महा बिहार में भिक्षुओं की स्थिति का निरीक्षण करते हुए भगवान बुद्ध एक कुटिया में पहुँचे तो उसमें रहने वाला साधक रुग्ण अवस्था में मल मूत्र से सना पड़ा मिला।
पूछने पर मालूम हुआ कि उसे अतिसार है। कोई दूसरा उसकी सहायता करने नहीं आता।
तथागत ने आनन्द से जल माँग कर उसे स्वच्छ किया, उठाकर बिस्तर पर सुलाया और चिकित्सा की व्यवस्था की। साथ ही निकटवर्ती कुटियाओं में रहने वाले भिक्षुकों को भुलाकर पूछा-कोई उस रोगी की सहायता क्यों नहीं करता।
उत्तर में सभी ने एक ही बात कही- वह किसी के काम नहीं आता, सदा अकेला रहता और उपेक्षा भाव बरतता है। फिर कोई क्यों उसकी सहायता करे?
तथागत ने कहा-अज्ञान का बदला ज्ञान से और संकुचित वृत्तिका सुधार उदारता से होता है क्या तुम इतना भी नहीं जानते। क्या तुमने नहीं सुना कि परमार्थ बदले के लिए नहीं अपनी ही करुणा को विकसित करने के लिए किया जाता है।