जिस प्रकार प्रत्यक्ष शरीर के पीछे परोक्ष जीवात्मा का निवास है। काया पर जीवात्मा का अधिकार है उसी प्रकार इस पंच भौतिक संसार के पीछे एक चेतन जगत की सत्ता विद्यमान है। स्थूल जगत के विभिन्न पदार्थ यों अलग−अलग आकृति प्रकृति के हैं और उनके निवास स्थान पृथक−पृथक हैं, फिर भी वे सब एक ही शरीर के मध्य रहने वाले असंख्य कोशाओं की तरह मिल-जुलकर निवास करते हैं। एक-दूसरे के पूरक हैं और परस्पर जुड़े हुए हैं। आकाश में ग्रह−नक्षत्रों का स्थान दूर−दूर है तो भी वे एक दूसरे के साथ आकर्षण शक्ति के रस्सों से जुड़े हुए और जोड़े हुए हैं।
इस समूचे ब्रह्माण्ड में ईश्वर तत्व भरा हुआ है उसी के माध्यम से शब्द और प्रकाश की लहरें बहती और एक स्थान से दूसरे तक पहुँचती हैं। ग्रह−नक्षत्रों की खोज खबर लेने के लिए जो राकेट भेजे जाते हैं उनकी प्रेषित सूचनाएँ धरती तक आती हैं। यह परिप्रेषण ईथर की उपस्थिति से ही सम्भव हो पाता है। चन्द्रमा पर हवा न होने से शब्दों को बोलना और सुनना सम्भव नहीं हो सकता। किन्तु ईथर वहाँ भी मौजूद है। इसलिए रेडियो प्रणाली को अपना कर चन्द्र तल पर खड़े हुए दो मनुष्य परस्पर वार्त्तालाप कर सकने में समर्थ हो सकते हैं। विशाल समुद्र के मध्य अनेक टापू होते हैं, जल जीव रहते हैं, इसी प्रकार ब्रह्माण्ड−व्यापी प्रकृति सत्ता के अन्तराल में जो स्थूल शक्तियाँ काम करती है उससे पदार्थ जगत परस्पर बँधा हुआ है और आदान−प्रदान का लाभ उठाता है।
स्थूल पंच भौतिक जगत की तरह ही उसके अन्तराल में एक प्राणवान चेतना जगत है। उसमें ब्रह्म तत्व भरा हुआ है। इसी व्यापक ब्रह्माण्डीय चेतना में जीवधारियों के अनेक घटक स्वतन्त्र रूप से विचरण करते हैं। इतने पर भी वे सब एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं और आदान-प्रदान का लाभ ले रहे हैं। यह पारस्परिक सम्बन्ध सूत्र इतने पतले हैं कि उन्हें देख और समझ सकना मोटेतौर से हर किसी के लिए सम्भव नहीं हो सकता। लोग तो अपने आपको भी शरीर भर मानते हैं और उसी के पोषण−तोषण में लगे रहते हैं। आत्मा की प्रतीति तक नहीं होती, यदि होती तो उसके लिए भी कुछ तो करने की बात सोची ही जाती। इतनी गहरी खुमारी में ब्रह्म सत्ता को समझना और उसके साथ सम्पर्क मिलाना अति कठिन है, फिर भी योगाभ्यास और तप साधना के द्वारा उसे प्रयत्नपूर्वक जागृत किया जा सकता है। इस जागृति के फलस्वरूप जो कुछ इन्द्रियातीत है वह इन्द्रियगम्य बन सकता है। जो बुद्धि की सीमा से बाहर है वह उसकी पकड़ में आ सकता है। जानने और करने के मार्ग में जो व्यवधान है वे दूर हो सकते हैं।
कई बार ऐसे प्रसंग भी आते हैं कि बिना प्रयत्न के अनायास ही यह शक्तियाँ किन्हीं विशेष व्यक्तियों में जागृत पाई जाती हैं। इसका कारण प्रायः पूर्वसंचित संस्कारों और अभ्यासों का प्रतिफल होता है, पर इस विवाद में न पड़ा जाय तो भी इन चमत्कारी असाधारण कही जाने वाली घटनाओं से इतना तो पता चलता ही है कि मनुष्य में अतीन्द्रिय क्षमता के स्रोत विद्यमान हैं। उन्हें आध्यात्मिक साधना में अथवा भौतिक उपाय उपचारों से विकसित अवश्य किया जा सकता है। कठिनाई यह रही है कि शोध में समर्थ, सुयोग्य एवं साधन सम्पन्न व्यक्तियों को ऐसे तथ्यों पर विश्वास नहीं हुआ जो व्यक्ति और विश्व में प्रकृति नियमों से ऊपर ही किन्हीं अलौकिक सामर्थ्यों को प्रतिपादित करते हैं। जिन्हें विश्वास था, वे शोध एवं विकास के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठा सकने की स्थिति में नहीं थे।
