अपनों से अपनी बात - इस वर्ष की सत्र श्रृंखला का विवरण और आमंत्रण

January 1979

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अखण्ड-ज्योति परिवार की नर्सरी में उगने बौर बढ़ने वाले पौधे अगले दिनों विश्व परिवार के नंदनवन विकसित कर सकें और अपने कल्प वृक्ष जैसे अस्तित्व व्यक्ति की विशिष्टता को देवोपम सिद्ध कर सके, प्रयत्न इसी का चल रहा है। अपनी पारिवारिकता का यही उद्देश्य और यही स्वरूप है। सफलता कहाँ तक मिलती है यह दूसरी बात है। प्राणवान सहयोगी और समर्थ साधन मिलने पर छोटे काम बड़े हो जाते हैं और इनके अभाव में विशाल संभावना वाले वट वृक्ष भी सूखते नष्ट होते देखे गये हैं। परिस्थिति क्या परिणाम उत्पन्न करेंगी। यह आगे की बात है। मनःस्थिति यही है कि हम लोग मिल जुलकर एक ऐसी सद्भाव सम्पन्न आत्मीयता विकसित करें जिसे नव युग की भूमा के रूप में क्रियान्वित होते देखा जा सकें।

प्रशिक्षण और सान्निध्य की उभय पक्षीय प्रक्रिया ही व्यक्तित्वों को ढालने का काम करती है। बौद्धिक समाधान और समर्थन एक पक्ष है। दूसरा वह है जिसमें वातावरण का अप्रत्यक्ष प्रभाव अन्तराल की गहराई में उतरता चला जाता है और ऊँचे आदर्शों की समीपता अपनी ऊर्जा से प्रभावित करके निकटवर्ती के अनुगमन की प्रेरणा देती है। भावनात्मक उत्कर्ष के लिए सदा से इन दोनों ही पक्षों का समन्वित प्रयोग होता रहा है। अब या भविष्य में जब भी व्यक्तित्वों का उच्चस्तरीय निर्माण अभीष्ट होगा तब इन्हीं उपाय उपचारों को कार्यान्वित करना होगा।

चिंतन तथ्य के अनुरूप अखंड ज्योति परिजनों का स्तर ऊँचा उठाने के लिए बौद्धिक प्रशिक्षण, युग साहित्य के माध्यम से किया जाता रहा है। दूसरा सान्निध्य वाला पक्ष किसी रूप में क्रियान्वित तो पहले से भी होता रहा है पर पिछले सात वर्ष से हरिद्वार का शान्ति कुँज आश्रम बनने के उपरान्त तो उसी को प्रमुखता दी जाने लगी है। यहाँ जीवन साधना सत्रों का कई स्वरूप में प्रयोग चलता रहा है। बड़ी संख्या में परिजन उसमें समय-समय पर सम्मिलित होते रहे हैं। इसका प्रभाव परिणाम क्या हुआ इसका संक्षेप में एक ही उत्तर है कि प्रयत्न का सत्यपरिणाम आशातीत निकला है। “पिछले दिनों इस प्रयास की सफलता ने जो उत्साह एवं साहस प्रदान किया है कि उसके आधार पर इस प्रक्रिया को और भी अधिक व्यवस्थित एवं तीव्र कर देने का निश्चय किया गया है। इस निश्चय को कार्यान्वित भी जल्दी ही किया जा रहा है। गायत्री नगर के निर्माण कम में थोड़ी और तेजी आ सकी अवरोध हट सकें तो आशा की जा सकती हैं कि अगली छमाई में वह उपक्रम चल पड़ेगा जिसकी रूप रेखा बनाने में उपलब्ध दूर दृष्टि का पूरा-पूरा उपयोग किया गया है तथा उपलब्ध साधनों को पूरी तरह झोंक दिया गया है।

स्थान और समय का ध्यान रखते हुए कई शिविरों को थोड़े थोड़े समय के लिए करते रहने का चार किया गा। अभी मात्र दिवाली तक के आठ महीनों की ही योजना बनाई गई है। अनुभव, आवश्यकता एवं साधनों का ध्यान रखते हुए अगले कदम परिस्थितियों के अनुरूप उठाये जाते रहेंगे। अभी तो सामयिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ही सान्निध्य के साथ उपयुक्त आदान प्रदान के लिए उतना ही प्रबन्ध किया गया है जितना इन दिनों नितान्त आवश्यक एवं साधनों को देखते हुए सम्भव था।

