अदृश्य शक्तियों का परोक्ष सहयोग

June 1979

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संत, महापुरुष अपने जीवन काल में त्याग, बलिदान का आदर्श प्रस्तुत करते हुए समाज को अनुग्रहीत करते है। उनकी यह परम्परा जीवित रहने तक ही नहीं रहती वरन् मृत्यु के उपरान्त भी बनी रहती है। ऐसी ही आत्माओं के पितर, देवता अदृश्य सहायक कहा गया है।

देखा यह जाता है कि सूक्ष्म रूप में विचरण करती आत्माएँ अदृश्य रूप में सहयोग देती हैं। उन परिस्थितियों में जब मनुष्य का प्रयत्न, पुरुषार्थ एवं शक्ति अपना बचाव कर सकने में भी असमर्थ सिद्ध होती है, अन्तःकरण में दिव्य प्रेरणा के रूप में उनकी अनुकम्पा बरसती दिखाई देती है। ये दिव्य शक्तियों की परोक्ष प्रेरणा अन्तःकरण की स्फुरणा के रूप में परिलक्षित होती है। कभी-कभी तो प्रत्यक्ष माध्यम से भी उनका सहयोग दिखायी पड़ता है।

राजस्थान प्रान्त के जैसलमेर के पश्चिमी रेगिस्तानी इलाके में अनेकों प्रकार के खतरनाक सर्प पाये जाते हैं। इनमें सबसे भयंकर तथा विषधर सर्प है ‘पीना’। कहते है कि यह सर्प रात को निकलता है तथा सोये हुए आदमी के सीने पर सवार हो जाता है। नाक के समीप सटकर मनुष्य द्वारा छोड़ी गई साँस को पीता है और अपनी जहरीली साँस छोड़ता है। उसकी साँस इतनी विषैली होती है कि साँप के चले जाने के बाद उस आदमी के गले में जहरीला फोड़ा हो जाता है। कुछ दिनों में फोड़े के फटते ही आदमी की भी मृत्यु हो जाती है।

इस सर्प की चमड़ी रबड़ जैसी होती है तथा लाठियों के प्रहार से भी नहीं मरता। सूर्य के प्रकाश में यह अन्धा हो जाता है। अमरीकी संग्रहालयों में भी पीना सर्प रखा गया है।

6 नवम्बर 1978 को जैसलमेर के भैरवा ग्राम में एक ऐसी ही घटना हुई जो अदृश्य सत्ता के प्रत्यक्ष सहयोग का प्रमाण देती है। उक्त गाँव के एक सहायक कृषि अधिकारी सरकारी फार्म में कार्यरत थे। हनुमान जी के वे परम भक्त थे। ईश्वर के प्रति उनकी अटूट आस्था थी। एक दिन अपने फार्म का निरीक्षण करते घूम रहे थे। पेड़ पर उन्होंने देखा कुछ बन्दर उछल-कुछ मचा रहे थे। यकायक बन्दरों के पास से निकलते हुए एक आवाज सुनाई दी “साँप से बचना।” चौंक कर उन्होंने ऊपर देखा किन्तु कुछ नहीं दिखायी दिया। एक बन्दर अवश्य पेड़ पर बैठा था। अधिकारी ने मन का भ्रम समझकर भुलाने की चेष्टा की किन्तु उस चेतावनी का डर तो बना ही रहा।

रात्रि को जब अधिकारी महोदय सोने का प्रयास कर रहे थे। इसी बीच उन्हें अपने सीने पर कुछ रेंगती हुए चीज मालूम पड़ी। तेजी से बिस्तर से उठ खड़े हुए रेंगती हुई चीज नीचे गिर पड़ी। बगल में रखी टार्च जलाकर देखा तो सर्प था। बचाव के लिए चिल्लाने पर फार्म में सोये अन्य कर्मचारी पहुँच गये। लाठियों से सर्प पर बारम्बार प्रहार किया गया किन्तु आश्चर्य कि सर्प नहीं मरा। कुछ लोग इस विचित्र सर्प से पूर्व से ही परिचित थे। उन्होंने बताया यह पीना सर्प है जो लाठियों से नहीं मरता। तत्पश्चात् भाले-बल्लम के प्रहार से सर्प मर गया। सर्प की मोटाई साढ़े तीन इंच तथा लम्बाई सवा पाँच फुट थी। वजन इसका 1.3 किलो पाया गया।

