अतीन्द्रिय शक्तियों का आधार हमारा मन

January 1979

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भारतीय तत्ववेत्ताओं ने मन सर्वशक्तिमय इन्द्रियातीत ज्ञान का आधार और परमब्रह्म का ही लघुरूप माना है। सामान्यतः हमारे जो भी देखने सुनने में आता है उसके सम्बन्ध में यह प्रतीत होता है कि हमने आँखों से देखा अथवा कानों से सुना। इसी प्रकार सुगन्ध, स्पर्श, रसास्वादन आदि अनुभूतियाँ भी इन्द्रियों के माध्यम से होती हुई दिखाई देती है परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। इन्द्रियों के माध्यम से मन ही अनुभूतियाँ ग्रहण करता है और संवेदनायें व्यक्त करता है। किसी भी दिशा में दृष्टि लगी रहे तो भी मन यदि किसी और विषय में लगा हुआ हो तो वह आँखों से दिखाई देने पर भी नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि मन कही और लगा रहता है।

सोते समय आँखें बन्द रहती हैं फिर भी स्वप्न में चित्र विचित्र दृश्य दिखाई देते है। और उन्हें देखने के लिए नेत्रों का खुला या बन्द रहना कोई महत्व नहीं रखता। कान आस-पास होने वाली ध्वनि को ही सुन पाते है, पर नींद में कानों से भी प्रायः कुछ नहीं सुनायी देता और स्वप्न में ऐसी ध्वनियाँ सुनाई देती हैं जो अपने आस-पास तो नहीं ही होती हैं। यह सब इसलिए कि इन्द्रियों का स्वामी, नियन्त्रण कर्ता, नियोक्ता और उनके माध्यम से ज्ञान तथा अनुभव करने वाला मन ही होता है।

दैनंदिन जीवन में मन की सामान्य शक्तियों का ही अनुभव आभास होता है। परन्तु मन की शक्तियों को किसी सीमा या परिधि में नहीं बाँधा जा सकता है। भारतीय मनीषियों का कथन है कि मन की शक्तियों को ब्रह्मा में तादात्म्य कर हाड़ माँस का मनुष्य भी भगवान के समान हो जाता है। उसकी शक्तियों का आश्चर्यजनक और चमत्कारिक विकास इसी अवस्था में होता है। इसी कारण आत्म विकास के लिए की जाने वाली समस्त साधनाओं में जप ध्यान और एकाग्रता द्वारा मन को ही नियंत्रित संयमित किया जाता है। महर्षि वशिष्ठ ने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘योगवाशिष्ठ में कहा है--’मन सब प्रकार की शक्तियाँ हैं। वह अपने भीतर जैसी भाव करता है क्षण भर में वैसा ही हो जाता है।

योग साधनाओं द्वारा मन की इस शक्ति को विकसित किया जा सकता है तथा विलक्षण शक्तियों का स्वामी बना जा सकता है। प्रसिद्ध फ्रांसीसी विद्वान लुई जकालियान ने जो बहुत दिनों तक भारत में रहकर योगविद्या का अध्ययन अन्वेषण करते रहे इस तरह कई उदाहरणों का उल्लेख किया है जिनमें उन्होंने योग के द्वारा मानसिक शक्तियों के अद्भुत विकास की घटना प्रत्यक्ष देखी। लुई जकालियान ने गोविन्द स्वामी नाम दक्षिण के एक योगी के सम्बन्ध में लिख है पानी भरे हुए घड़े को वह दूर बैठकर अपनी मानसिक या शक्ति से आगे पीछे कर देता था और हवा में उड़ा सकता था। उसके आदेश पर जल से भरा हुआ घड़ा भी अधेर में लटक जाता हुआ मैंने देखा हैं। भारती योगियों के इन करतबों को कई लोग मनोरंजन व दृष्टि से देखते है, पर मुझे उस कौतूहल के पीछे किसी व रहस्य की अनुभूति होती है। ऐसा लगता है कि मनुष्य के मन में वह शक्तियाँ हैं जिनका विकास यदि किया जा सके तो मनुष्य जीवन की अनेक गुत्थियों को सुलझाया जा सकता है।

मास्को (रूस) की एक महिला नेल्या भिखाई लोक सिर्फ घड़ी की ओर देखकर उसका चलना रोक सकते है। वह मेज पर रखे बरतनों और भोज्य पदार्थों को भी खिसका सकती है। दिशासूचक यन्त्र (कम्पास) की सूल जो केवल चुम्बकीय शक्ति [मैगनेटिक फील्ड] से ही प्रभावित होती है। उसे भी अपनी शक्ति से किसी भी दिशा में घुमा देती है। रूस के प्रसिद्ध समाचार पत्रों ‘मास्कोवास्काया’ ने उक्त महिला की इस विलक्षण शक्ति पर टिप्पणी करते हुए लिखा है- मनुष्य के मन में वस्तुतः विज्ञान से परे विलक्षण शक्तियाँ भी विद्यमान है। उनका विकास कर लिया जाय तो आधुनिक विज्ञान उनके सामने एक छोटा सा बच्चा ही सिद्ध होगा।”