जनवरी से सितम्बर तक के लिए निर्धारित सत्रों का क्रम इस प्रकार बना है-

(1) ता. 25 जनवरी से 3 फरवरी 79 तक बसन्त पर्व पर दस दिवसीय साधना सत्र सर्व साधारण के लिए।

(2) ता. 4 फरवरी से 13 फरवरी 79 तक दस दिवसीय सत्र उन परिव्राजकों के लिए जो अप्रैल मई जून में होने वाले महायज्ञ आयोजनों के लिए दो-दो महीने के लिए कार्य क्षेत्र में भेजे जायेंगे।

(3) ता. 29 मार्च से 6 अप्रैल तक चैत्र नवरात्रि का साधना सत्र। गायत्री लघु अनुष्ठान, उपयुक्त वातावरण एवं मार्ग दर्शन में करने वालों के लिए।

(4) मई जून में दस दस दिन के छः साधना सत्र (1) 1 से 10 मई तक (2) 11 से 20 मई तक (3) 21 से 30 मई तक। (4) 1 जून से 10 जून तक (5) 11 से 20 जून तक (6) 21 से 30 जून तक।

(5) कन्या सत्र 1 जुलाई से आरम्भ होकर दस महीने- 30 अप्रैल तक चलेगा भविष्य में एक वर्षीय शिक्षण दस महीने में ही पूरा कर दिया जाया करेगा।

(6) परिव्राजकों एवं टोली नायकों का प्रशिक्षण। जुलाई-अगस्त-सितम्बर के पूरे तीन महीने में। इस अवधि में न्यूनतम एक महीने के लिए और अधिकतम तीन महीने के लिए शिक्षण में सम्मिलित हुआ जा सकता है।

(7) आश्विन नवरात्रि एक दिवाली दशहरा की छुट्टियों में दस दस दिन के दो साधना सत्र। नवरात्रि सत्र 22 सितम्बर से 30 सितम्बर 79 तक और दशहरा दिवाली की छुट्टियों का सत्र ता 2 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक का रहेगा।

इन छः हों सत्रों का प्रयोजन और स्वरूप फिर एक वार अच्छी तरह समझ लेने की आवश्यकता है।

बसन्त सत्र (क्र.1) बसन्त पर्व मिशन का जन्म दिन है, उस अवसर पर सर्वत्र युग चेतना की वर्षा होती है। नई प्रेरणाओं का अदृश्य लोक से अभिवर्धन इस अवसर पर विशेष रूप से होता हैं। पिछले दिनों घनिष्ठ स्वजनों की इस अवसर पर साथ रहने की इच्छा रहती है। साथ साथ साधना भर चलती है। इस बार महापुरश्चरण योजना के अंतर्गत सर्वत्र गायत्री यज्ञों की धूम है। बसन्त पर्व पर हर शाखा को अपने यहाँ तथा अपने समीपवर्ती क्षेत्रों में पाँच कुण्डी आयोजन करने के लिए कहा गया है। उस उत्तरदायित्व का निर्वाह करने को प्राथमिकता दी गई है। इसलिए इस क्रम से ही लोगों को आ सकने का अवसर मिलेगा। फिर भी परम्परा के अनुरूप सत्र तो होगा ही।

दस दिवसीय प्रव्रज्या सत्र (क्र.2) बसंत पंचमी के बाद वाला दस दिवसीय सत्र परिव्राजकों के प्रशिक्षण के लिए तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए रखा गया है। परिव्राजक पंजीयन के आवेदन भर कर भेजने वालों में एक या दो माह का समय देने में सक्षम तथा परिव्राजक पंजीयन के आवेदक भर कर भेजने वालों में एक दो माह का समय देने में समक्ष तथा परिव्राजक उत्तरदायित्व संभालने योग्य परिजन बड़ी संख्या में है। उनमें से जो 1 सितम्बर से 15 सितम्बर 78 के प्रशिक्षण में नहीं पहुँच सके थे, उन्हें प्रशिक्षण देकर होली के बाद सम्पन्न होने वाले आयोजनों को संभालने के लिए तैयार किया जायगा।

