(लाखन सिंह भदौरिया)
(लाखन सिंह भदौरिया)
रोज खोया गंवाया है दिन आपने, ध्यान आया नहीं! ध्यान आया नहीं॥
ठीक हैं प्राण ये पेट भर कर जिये! एक क्षण क्या जिये, दूसरों के लिये? नित्य खोया वृथा प्राणधन, आपने, ध्यान आया नहीं ध्यान आया नहीं॥
जिंदगी क्या सुमन-गंध बन कर रही? श्वास-गति क्या कभी द्वन्द बन कर रही? नाद से क्या जगाया है क्षण आपने, ध्यान आया नहीं। ध्यान आया नहीं॥
पांखुरी-पांखुरी से मिली क्या कभी, बन सकी आंख, गंगाजली क्या कभी, एक भी क्या खिलाया सुमन आपने, ध्यान आया नहीं। ध्यान आया नहीं॥
प्राण अनुदान कितना मिला है तुम्हें, देव वरदान, कितना मिला है तुम्हें, एक कण भी चुकाया है, ऋण आपने, ध्यान आया नहीं। ध्यान आया नहीं॥ रोज खोया गंवाया है, दिन आपने, ध्यान आया नहीं॥
*समाप्त*