स्वप्नों के माध्यम से सूक्ष्म जगत में प्रवेश

January 1979

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“ऐसा कोई स्वप्न जो नींद खुलने के बाद भी याद रहे, दबी हुई आकाँक्षाओं की छद्म पूर्ति की जाती है” इन पंक्तियों में सुप्रसिद्ध यौन विज्ञानी सिगमण्ड फ्रायड ने अपने स्वप्न सिद्धाँतों को सूत्र रूप से कह दिया है। इस सिद्धाँत का विवेचन और विश्लेषण करते हुए फ्रायड ने “द अमर्रजन एण्ड डेवलपमेण्ट ऑफ साहको- एनालिसस” पुस्तक में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मनुष्य रात में सोते समय जो स्वप्न देखता है उनसे वह अपनी दबी हुई कामनाओं विशेषतः राग और यौन आकाँक्षाओं की पूर्ति ही करता है।

यह ठीक है कि अचेतन मन में दबी हुई इच्छायें आकाँक्षायें प्रायः स्वप्न के रूप में भी सामने आती है। परन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है। हमारा मन शरीर के माध्यम से अपनी इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करता है। कई इच्छायें ऐसी भी होती हैं जिन्हें वह अपने आसपास के वातावरण, सामाजिक दबाव और अक्षमता या असमर्थता के कारण पूर्ण नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में वह इच्छा पूर्ति की कल्पनायें भर करता रह सकता है। यह पूरी न होने वाली इच्छायें मन की मन में ही दबी रहती हैं और रात को जब व्यक्ति सो जाता है, तब उन कल्पनाओं को दृश्यों के रूप में देख कर इच्छा पूर्ति का आनन्द लेने लगता है। रात में जब व्यक्ति सो जाता है तो उसका शरीर तो शिथिल हो जाता है पर मन तब भी जागृत रहता है और वही अपनी इच्छाओं आकाँक्षाओं के स्वप्न की इतनी ही व्याख्या की गयी है और मान लिया गया है कि स्वप्न मनुष्य की दमित अपूर्ण इच्छाओं की प्रतीकात्मक पूर्ति मात्र है, इससे अधिक कुछ भी नहीं।

लेकिन भारतीय दर्शन ने स्वप्नों के सम्बन्ध में इससे भी आगे बढ़ कर उनका सर्वांगपूर्ण विश्लेषण किया है। आयुर्वेद के आचार्य सुश्रुत ने लिखा है कि मनुष्य का बात पित्त और कफ कुपित रहता है, तब भी स्वप्न आते है। सोते समय शरीर की विभिन्न अवस्थाओं का भी स्वप्न पर प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि सीधे चित्त हो कर लेटने और छाती पर हाथ रख कर सोने से डरावने सपने आने लगते है।

फ्रायड और शरीर विज्ञान ने स्वप्न के जो कारण बताये वह भारतीय मनीषियों ने पहले ही अथर्ववेद, दैवज्ञ, कल्पद्रुम, सुश्रुतसंहिता, अग्निपुराण आदि ग्रन्थों में लिखे दिये हैं। परन्तु स्वप्नों के इतने भर ही कारण नहीं है। भारतीय मनीषियों के अनुसार मन की गति बहुत तीव्र है। ऋग्वेद के अनुसार-मन संसार के एक कोने से दूसरे कोने तक क्षण भर में पहुँच जाता है-

यत् ते विश्वमिंद जगन्मनो जगाम दूरकम् यत् ते पराः पाँरवतो मनो जगाम दूरकम्। 10।58।11

कठोपनिषद् में कहा है-‘‘यन्मन सहाइन्द्र,-अर्थात् मन विदुद शक्ति के समान हैं। मन सामान्य स्थिति में अपने शरीर अपने विषयों तक ही सीमित रहता है इसलिए स्वप्न की सामान्य अवस्था में ऐसे ही ऊलजलूल और ऊटपटाँग स्वप्न आते है; जिनमें से कई तो याद भी नहीं रहते। शास्त्रकारों ने इस प्रकार के स्वप्नों को तामसिक स्वप्न बताया है।