ईश्वर की विशिष्ट कृपा का वर्णन करते उक्त अधिकारी महोदय ने सारी घटना एवं अदृश्य चेतावनी की बात सभी को बतायी। उन्होंने कहा कि दी गई चेतावनी के कारण ही हमें नींद नहीं आ रही थी। यदि सो जाता तो सर्प के जहर से बचना असम्भव था।

कहा जाता है मानवी चेतना प्रत्येक परिस्थितियों एवं घटनाओं से जूझने में समर्थ है। किन्तु यह बात प्रत्यक्ष दिखायी देने वाली घटनाओं के संदर्भ में ही लागू होती है। कुछ घटनायें ऐसी होती है जिनके विषय में कुछ भी जानकारी नहीं होती है अथवा कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी आ खड़ी होती हैं जिनमें जीवन-सुरक्षा असम्भव जान पड़ती है। ऐसे विशिष्ट अवसरों पर जब मनुष्य असहाय एवं असमर्थ होता है एकमात्र आसरा उप परमात्मा का ही रहता है। देखा यह जाता है कि इन असहाय परिस्थितियों में अदृश्य शक्ति किसी न किसी रूप में सहयोग करती तथा संकटग्रस्त को उबारती है।

प्रतापगढ़ (उ.प्र.) के जेठवारा थाना के पाती ग्राम में एक ऐसी घटना घटित हुई जिसमें देवी अनुकम्पा प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर हुई। कहा जाता है कि गाँव की एक महिला का पति मर गया। उसका दो वर्ष का बच्चा था। विधवा ने पुनर्विवाह के लिए एक युवक को राजी कर लिया विवाह में एक अड़ंगा आ खड़ा हुआ। युवक का कहना था कि बच्चे के रहते वह विवाह करने के लिए तैयार नहीं होगा। फलस्वरूप लड़की के माता-पिता बच्चे को लेकर हत्या करने के उद्देश्य से एक खेत में ले गये। इसके पूर्व कि गड़ासे का प्रहार बच्चे के ऊपर करें, एक भयंकर सर्प फुफकारता हुआ उनको काटने के लिए आगे बढ़ा। सर्प देखकर वे भयभीत होकर भाग गये। पुलिस ने बाद में उन दोनों को गिरफ्तार कर लिया। इस प्रकार बच्चे की जान बच गई।

दैवी शक्तियाँ समय-समय पर अपने प्रिय पात्रों का सहयोग, अनुग्रह करती रहती है। साथ ही दुष्ट, आतताइयों को उनके कुकृत्यों के लिए भयंकर दण्ड-व्यवस्था भी करती हैं सूक्ष्म जगत में विचरण करती दिव्य आत्माओं का सहयोग अनायास इस रूप में मिलते देखा गया है।

इंग्लैण्ड के न्यायिक इतिहास में उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में एक ऐसी घटना घटी, जिसने कानून व्यवस्था को भी चुनौती दे दी। इंग्लैण्ड के एक्सटर जेल में एक ‘जान ली’ नाम अपराधी बन्द था। हत्या के आरोप में न्यायालय द्वारा उसे मृत्यु दण्ड सुनाया गया। उस समय विद्युत द्वारा फाँसी दी जाने की व्यवस्था आज की तरह नहीं थी। मोटी रस्सी के फंदे द्वारा फाँसी दी जाती थी।