साधना सत्र (क्र. 3, 4 एवं 7) इस वर्ष गायत्री महा पुरश्चरण शृंखला के अंतर्गत लाखों नये साधक मिशन में सम्मिलित हुए है। स्वभावतः उनकी आकांक्षा शान्ति कुँज के वातावरण और उपयोगी सान्निध्य में कुछ दिन रहने ओर साधना करने की होगी। इन्हें दस दिवसीय सत्रों में सम्मिलित होने का अवसर मिल सके इसके लिए अगली दिवाली तक 9 सत्र रखे गये हैं। एक अभी चैत्र की नवरात्रि (क्र. 3) में तीन मई और तीन जून (क्र. 4) में और दो आश्विन (क्र. 7) में इस प्रकार कुल 9 सत्रों में ही साधकों को स्थान मिल सकेगा जो इस वर्ष नये साधकों के रूप में मिशन में सम्मिलित हुए।

ग्रीष्म के साधना सत्र 1 एक गर्मी के दो महीनों में न केवल पढ़ने पढ़ाने वालों को वरन् अन्याय वर्ग के लोगों को भी घर से बाहर जाने की सुविधा रहती है। अस्तु इनमें दस दस दिन के छः सत्रों की व्यवस्था की गई है। इनमें सभी को 24 हजार जप का अनुष्ठान इस पुनीत वातावरण में रह कर करना होगा। अध्यात्म को व्यवहार में उतारने और चमत्कारी प्रतिफल प्राप्त करने का सामान्य मार्ग दर्शन को सभी को मिलेगा साथ ही व्यक्ति विशेष की स्थिति के अनुरूप उसके अवरोधों से जूझने तथा प्रगति पथ पर चलने का विशिष्ट परामर्श एवं सहयोग भी उपलब्ध होगा। इन सत्रों में से कोई अपनी सुविधानुसार चुना जा सकता है।

कन्या सत्र क्र.5:- कन्या सत्र। इसमें 24 वर्ष से अधिक आयु की तथा आठवीं कक्षा से अधिक पढ़ी शारीरिक और मानसिक दृष्टि से निरोग कन्याओं की ही भर्ती की जानी है। अगले दिनों परिवार निर्माण अभियान को चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया जाना है। उसका नेतृत्व सुविकसित नारी हो कर कर सकेगी। नव योग में नारी का वर्चस्व प्रधान रहेगा। समय की इस आवश्यकता को पूरा कर सकने में समर्थ प्रतिभाओं को निर्माण जिस प्रशिक्षण के माध्यम से हो सकता है, यह सत्र उसी की भूमिका है। यों यह शिक्षा कई वर्ष की होनी चाहिए पर अखण्ड ज्योति परिवार की अधिक कन्याएँ सीमित स्थान एवं सीमित समय में लाभ उठा सकेगा इसलिए थोड़े समय की ही यह शिक्षा संभव हो सकी। व्यक्तित्व का विकास पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह-महिला जागरण अभियान में योगदान इन तीनों ही विषयों का इस संक्षिप्त प्रशिक्षण में समुचित समावेश है। स्वावलम्बन के लिए अनेक उद्योगों की शिक्षा दी जाती है। होम नर्सिंग की शिक्षा अब विशेष रूप से बढ़ा दी गई जिसके आधार पर लड़कियाँ अपने परिवार की स्वास्थ्य संरक्षिका बन सकेंगे। संगीत एवं भाषण का अभ्यास अनिवार्य रूप से कराया जाता है। प्रयत्न यह किया जाता है कि कन्या इस थोड़ी सी ही अवधि में इतनी सुसंस्कारिता प्राप्त कर सके जिसके आधार पर वह अपने निज के लिए-अपने परिवार के लिए, समाज के लिए सच्चे अर्थों में गृह लक्ष्मी युवा नेत्री सिद्ध हो सके।

प्रव्रज्या सत्र (क्र.6):- प्रव्रज्या अभियान इन दिनों प्रौढ़ावस्था में है। जागृत आत्माओं ने युग देवताओं ने इस सान्ध्य वेला में समय दान की माँग की है। प्राणवानों ने उदारतापूर्वक यह अनुदान प्रस्तुत भी किये हैं। वरिष्ठ कनिष्ठ और समय दानी वर्ग के प्रव्रज्या अभियान में सम्मिलित होने वालों तथा टोली नायकों, कार्यवाहकों को अपना उत्तर दायित्व ठीक कर निर्वाह कर सकने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण मिलने की आवश्यकता है। अपनी वर्तमान परिस्थितियों के के साथ मेल बिठा कर कौन, कहाँ, किस प्रकार क्या कर सकता है। इसके लिए हर व्यक्ति को परिस्थिति के अनुरूप मार्गदर्शन मिलेगा कुछ योग्यताएं ऐसी है जो इन समस्त युग शिल्पियों में होनी चाहिए। भाषण कला, सामान्य संगीत ज्ञान गायत्री यज्ञ तथा पर्व संस्कारों में निपुणता, स्लाइड प्रोजेक्टर, टेपरिकार्डर एवं लाउडस्पीकर का उपयोग, यह कर्म ऐसे है जो हर युगशिल्पों को आने चाहिए। जुलाई, अगस्त, सितम्बर की अवधि इन्हीं तीन योग्यताओं के संवर्धन के लिए रखी गई है। जिन्हें भविष्य में धर्म तन्त्र से लोकशिक्षण का महान प्रयोजन पूरा करना है युग शिल्पियों की भूमिका निभानी है जन जागरण का शंख बजाना है उनमें यह सभी योग्यताएँ होनी चाहिए जो इन तीन महीनों के सत्रों में दी जाने वाली है।