जब शरीर में या स्वप्न अवस्था में रजोगुण प्रधान रहता है तो उस समय में जागृत दशा में देखे हुए पदार्थ ही कुछ रूपांतर से दिखाई देते हैं ऐसे स्वप्न जागने के बाद भी याद रहते है। शास्त्रकारों ने इन स्वप्नों से भिन्न प्रकार के स्वप्नों का भी उल्लेख किया है जिन्हें सात्विक स्वप्न कहा है। इस स्थिति को उत्तम कहा गया है और बताया गया है कि ऐसे स्वप्न मन के आत्म भूत होने पर देखे जाते हैं।

स्वप्नावस्था में मन का आत्मा से सम्बन्ध किस प्रकार होता है इस तथ्य को एक छोटे से उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। रेडियो की सुई 340 किलो साईकिल्स पर लगते ही हमारा रेडियो दिल्ली के रेडियो स्टेशन से प्रसारित शब्द तरंगों को पकड़ने लगता है और बोलने लगता है। ऐसा इसलिए होता है कि छोटे से रेडियो का विद्युत सम्बन्ध रेडियो स्टेशन की विद्युत से जुड़ गया है। उपरोक्त प्रकार के स्वप्नों में जो सूक्ष्म, नियंत्रित और निर्मल मन द्वारा ही देखे जाते हैं, मन किसी भी क्षण आत्मा से सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और भूत, भविष्य, वर्तमान की काल सीमा और देश, स्थान की मर्यादा से बाहर की घटनायें, वस्तुएँ भी देखने लगता है।

स्वप्नों में भविष्य की घटनायें दिखाई देना इसका एक प्रमाण है। “सखाइवल ऑफ मैन पुस्तक के लेखक सर ओ. लोज ने भी अपनी पुस्तक में इस तथ्य को स्वीकार किया है कि मन के माध्यम से हम स्वप्न अवस्था में अलौकिक जगत् और भविष्य में होने वाली घटनाओं को देख जान लेते है। इसकी पुष्टि में “सखाइवल ऑफ मैन” पुस्तक में एक ही घटना दी गई है, जो इस प्रकार है- ‘‘पादरी इ. के. इलियट समुद्री यात्रा पर थे और उस समय उन्होंने स्वप्न देखा कि 14 जनवरी 1887 को उनके पास उनके चाचा का एक पत्र आया है जिसमें छोटे भाई की मृत्यु की सूचना है। उस दिन जब फादर इलियट ने यह स्वप्न देखा 14 दिसम्बर 1886 की तारीख थी। फादर इलियट ने यह स्वप्न अपनी डायरी में नोट कर लिया और अपने सारे कार्यक्रमों को रद्द कर अगले पोर्ट से ही वापस रवाना हो गये। जिस समय वे वापस घर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि उनका भाई जिसे वह टाइफ़ाइड में छोड़ गये थे अब ठीक हो गया है। कुछ दिनों तक तो वे सोचते रहे कि उन्होंने बेकार ही अपनी यात्रा रद्द की और व्यर्थ ही स्वप्न के कारण भ्रम के शिकार हुए। परन्तु कुछ ही दिनों बाद उनका भाई फिर बीमार पड़ गया। उसे दुबारा टाइफ़ाइड हो गया था और उसी तारीख को जिसे इलियट ने समुद्री यात्रा के समय स्वप्न में देखा था उनके भाई का देहान्त हो गया।”