स्थूल शरीर से होने वाली इंद्रिय शक्तियों के सम्बन्ध में वैज्ञानिक और जीवशास्त्री भी यह मानते हैं कि शरीर में इन्द्रियों की चेतना और उनकी शक्ति का अस्थायी महत्व है। उनकी शक्तियों का असली स्त्रोत तो मस्तिष्क में विद्यमान है। थैलामस नामक एक पिण्डली (गैंगलियन) भीतरी मस्तिष्क में होती है जो मस्तिष्क के केन्द्र में अवस्थित होती हैं। यह स्थान सभी तन्मात्राओं (शब्द, रूप, रस, ग्रन्थि के सूक्ष्म रूप) के ठहरने का स्थान है। यहीं से पीनियल ग्रन्थि निकलती है जो तीसरे नेत्र का काम करती है, “पिट्यूटरी ग्लैण्डस्” और मंडुला ऑफ लोंगलेटा’ शरीर के संपूर्ण अवयवों का नियन्त्रण करती है। ये सब मन से ही सम्बन्धित हैं। मन की सत्ता यद्यपि मस्तिष्क से सूक्ष्म है। फिर भी मस्तिष्क का शरीर में महत्वपूर्ण स्थान है। मस्तिष्क के वह केन्द्र जो ऊपर बताये जा चुके हैं यदि काट दिये जाँय तो शरीर के अन्य सब संस्थान बेकार हो जायेंगे।

भारतीय तत्त्वदर्शन के अनुसार मस्तिष्क मन का स्थूल स्वरूप मात्र है। इससे भी सूक्ष्म और सामर्थ्यवान बुद्धि, चित्त और अन्तःकरण है जो मस्तिष्क से कई गुना शक्तिशाली है। भौतिक जानकारियाँ संग्रह करने वाले चेतन मस्तिष्क और स्वसंचालित नाड़ी संस्थान को प्रभावित करने वाला अचेतन मस्तिष्क ही अभी तक विज्ञान की परिधि में आया है। मन की सूक्ष्म सत्ता और विलक्षण शक्ति ‘सामर्थ्य का विश्लेषण कर पाने में अभी सफलता नहीं मिल सकी है; फिर भी विज्ञान इतना तो स्वीकार करने ही लगा है कि विज्ञान की परिधि में आने वाली मस्तिष्कीय क्षमता के अतिरिक्त मनुष्य में एक ऐसी क्षमता भी विद्यमान है। जिसे अतीन्द्रिय और अभौतिक कहा जा सकता है। क्योंकि बहुत−सी घटनायें आये दिनों प्रकाश में आती रहती है जिससे भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास, परोक्ष दर्शन और अनदेखे भूत, भविष्य वर्तमान का आभास होने तथा उनके अक्षरशः सही उतरने के प्रमाण मिलते रहते हैं।

यह प्रमाण इतने प्रामाणिक व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किये गये होते है कि उनमें किसी प्रकार के संदेह की गुंजाइश ही नहीं रहती है। गेटे द्वारा अपने निवास स्थान से हजारों मील दूर सिसली में एक भयंकर भूकम्प ही तीव्र अनुभूति-जानेथन स्विफ्ट द्वारा उस समय मंगल ग्रह के दो चन्द्रमा होने की बात कहता जब वैज्ञानिक मंगल के चन्द्रमा की कल्पना भी नहीं करते थे आदि ऐसी ही घटनायें है। प्रसिद्ध लेखक जे. डब्ल्यू. उने ने अपनी पुस्तक ‘एन एक्स पोर्ट मेण्ट’ विद द टाइम में लिखा है कि क्रेस्टोआ द्वीप में हुए ज्वालामुखी के भयंकर स्फोट की जानकारी उन्हें काफी समय पहले ही हो गयी थी और इस बात को उन्होंने अपने मित्रों को भी बता दिया था।

विकसित मनःचेतना में भविष्य के आभास और परोक्ष दर्शन की ही क्षमतायें विद्यमान हों ऐसा नहीं है। बल्कि मन के द्वारा दूसरों के मनोभाव पढ़ लेने, जो कुछ संसार में हैं उसे प्राप्त कर लेने तथा और भी कितनी ही विलक्षण जानकारियाँ, उपलब्धियों के अतिरिक्त जिन्हें सिद्धियाँ भी कहा जा सकता है और भी कई विलक्षणतायें हैं जो न तो पूरी तरह उल्लेखित की जा सकती हैं और नहीं उनके बारे में कुछ बताया जा सकता है।

