द्वार खुल सकता है इसी की विवेचना प्रस्तुत पुस्तक में है।

विज्ञान को शैतान बनने से रोकें

नीति और मर्यादा की उपेक्षा करके चल रही वैज्ञानिक प्रगति, एक हाथ से सुविधा संवर्धन करती है और दूसरे हाथ से व्यक्ति की गरिमा तथा समाज की सुव्यवस्था पर भारी आघात पहुँचाती है। इस स्थिति को कैसे सुधारा जाय विज्ञान की उपयोगी प्रक्रिया का विनाशकारी प्रयोजनों में होने वाला प्रयोग कैसे रोका जाय, इसी की विवेचना प्रस्तुत पुस्तक में है।

मस्तिष्क-प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष

मस्तिष्क के खोखले में भरी अद्भुत शक्ति सामर्थ्यों को यदि समझा और जगाया जा सके तो परिष्कृत मनः स्तर ही प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष बनता है और ऋद्धि-सिद्धियों से सुसम्पन्न बना देता है। मानसिक सन्तुलन, दिशा निर्धारण, परिमार्जन एवं प्रखरता संवर्धन के ऐसे उपाय इस पुस्तक में बताये गये हैं, जिन्हें अपनाने पर ओजस्वी तेजस्वी और मनस्वी स्तर का महामानव इसी जीवन में बना जा सकता है।

मानवीय मस्तिष्क-विलक्षण कम्प्यूटर

कपाल के अस्थि गह्वर में भरा हुआ तनिक-सा लिवलिवा पदार्थ कितनी विलक्षणताओं और अद्भुत सामर्थ्यों का केन्द्र है इस तथ्य को जितनी गहराई से समझा जाता है; उतना ही चकित रह जाना पड़ता है। मस्तिष्क संसार के सबसे बहुमूल्य कम्प्यूटरों की तुलना में असंख्य गुना शक्तिशाली है। इसमें सन्निहित क्षमताओं के सदुपयोग-दुरुपयोग से मनुष्य किस प्रकार प्रगति अवगति की ओर बढ़ सकता है यही विवेचना इस पुस्तक में है।

चेतना का सहज स्वभाव स्नेह और सहयोग

आधुनिक मनोविज्ञान चेतना का स्वभाव स्वार्थ, संरक्षण एवं आक्रमण अपहरण तक के पुरुषार्थ करके उपभोग के साधन जुटाना बताया है। इस प्रतिपादन से मत्स्य न्याय का औचित्य समझा, समझाया गया है। इस अवाँछनीय प्रतिपादन को निरस्त करके प्रस्तुत पुस्तक में यह सिद्ध किया गया है कि चेतना का स्वभाव उत्कृष्टता को दिशा में अग्रसर होना तथा स्नेह सहयोग भरा आचरण करना है। वस्तुस्थिति समझी जाने पर मनुष्य को अपने स्तर को सुधारने की प्रेरणा मिलती है।

सहृदयता-आत्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य

पशु, पक्षियों, प्राणियों तथा दुर्बलों के प्रति बरती जाने वाली निर्भयता से, दुर्बलों से भी अधिक हानि सताने वालों की होती है- यह प्रतिपादन प्रस्तुत पुस्तक का है। माँसाहार की हर दृष्टि से अनुपयुक्तता सिद्ध की गई है। आत्मिक प्रगति के लिए उदार सहृदयता अपनाया जाना अनिवार्य रूप से आवश्यक है। इस तथ्य को इन पृष्ठों पर उजागर किया गया है।

आध्यात्मिक-काम विज्ञान

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में ‘काम’ को भी पुरुषार्थ एवं सौभाग्य माना गया है। पर वह काम आधुनिक एवं सौभाग्य माना गया है। पर वह काम आधुनिक कामुकता से सर्वथा भिन्न है। कामाचार का निष्कृष्ट स्तर कितना हानिकारक और उत्कृष्ट स्तर कितना प्रेरणाप्रद होता है। इसकी विवेचना मनःशास्त्र तथा अध्यात्म विज्ञान दोनों के ही सहारे की गई हैं। बढ़ते हुए यौनाचार को उपयोगी दिशा देने वाले महत्वपूर्ण तथ्य इस पुस्तक में प्रस्तुत किये गये हैं।

बच्चे बढ़ कर अपने पैरों कुल्हाड़ी न मारें

आज की परिस्थितियों में सन्तान की संख्या बढ़ाना कितना दुर्भाग्यपूर्ण है इस तथ्य को हर दृष्टिकोण से परखा और उजागर किया गया है। सन्तान संख्या बढ़ाने से परिवार की आर्थिक स्थिति, जननी की स्वस्थता, अभावग्रस्त बच्चों की दुर्दशा तथा भार वहन करने में असमर्थ समाज पर इस स्वेच्छाचार का कितना बुरा प्रभाव पड़ता है इस संदर्भ के महत्वपूर्ण तथ्यों का संकलन है। साथ ही सीमित परिवार की बुद्धिमत्ता अपनाने के लिए प्रेरणा भी।