यह घटना स्वप्नों में पूर्वाभास के अलावा और क्या हो सकती है। परमहंस परिव्राजकोपनिषद् में इस प्रकार के स्वप्नों को “तेजस स्वप्न” कहा गया है। जिनके सम्बन्ध में महर्षि ने बताया है कि इनमें भविष्य के संकेत छिपे रहते हैं। लन्दन के इण्डिया हाउस की लाइब्रेरी में टीपू सुल्तान की डायरी है। टीपू अपने विचार, कल्पनाओं और योजनाओं का इस डायरी में लिखता रहता था, इस डायरी में दो ऐसा स्वप्नों का उल्लेख है। जिससे उसने देखा कि उसके बाग की तीन ताजी खजूरे एक चाँदी की तश्तरी में उसके सामने रखी है। जो लोग खजूरे लेकर आये थे। उनमें से एक तो निजाम अली था और, दो अन्य दूसरे सरदार थे। यह स्वप्न उसे कई दिनों तक दिखाई देता रहा। उसके कुछ महीनों बाद ही टीपू के राज्य में निजाम अली तथा दो अन्य सरदारों ने अपने राज्य विलय कर दिये।

एक और स्वप्न में टीपू ने देखा कि चीन के बादशाह का दूत उसके पास एक सफेद हाथी लेकर आया है और कह रहा है ऐसी भेंट चीनियों ने केवल सिकन्दर भर को दी है। यह स्वप्न भी टीपू ने कई बार देखा और अर्थ लगाया कि वह भी सिकन्दर जैसा महान विजेता है। इसके बाद ही उसने अंग्रेजी रियासतों पर हमला करना आरम्भ किया और अपने साम्राज्य को काफी बड़ा कर लिया।

स्वप्न केवल मन की अतृप्त इच्छाओं, वासनाओं की पूर्ति ही नहीं है। फ्रायड और अन्य फ्रायडवादी मनोवैज्ञानिकों की यह व्याख्या एकाँगी तथा अपूर्ण है। क्योंकि स्वप्नों में ऐसी कई बातें दिखाई देती है। जिनका इच्छाओं और वासनाओं से कोई सम्बंध नहीं होता। फ्रायड द्वारा प्रतिपादित स्वप्न सिद्धाँत का एक अंश ही मान्य हो सकता है। इस सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विज्ञान सम्मत जानकारियाँ हमारे भारतीय आचार्यों, योगियों तथा तत्वदर्शियों ने दी है। “परमहंस परिव्राजकोपनिषद्” के महर्षि ने एक चौथे प्रकार के स्वप्नों का उल्लेख भी किया है। जिसमें जो दृश्य दिखाई देते हैं वे हूबहू वैसे ही घटते हैं।

इस स्वप्नों को “तुरीय स्वप्न” कहा गया है जिनमें मन चेतना आत्म चेतना के साथ घुलमिल जाती है और अनागत भविष्य को भी देख लेती है। पौराणिक साहित्य में तो ऐसी असंख्यों घटनायें बिखरी पड़ी है परन्तु इस प्रकार की घटनायें पश्चिम में भी कम नहीं घटी है क्योंकि आत्म चेतना के लिए तो पूर्व पश्चिम का कोई भेद है ही नहीं। सीजर की पत्नी कैलपूर्निया ने अपने पति की हत्या से काफी पहले एक स्वप्न देखा था, जिसमें उसके पति की हत्या की जा रही थी। कैलपूर्निया ने अपने पति तथा अन्य लोगों को इस बारे में बताया भी परन्तु किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। अन्ततः जब सीजर की हत्या हो गयी तो लोगों को कैलपूर्निया के कथन की सत्यता का अनुभव हुआ।

नेपोलियन के सेनापति जनरल बैकमैन, अब्राहमलिंकन, हेनरी तृतीय और कैनेडी को अपनी हत्या स्वप्न में पहले ही देख जाने के उदाहरण भी इसी बात को सिद्ध करते हैं। ब्रिटेन के दो बार प्रधान मन्त्री बने सर विंस्टन चर्चिल ने अपनी जीवनी में स्वीकार किया है कि उन्हें स्वप्न में दो बार चेतावनी मिली और इन स्वप्नों के कारण वे बच गये।