जुलाई, अगस्त, सितम्बर में से किसी में भी युग शिल्पियों को एक महीने के लिए आने की छूट है। किस में आया जायगा इसका निश्चय निर्धारण समय से पूर्व ही कर लेना चाहिए स्थान और शिक्षण की दृष्टि से तीनों में शिक्षार्थी समान संख्या में रखने पड़ेंगे इसलिए शिक्षार्थियों की सुविधा के साथ साथ शाँति कुँज के सीमित स्थान का भी ध्यान रखना होता है। इस दृष्टि से समय का निर्धारण पहले से ही कर लेना चाहिए। एक का स्थान भर जाने पर दूसरे में ही अवसर मिल सकेगा। संगीत प्रशिक्षण तीन महीने से कम में पूरा नहीं हो सकता। इसलिए गायन वादन का काम चलाऊ शिक्षण होने के लिए तीन महीने से में काम नहीं चल सकता। जिन्हें पहले का अभ्यास है वे कुछ कम समय में भी आवश्यक योग्यता प्राप्त कर सकते है। जितने समय अधिक रहा जायगा उतनी ही योग्यता बढ़ेगी। निश्चय ही एक महीने की अपेक्षा दो महीने-दो के स्थान पर तीन महीने ठहर सकने वाले अधिक योग्यता प्राप्त कर सकेंगे। कौन कितना समय निकाल पाता है यह अपनी स्थिति पर निर्भर है।

उपरोक्त तीन महीने के परिव्राजक सत्र इस दृष्टि से और भी आर्थिक महत्वपूर्ण है कि गायत्री महा पुरश्चरण शृंखला अब एक वर्ष तक सीमित नहीं है। उसकी अवधि 24 महीने कर दी गई है। रजत जयन्ती वर्ष 25 वें वर्ष में बनाया जा रहा है। उच्च स्तरीय सूत्रों का नया संदेश आया है कि सूक्ष्म वातावरण में अभीष्ट ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए 24 महीने तक इस पुण्य प्रक्रिया को चलने देना चाहिए तद्नुसार अब जितने आयोजन इस वर्ष हुए है उनमें भी अधिक अगले वर्ष होंगे। उनमें परिव्राजक वक्ता एवं गायकों की बड़ी संख्या में जरूरत पड़ेगी। यह बाहर के किराये के लेने से काम नहीं चलेगा। जिनके मन में मिशन रमा हुआ है वे ही ठीक तरह आलोक वितरण की-जन् जागरण की आवश्यकता पूरी कर सकते हैं। अस्त, तीन महीने के उपरोक्त प्रशिक्षण को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इसी अवा में इतने बर्तन पक जायेंगे, जिससे अगले वर्ष के लिए लोक नायकों की आवश्यकता पूरी हो सके। इसके लिए जितने शिक्षार्थी बुलाये जा रहे है, उसके अनु रूप ही उपयुक्त अध्यापकों का भी प्रबन्ध किया जा रहा है।

वर्ष के प्रारम्भ में ही अगले आठ महीनों की सत्र योजना का प्रकाशन इसलिए किया गया है कि जिन्हें इनमें से किसी में सम्मिलित होना हो वे अपना स्थान समय से पहले ही सुरक्षित करा लें। सर्व विदित है कि अपना देव परिवार आँधी तूफान की तरह बढ़ रहा है। इस वर्ष महा पुरश्चरण योजना के अंतर्गत नये साधकों की संख्या प्रायः दूनी हो गई है। शान्ति कुँज के प्रभावी प्रशिक्षण, दिव्य वातावरण और प्राणवान सान्निध्य में कुछ समय रहने, साधना करने परामर्श पाने की इच्छा अनेकों को रहती है। सीमित स्थान और सीमित समय में सभी को स्थान नहीं मिल पाता। ठीक समय पर आवेदन पत्र भेजने वाले को स्थान पर जाने के कारण प्रायः निराश हो रहना पड़ता है। इसलिए इस सूचना के साथ आमंत्रण भेजा जा रहा है कि अगले आठ महीनों के उपरोक्त सत्रों में से किसी में जिन्हें सम्मिलित होना हो वह समय से पहले ही अपने विस्तृत परिचय सहित आवेदन पत्र भेज कर स्वीकृति प्राप्त करलें।