अभी तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कम्प्यूटर को इसीलिए आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता है कि वह घण्टों में हल किया जाने वाला कोई प्रश्न सेकेंडों में हल करके रख देता है, परन्तु कुछ वर्षों पूर्व दक्षिण भारत को एक साधारण महिला ने कम्प्यूटर को भी पछाड़ दिया। बैंगलौर की रहने वाली शकुन्तला देवी बिना एक क्षण का विलम्ब किये गणित का जटिल से जटिल प्रश्न भी सामने रखते ही उसका उत्तर बता देती है। लन्दन में उनके इस कार्यक्रम का टेलीविजन पर प्रदर्शन किया गया और ब्रिटेन के बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने उन्हें गणित का जादूगर कहा।

कुछ महीनों पूर्व ही एक जैन मुनि अमेरिका गय। तो उनके अवधान प्रयोग वहां चर्चा का विषय रहे वे भी गणित की सात आठ संख्याओं का इतनी ही संख्याओं से गुणनफल कुछ सेकेंड में बता देते थे जब कि कागज पेंसिल लेकर बैठे लोग घंटों तक उन सवालों को करने बैठे और जो हल उन्होंने निकाले वे अक्षरशः सही निकले। जैन मुनियों द्वारा प्रदर्शित किये जाने वाले अवधान प्रयोग कही भी देखे जा सकते हैं और इसके पीछे कोई रहस्यमय सिद्धियाँ नहीं होतीं बल्कि मुनि स्वयं घोषित करते हैं कि यह मनकी शक्तियों को साधने का कमाल है।

इन उदाहरणों और घटनाओं द्वारा मन की शक्तियों का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। अध्यात्मविदों ने मन की इन शक्तियों को आत्मसाधना की उपलब्धि, आत्मा का वरदान ही कहा है। इन्हीं बातों को देख कर वैज्ञानिक शरीर में आत्मा जैसी किसी सर्व व्यापक शक्ति के अस्तित्व की बात स्वीकार करने लगे हैं। भले ही अभी उसका विस्तृत अध्ययन कर पाना सम्भव न हो पाया था। अमेरिका के प्रसिद्ध जीव शास्त्री और चिकित्सा विज्ञान के माने हुए पण्डित डाक्टर एम. डी. कुले ने वर्जीनिया के मेडिकल कॉलेज में व्याख्यान देते हुए बताया था कि - मनुष्य के जीवन का आधार केन्द्र हृदय नहीं वरन् मस्तिष्क है। यद्यपि मस्तिष्क का सम्पूर्ण विश्लेषण अभी नहीं किया जा सका है, पर यह मानने के पर्याप्त आधार हैं कि मनुष्य की जीवन चेतना विज्ञान के स्थूल उपकरणों से नहीं समझी जा सकती।

इस तथ्य को भारतीय ऋषियों और योगियों ने हजारों वर्ष पूर्व ही जान लिया था। आज भी समाधि अवस्था में आत्म चेतना को ब्रह्माण्ड (मस्तिष्क) में चढ़ा कर विना साँस लिए कहीं भी दवे पड़े रहने के सैकड़ों प्रयोग सफलता पूर्वक किये जाते हैं। इन प्रयोगों के आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य के शरीर में प्रत्येक सेल के भीतर उस सामूहिक प्रक्रिया का नाम ही जीवन या मन है और उसमें सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता के लक्षण विद्यमान है।

योगवाशिष्ठ में भगवान राम ने महर्षि वशिष्ठ को बताया है- “जैसे बीज के भीतर पुष्प, शाखा और पत्तों की तथा मृत्तिका में घट की सम्भावना छिपी रहती है, जड़ पदार्थ के भीतर भी वासना विद्यमान रहती है। जड़ पदार्थों में विद्यमान वासना की तरह ही संसार की सब वस्तुओं के भीतर भी चित्त (मन) विद्यमान है। यह शक्ति सम्पूर्ण जड़ चेतन में वासना के रूप में सोई हुई उसके रस के रूप में सदैव वर्तमान रहती है। (3140120)”

उपरोक्त पंक्तियों में शास्त्रकार ने जहाँ एक महान दार्शनिक सत्य को उद्घाटित किया है वहीं उसका विश्लेषण भी कर दिया है। अर्थात् संसार में जितनी भी धातुयें या पदार्थ हैं चेतना (मन) उन सबसे सूक्ष्मतम है। वह मनुष्यों में वासना के रूप में सोयी रहती हैं किंतु यदि उसे संयमित कर लिया जाय तो मनुष्य अपने में उन सभी शक्तियों को विकसित देख सकता है; जिनकी कल्पना हम परमात्मा में करते हैं। अर्थात् वासनाओं से उन्मुक्तमन ही ईश्वर हैं।

मन में इस तरह की असंख्य सामर्थ्यों का भण्डार छुपा हुआ है। मन ही जीवन है, मन ही सब सिद्धियों का साधन है, मन ही देवता और भगवान् है। मन का पूर्ण विकास ही एक दिन मनुष्य को अनन्त सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी बना देता है पर इस दिशा में कठोर आत्म संयम, साधना तपश्चर्या के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता।


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