स्ट्रेटन नामक व्यापारी ने एक स्वप्न देखा कि एक स्थान पर सोना निकल रहा है। जागने पर उन्होंने जाँच किया तो उस स्थान पर पथरीले टीले के अलावा कुछ नहीं था। लेकिन स्ट्रेटन ने वह स्वप्न बड़ी स्पष्टता से देखा था और न जाने क्यों उसे यह विश्वास हो गया था कि उसका सपना सही है। वह स्वप्न में देखे गये स्थान पर गया और वहाँ खुदाई आरम्भ करवा दी। सचमुच ही वहाँ सोना मिला और आज अमेरिका के कोलेटैडा राज्य में राकफील्ड स्थित स्ट्रेटन की खदानें संसार की दूसरी सबसे बड़ी खाने है।

लार्डकिल ब्रेकन का तो दावा था कि उन्हें एक दिन पहले ही स्वप्न में दिखाई दे जाता है कि रेस में कौन सा घोड़ा जीतेगा और वे उसी घोड़े पर रकम लगा कर जीत जाते हैं। लन्दन के प्रसिद्ध अखबार “डेली मिरर” ने उनकी परीक्षा करने के लिए रेस से पहले ही उनसे घोड़े के बारे में पूछलिया। रेस में वही घोड़ा जीता जो किल ब्रेकन ने बताया था।

फ्रायड के अनुसार यदि स्वप्न केवल रागात्मक जीवन से ही सम्बंधित है और उनमें मनुष्य की अपनी दबी अधूरी इच्छायें ही पूरी होती है तो उपरोक्त स्वप्नों का क्या कारण है। वस्तुतः स्वप्न मन के क्रीड़ा कलोल भी है और उसकी अनुभूतियाँ भी। यही कारण है कि स्वप्न सार्थक भी होते हैं और निरर्थक भी। सिगमण्ड फ्रायड के स्वप्न सिद्धांत का खण्डन अब आधुनिक मनः शास्त्री भी करने लगे हैं। प्रख्यात मनोविज्ञान वेत्ता काल गुस्ताख़ जुँग ने कहा है कि- “दैनिक जीवन की घटनाओं और संवेदनाओं का प्रभाव स्वप्नों में रहता तो है, पर स्वप्न इतने ही सीमित नहीं है। ब्रह्माँड में प्रवाहित होते रहने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के कारण पराचेतना में अनेक प्रतिबिम्ब तैरते रहते हैं। मनुष्य की अनुभूतियाँ उनसे प्रभावित होती हैं और वह प्रभाव व्यक्ति की निज की स्थिति के साथ सम्मिलित होकर स्वप्न जैसी विचित्र प्रतिक्रिया भी उत्पन्न करता है।

अर्थात्-व्यक्ति की सीमित चेतना विराट् चेतना के साथ मिल कर जिस स्तर का अनुभव करती है उसका आड़ाटेड़ा और सीधा-सीधा परिचय स्वप्न संकेतों के रूप में मिल जाता है। कोई स्टेशन ठीक से न पकड़ पाने के कारण रेडियो जिस तरह की गड्डमड्ड ध्वनियाँ निकालता है उसी प्रकार मन का आत्मचेतना से मेल संयोग यदि सीधा सही हो तो स्वप्नों में स्पष्ट संकेत भी मिल जाते हैं। मन के इधर-उधर भटकते रहने पर ऊलजलूल निरर्थक स्वप्न भी आते है।

कौन से स्वप्न सार्थक हैं और कौन से निरर्थक इसका कोई स्पष्ट विश्लेषण नहीं किया जा सकता। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के मन की संरचना भिन्न-भिन्न प्रकार की है। परन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि शुद्ध, सात्विक, निर्मल और परिष्कृत मन ही सूक्ष्म जगत् के स्पन्दनों को पकड़ने में समर्थ होता है। अशुद्ध, निकृष्ट और मलीन मन खराब रेडियो की तरह व्यर्थ और निरर्थक शोरशराबा ही उत्पन्न करेगा, जिसकी न कोई उपयोगिता है और न आवश्यकता ही।


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