युगशक्ति गायत्री का अभिनव अवतरण

अपने युग की समस्याओं के समाधान तथा उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में आद्य शक्ति गायत्री की भूमिका वैसी ही होगी जैसी कि भूतकाल में अवतारों की रही है। गायत्री मन्त्र में सन्निहित प्रेरणाओं में वे सभी तथ्य मौजूद है जो प्रस्तुत विभीषिकाओं को, विडम्बनाओं को निरस्त करके स्वर्णिम नवयुग का सृजन कर सके। गायत्री का तत्व दर्शन और साधना विधान विश्व के नव-निर्माण में किस प्रकार अपने प्रभाव से विश्वमानव को प्रभावित परिष्कृत करने जा रहे हैं, इसकी तथ्यपूर्ण झाँकी प्रस्तुत पुस्तक में है।

सर्वोपयोगी गायत्री साधना

उपासना के अनेक उपचार, विधान एवं प्रयोग है। इनमें गायत्री महाशक्ति की सामर्थ्य तथा परिणिति असाधारण है। उसे ऋषियों ने सर्वोच्च स्थान दिया है। महान साधकों में से अधिकाँश ने उसी का अवलम्बन लिया है और आत्मिक प्रगति के उच्चस्तर तक पहुँचे हैं। अनजानों से लेकर साधना विधान के निष्णातों तक के लिए यह पुस्तक समान रूप से उपयोगी है। गायत्री की ब्रह्मविद्या का स्वरूप एवं तत्वज्ञान इसमें सुबोध ढंग से समझाया गया है।

गायत्री के पाँच मुख-पाँच दिव्य कोश

गायत्री महाशक्ति के 24 स्वरूपों में एक प्रतिमा पाँच मुख वाली है। इसे सावित्री कहा गया है। पिछले दिनों इस चित्र का प्रचलन भी बहुत रहा है। यह पाँच मुख मानवी सत्ता के अन्तराल में विद्यमान पाँच कोशों के प्रतीक हैं। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनन्दमय कोशों की साधना एवं उपलब्धि की पंचमुखी गायत्री का क्षेत्र माना जाता है। पाँच कोशों का जागरण ही प्रख्यात पाँच देवताओं का प्रत्यक्ष अनुग्रह-अनुदान प्राप्त करना है। यह सब कैसे सम्भव है इसका सुविस्तृत विवेचन इस पुस्तक में देखें।

कुण्डलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि

कुण्डलिनी महाशक्ति प्राण विद्युत, जीवनीशक्ति, प्राणऊर्जा, योगाग्नि, आत्म-ज्योति के रूप में मानवी काया में संव्याप्त है। यह प्रसुप्त स्थिति में पड़ी रहती है। और यौनाचार जैसे विलास प्रमोद में अधोमुखी भी हुई सर्पिणी की भूमिका निभाती है। किन्तु जब उसे जागृत किया जाता है तो षट्चक्रों के विभूति भण्डारों का द्वार खुलता है और मनुष्य दिव्य क्षमताओं से भरा पूरा सिद्ध पुरुषों जैसा जीवन जीता है। इस कुण्डलिनी महाशक्ति का स्वरूप, जागरण विधान एवं उपलब्ध सामर्थ्य के प्रयोग की सुविस्तृत जानकारी इस पुस्तक में है।

ब्रह्मवर्चस की ध्यान धारणा

ब्रह्मवर्चस साधना में पंच कोशों का अनावरण कुण्डलिनी जागरण षट्चक्र वेधन एवं सुसंकल्पों की ध्यान धारणा का समावेश है। इस समग्र साधना पद्धति को ब्रह्मविद्या तपश्चर्या का समन्वय समझा जा सकता है। भौतिक वर्चस और आत्मिक तेजस् की प्राप्ति के लिए क्या धारणा अपनानी और क्या योग साधना करनी होती है इसका क्रमबद्ध शिक्षण इस पुस्तक में है।

उपरोक्त सभी पुस्तकों का मूल्य तीन-तीन रुपया मात्र है। पोस्टेज अलग। दस पुस्तकों से कम की वी.पी. नहीं भेजी जाती। दस पुस्तकों पर वी.पी. खर्च पाँच रुपया निर्धारित मूल्य से अलग लगेगा। किन्तु पूरा 42 पुस्तकों का सैट लेने पर डाकखर्च मँगाने वाले को नहीं देना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त 126 के स्थान पर अग्रिम मूल्य 110 का ड्राफ्ट मनीआर्डर ही स्वीकार कर लिया जायगा। इस प्रकार पूरा सैट लेने पर 16 मूल्य की और लगभग 10 पोस्टेज कुल 26 की बचत हो जायगी।

विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय की सीरीज की यह प्रथम किस्त सभी सभी विज्ञजनों को अपने घरों में रखनी चाहिए और इसे समीपवर्ती विचारशील वर्ग को पढ़ा कर युग प्रवाह को पलटने की सामयिक माँग पूरी करनी चाहिए।


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