निर्धारित तिथि एवं समय पर डाक्टर ने उसके स्वास्थ्य की परीक्षा की। पादरी ने ‘जान ली’ के किये गये अपराधों के लिए परमात्मा से क्षमा-प्रार्थना की। फाँसी का फंदा उसके गले में डालने के पूर्व जल्लाद जेम्स वेरी ने फाँसीघर के सारे उपकरणों की भली-भाँति जाँच करली। फाँसी का फंदा बनाकर खींचे जाने वाले रस्से को ठीक किया। मजिस्ट्रेट की देख-रेख में अपराधी के गले में फंदा डाला गया। जल्लाद ने पीछे हटकर नीचे के तख्ते को खींचा किन्तु तख्ता बिल्कुल नहीं हिला। पुनः तख्ते का निरीक्षण किया कि सम्भवतः कहीं जाम हो गया हो, किन्तु पाया वह बिल्कुल ठीक था। दुबारा जोर लगाकर तख्ता खींचा किन्तु आश्चर्य कि वह टस से मस न हुआ। जल्लाद ने तीसरी बार तख्ते की जाँच करने के बाद खींचने का प्रयास किया किन्तु असफलता ही हाथ लगी।

तीसरी बार फाँसी पर चढ़ाये जाने की मानसिक पीढ़ा से ‘जान ली’ भीषण ठण्ड में भी पसीने से डूब गया। मजिस्ट्रेट सामने खड़ा सारी कार्यवाही देख रहा था। उसके जीवन की यह अभूतपूर्व घटना थी। वह विस्मित था कि फाँसी के सारे उपकरण ठीक होते भी तख्ता खिसक क्यों नहीं रहा है। निरन्तर सात मिनट तक अथक प्रयास तथा तीन बार फाँसी के तख्ते पर चढ़ाये जाने पर भी उसे मृत्यु दण्ड नहीं दिया जा सका। उस समय के लिए फाँसी को मजिस्ट्रेट ने स्थगित करने का आदेश किया। फाँसी का निर्धारित समय बीत चुका।

सर विलियम कोर्ट में इस मामले को प्रस्तुत करते हुए निवेदन किया गया “कि न्यायालय द्वारा निर्धारित समय पर पूरी सतर्कता एवं सावधानी रखने के बाद भी मृत्यु न दी जा सकी। अतः न्याय की रक्षा के लिए फाँसी के लिए अगला समय निर्धारित किया जाय। उच्च न्यायालय ने अपील को निरस्त करते हुए कहा कि “अपराधिक दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार न्यायालय द्वारा मृत्यु दण्ड की सारी कार्यवाही पूरी हो चुकी है। इस समय को आगे बढ़ाना न्यायालय के क्षेत्राधिकार के बाहर है। विश्व के न्यायिक इतिहास में यह आश्चर्य जनक घटना थी जबकि एक व्यक्ति को निरन्तर 7 मिनट तक फाँसी दी जाती रही हो और वह बच गया हो।

पत्रकारों ने ‘जान ली’ से पूछा कि “वह कैसे बच गया”। उत्तर में उसने कहा कि “वह निर्दोष था, हत्या में उसे किसी प्रकार फँसा दिया गया था। अपनी सफाई एवं समुचित साक्ष्य वह न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सका जिससे उसको मृत्यु दण्ड मिला। फाँसी के तख्ते पर ईश्वरीय न्याय एवं सहयोग की प्रार्थना वह निरन्तर करता रहा। फलस्वरूप किसी अदृश्य शक्ति को प्रत्यक्ष सहयोग करते उसने अनुभव किया।