श्रम जीवी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता

जागृत आत्माओं से युग देवता ने समय दान की माँग की है। तदनुसार भाव भरे उत्तर मिले है। जीवन दानियों की आत्माहुतियाँ बड़ी संख्या में मिल रही है। वे ऐसे ऊँचे स्तर की तथा इतनी अधिक है कि उनसे परिवार का हर सदस्य अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर सकता है।

इन जीवन दानियों में से अधिकाँश ऐसे है जो अपनी निर्वाह आजीविका का पूरा अथवा अधिकाँश अपने संचित साधनों से ही बना कर आये है। कुछ ही ऐसे है जिनके निर्वाह की पूरी व्यवस्था का उत्तरादयित्व मिशन को सम्भालना पड़ रहा है। थोड़े से ही जीवनदानी ऐसे भी है जिनके निर्वाह में कमी पड़ने वाला भाग मिशन को पूरा करना पड़ता है।

इनके अतिरिक्त ऐसे कितने ही भाव भरे परिजन पत्र लिखते रहते है कि उन्हें शान्ति कुँज के वातावरण में रहकर अपना और अपने परिवार का भविष्य उज्ज्वल बनाने की उत्कृष्ट आकांक्षा है। निर्वाह के लिए वे कुछ भी परिश्रम कर सकते है-अपनी आजीविका स्वयं चलाना चाहते है। उनके ‘पास संचित सम्पदा नहीं है।

ऐसे लोगों में से कुछ को इस वर्ष यहाँ काम मिल सकता है। गायत्री नगर एवं ब्रह्मवर्चस के नये निर्माण में कुछेक ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता होगी, जो यहाँ रह कर परिश्रम पूर्वक आजीविका प्राप्त कर सकते है। और यहाँ के स्वर्गीय वातावरण में परिवार सहित या एकाकी जीवन यापन कर सकते है। ऐसे कुछ श्रम जीवी अगले दिनों इस प्रकार चाहिए।

(1) रसोइया फुर्ती से अधिक मात्रा में भोजन पका सकने के अनुभवी।

(2) माली जो पेड़, पौधे, घास आदि लगाने के पहले से अभ्यस्त रहे हों।

(3) धोबी जो कपड़े धोने का धंधा करते रहे हैं।

(4) मोटर ड्राइवर-डीजल तथा पेट्रोल की गाड़ियां चलाने के अभ्यस्त।

(5) लकड़ी का काम जानने वाले बढ़ई। इमारत चुनने, पुताई, रंगाई आदि करने का कौशल जानने वाले।

(6) झाड़ू बुहारी लगाने वाले, सफाई कर्मचारी, मुस्तैद चौकीदार।

बाजारू पारिश्रमिक की दर पर नहीं अपेक्षा कृत कुछ सस्ते पड़े, ऐसे ही स्वयं सेवी स्तर के लोगों की आवश्यकता है। इच्छुक लोग अपना परिचय तथा अनुभव और वेतन लिखते हुए शांतिकुंज हरिद्वार के पते पर पत्र व्यवहार कर लें।

अनुसंधान कार्य के लिए सहयोग उपेक्षित

ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान का विवरण पिछले अंक में छप चुका है। इसके लिए आवश्यक साधन तत्परता के साथ जुटाये जा रहे हैं। प्रयोगशाला के लिए बहुमूल्य यंत्र उपकरण मंगाये गये हैं जो यज्ञ चिकित्सा तथा अन्यान्य साधनाओं की प्रतिक्रिया का प्रमाण निष्कर्ष प्रस्तुत कर सके। इन प्रयोगों के कार्य संचालन के लिए उपयुक्त शिक्षा संपन्न सुयोग्य प्रतिभाएं आ चुकी हैं और आ रही हैं आशा की जानी चाहिए विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय का अद्भुत आविष्कार अगले दिनों संपन्न हो सकेगा। यदि अभीष्ट प्रयोजन में सफलता मिलती है तो इसे अपने समय की अनुपम एवं युगांतकारी उपलब्धियां कहा जा सकेगा।