कभी-कभी यह देवी प्रेरणा, सहयोग व्यक्तियों के अन्तःकरण में अवतरित होकर, उन्हें अनायास इस प्रकार के निर्णय लेने को बाध्य करता है, जिसका कारण तुरन्त जान सकने में वे असमर्थ होते हैं। घटना के घटित होने पर उक्त प्रेरणा का रहस्योद्घाटन होता है। नवम्बर 1950 अमेरिका के वाशिंगटन शहर में प्रसिद्ध लेखक ‘हेराल्ड ग्लक’ चिन्तित होकर अपने कमरे में घूम रहे थे। पत्नी के पूछने पर उन्होंने बताया कि “उनके मन में मछली पकड़ने जाने के लिए बारम्बार प्रेरणा उठ रही है।” मौसम उस समय प्रतिकूल था। तूफानी ठण्डी हवायें चल रही थी। हल्की बूँदा-बाँदी भी हो रही थी। पत्नी के रोकने पर भी हेराल्ड नहीं रुके। अपने निकटवर्ती मित्र के घर पर पहुँचकर मन की बात बतायी। मित्र यह सुनकर अवाक् रह गया। उसने बताया कि -’उसके अन्दर भी उसी प्रकार की प्रेरणा उठ रही है।’ मौसम की प्रतिकूलता भी उन दोनों के निर्णय को बदल न सकी। समुद्र के किनारे पहुँचकर नाव को समुद्री उठती लहरों के बीच खोल दिया। ऊँची लहरों में नाव का सन्तुलन रख पाना कठिन हो रहा था। जैक ने डरकर हेराल्ड से वापस लौट चलने को कहा किन्तु उसने इन्कार कर दिया। कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि दो व्यक्ति समुद्री धारा में डूब रहे हैं। वे अचेतन अवस्था में डूबते-उतराते बहे जा रह हैं। दोनों ने जाल फेंककर बहते व्यक्तियों को नाव में खींच लिया। नाव किनारे ले आकर दोनों बेहोश व्यक्तियों का प्राथमिक उपचार किया। उनकी चेतना वापस लौट आयी।

इन घटनाओं को मात्र एक आकस्मिक संयोग कहकर टाला नहीं जा सकता। भयंकर तूफान में एक साथ ही दो व्यक्तियों के मन में समुद्र में नाव लेकर पहुँचने की प्रेरणा उठना, तूफानी लहरों में भी नाव चलाते हुए साहस बनाये रखना तथा बहते हुए व्यक्तियों को बचाना अकस्मात सम्भव नहीं है। देवी शक्ति ने सुनियोजित ढंग से एक साथ ही दोनों मित्रों को समान विचारों से प्रेरित किया। उद्देश्य था डूबते हुए व्यक्तियों को मृत्यु से बचाना।

अदृश्य शक्तियाँ इस प्रकार अपने प्रिय-पत्रों की न केवल प्रतिकूलताओं में सुरक्षा करती सहयोग देती है वरन् किन्हीं-किन्हीं की भौतिक उन्नति में भी योगदान देती देखी गयी है। जर्मनी के जान ग्रीक की घटना प्रसिद्ध हैं। एक सामान्य सा सरकारी कर्मचारी अदृश्य सहायता से पूँजीपति बना। अपनी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण वह अक्सर चिन्तित रहता था। इसी चिन्ता में एक दिन अपने कमरे में बैठा था कि अचानक उसे आवाज सुनाई दी कि, “तुम नौकरी छोड़ दो तथा सड़क का ठेका लेने का कार्य आरम्भ करो।” कमरे में चारों और उसने दृष्टि दौड़ाई किन्तु कोई दिखायी न पड़ा। मन का भ्रम जानकर उसने आवाज की उपेक्षा कर दी किन्तु दूसरे दिन पुनः इसी प्रकार की निर्देशित आवाज सुनाई दी। कई दिनों तक इस प्रकार की आवाज उसे सुनायी देती रही। देवी शक्ती का निर्देशन मानकर उसने नौकरी छोड़ दी तथा सड़क बनवाने के ठेके का काम आरम्भ किया।

इस कार्य में उसे अप्रत्याशित लाभ होने लगा। ग्रीक का कहना है कि ठेके के कार्य में समय-समय पर एक दिव्यात्मा द्वारा सुझाव, एवं निर्देशन मिलता रहता है। आज जर्मनी के अच्छे पूँजीपतियों में उसकी गणना है। अनेक संकटपूर्ण स्थिति में रक्षा किये जाने की बात को भी ग्रीक ने स्वीकार किया।

अदृश्य देवी सत्ताएँ मनुष्यों की सुरक्षा करती, सहयोग करतीं तथा उन्नति में अपना योगदान देवी हैं।

ऐसी आत्माओं के साथ अध्यात्म साधनाओं के माध्यम से संपर्क साधा जा सकता हैं, उन्हें अधिक सहयोग देने के लिए सहमत किया जा सकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118