प्रयोगशाला के माध्यम से वैज्ञानिक अन्वेषण के अतिरिक्त अनुसंधान का दूसरा पक्ष है दार्शनिक पर्यवेक्षण। विचारणाओं, भावनाओं, आस्थाओं, मान्यताओं का उत्कृष्ट निकृष्टता का स्वरूप तथा उसका प्रतिफल जिस आधार पर प्रस्तुत किया जाता है उसे अध्यात्म या तत्व दर्शन कहते हैं। ब्रह्म विद्या का यही क्षेत्र है। स्वाध्याय, सत्संग, मनन चिंतन की सारी प्रक्रिया इसी पर घूमती है। योग साधना एवं तपश्चर्या के विभिन्न उपचार इसी क्षेत्र में विभूतियां उत्पन्न करने के लिए किये जाते हैं। ऋद्धि-सिद्धियों का चमत्कारी और विभूतियों का स्वर्ग एवं मुक्ति का- आत्म साक्षात्कार ब्रह्म साक्षात्कार का यही क्षेत्र है।

समस्त संसार में अध्यात्म विद्या पर विभिन्न प्रकार के प्रयोग तथा प्रतिपादन हुए हैं। संकीर्णता एवं हठ वादिता ने उन्हें एक प्रकार से संप्रदाय बना दिया है आवश्यकता इस बात की है कि इस समस्त विस्तर को सामने रखकर नये सिरे से पर्यवेक्षण किया जाय और उसमें से क्या कितना, वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप पूर्व साधारण के व्यवहार में आने योग्य रह गया है उसका विचार मंथन एवं प्रयोग परीक्षण के आधार पर पता लगाया जाय। इसके लिए ग्रंथों का अध्ययन, विचार मंथन, परामर्श आदि अनेकों कदम उठाने होंगे। इसके अध्ययन का क्षेत्र अधिक व्यापक, विस्तृत एवं प्रमुख है। शोध संस्थान में यह कार्य सुशिक्षित विचारशील व्यक्तियों की सहायता से चलेंगे।

वेतन देकर इन कार्यों के लिए प्रतिभाएं खरीद सकना ब्रह्मवर्चस आरण्यक की वर्तमान स्थिति में सर्वथा बाहर की बात है। इसके लिए जो सहयोग होगा वह ऋषि स्तर का होगा। उच्च शिक्षा प्राप्त गृह कार्यों में निर्वाह आजीविका की दृष्टि से आत्म निर्भर व्यक्ति ही इस कार्य में सहयोगी सिद्ध हो सकेंगे। ऐसी प्रतिभाएं अखण्ड-ज्योति परिवार में हों और वे अपना समय दान उदारता पूर्वक परमार्थ बुद्धि से दे सकें तो अपना विस्तृत परिचय देते हुए पत्र व्यवहार कर लें। यह समयदान उन्हें हरिद्वार रहकर ही देना होगा प्रस्तुत शोध कार्य ऐसा नहीं है जो अपने घरों पर रहकर भी संपन्न किया जा सके।

इस शोध संदर्भ में एक काम ऐसा है जो उन स्थानों के सुशिक्षित सहयोगी अपना थोड़ा-थोड़ा समय देकर भी कर सकते हैं- जहां सुसंपन्न विशालकाय पुस्तकालय हैं, विश्व विद्यालय हैं वहां जाकर आवश्यक विषयों की पुस्तकों का पता लगायें और उनमें से अभीष्ट संदर्भों को पढ़ते रहने तथा नोट करे भेजते रहने का कार्य संभालें। ऐसा मात्र उन्हीं स्थानों पर किया जा सकता है जहां अच्छा साहित्य केन्द्र है। छोटे नग कस्बों में न तो ऐसी उच्चस्तरीय साहित्य सामग्री मिलती है और न वहां ऐसी खोज के लिए क्षेत्र ही होता है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ, इलाहाबाद, बनारस, आगरा, कानपुर, मेरठ जैसे थोड़े से नगर ही ऐसे शोध प्रयोजन के क्षेत्र हो सकते हैं। अन्य प्रांतों के संबंध में भी यही बात है। जो उस प्रकार की सहायता कर सकें उन्हें अपनी योग्यता तथा स्थानीय स्थिति की जानकारी देते हुए आवश्यक पत्र व्यवहार शांतिकुंज हरिद्वार के पते पर कर लेना चाहिए।


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