पिछले दिनों ऐसी अनेक घटनाएँ सामने आई हैं जिनके आधार पर चेतना की स्वतन्त्र सत्ता−ब्रह्माण्ड व्यापी चेतन जगत और अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का पता चलता है। विचारशील लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ है और प्रयत्नपूर्वक यह खोज-बीन की जा रही है कि क्या सचमुच ही चेतना का अपना अस्तित्व, क्षेत्र और बल होता है? यदि होता है तो उसको विकसित करके किस उपयोग में लाकर क्या लाभ उठाया जा सकता है। पिछले बीस वर्षों में जो जानकारियाँ मिली हैं, वे इसके लिए विवश करती हैं कि विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय, मनुष्य को अधिक समर्थ एवं संसार को अधिक सुखी बनाने वाले नये आधार खड़े किये जा सकते हैं।
चैकोस्लोवाकिया के एक शिल्पी ब्रोतिस्लाव काफ्का में दूर−दर्शन की अद्भुत क्षमता थी। उसके द्वारा उत्तरी ध्रुव की ऋतु परिस्थितियों एवं महायुद्ध के समय मोर्चे की हलचलों के जो वर्णन किये गये वे आश्चर्यजनक रूप से खरे सिद्ध होते रहे।
तन्त्र विद्या के विश्वकोश एवं ‘साइक्लोपीडिया आफ दि आक्ल्ट’ में एन्टीन मेसयर नामक एक ऐसे व्यक्ति का वर्णन है जो पेट के माध्यम से अप्रत्यक्ष वस्तुओं का विवरण बताने में समर्थ था। फ्रांसीसी वैज्ञानिक और कवि जूल्स रोमेंस ने अपने शोध निष्कर्षों से त्वचा में रहने वाले नेत्र कोषाणुओं की उपस्थिति बताई है जो स्पर्श के आधार पर देखने का बहुत कुछ प्रयोजन पूरा करते हैं।
अमेरिकी जीव विज्ञानी क्लीव बैवस्टेर ने प्राणि मात्र के बीच काम करने वाले एक चेतना प्रवाह की खोज की है जिसके कारण वे परस्पर एक पतले धागे में बँधे रहते हैं और एक−दूसरे की सुख−दुःख की अनुभूति करते हैं। यह निष्कर्ष उन्होंने समुद्री केकड़ों में से एक के मारे जाते समय उस क्षेत्र के अन्य केकड़ों को ही नहीं दूसरे जीवों को भी कष्टकर अनुभूति होती है। इस अनुभूति प्रवाह को रोकने के लिए शीशे की दीवारें खड़ी की गईं जिसमें कष्ट पाने वाले प्राणी का सूक्ष्म सम्पर्क उस क्षेत्र के अन्य प्राणियों से न रहे, फिर भी वह प्रवाह रुका नहीं और एक कष्ट पीड़ित की प्रतिक्रिया अन्यान्यों को प्रभावित करती रही। एक−दूसरे शोध अधिकारी प्रो॰−गार्डनर मरफी का प्रतिपादन भी ठीक क्लीव बैवस्टेर से मिलता−जुलता ही है। वे कहते हैं− जिस प्रकार समुद्र में पाये जाने वाले ज्वालामुखी द्वीप समूह बाहर से पृथक दीखते हुए भी अग्नि उगलने के सम्बन्ध में गहराई के अन्तराल में परस्पर जुड़े रहते हैं उसी प्रकार प्राणियों की सत्ता पृथक−पृथक होते हुए भी उनके बीच एक ऐसा सम्बन्ध सूत्र मौजूद है जो एक−दूसरों की अनुभूतियों में सहभागी बनाता रहता है।
बूल्फ मेसिंग नामक एक व्यक्ति में बिना किसी प्रशिक्षण के अनायास ही ऐसी क्षमता पाई गई जिससे वह दूरस्थ घटनाक्रमों एवं विचारों का परिचय प्राप्त कर लेता था। वह व्यक्ति अनेक वैज्ञानिकों के लिए परीक्षण विषय बना रहा और टेलीपैथी के अस्तित्व को यही सिद्ध करता रहा।
मिरबाइह लोवा नामक एक अन्य महिला को यह विशेष शक्ति प्राप्त थी कि वह अपनी इच्छा शक्ति का प्रयोग करके मेज पर रखी कितनी ही वस्तुओं को बिना छुए इधर से उधर हटा देती थी। उस घटना को अनेक प्रामाणिक व्यक्तियों के सामने देखा गया जिसमें तस्तरी में रखा डबल रोटी का टुकड़ा अपनी जगह पर से उठा, खिसका, खड़ा हुआ और उछल कर मिरवाइलोवा के मुँह में घुस गया। यह शक्ति इस महिला को अपनी माता से उत्तराधिकार में मिली थी। वे भी ऐसे ही चमत्कार दिखाने में ख्याति प्राप्त कर चुकी थीं, पर उन पर कोई परीक्षण नहीं हुआ था। शोध का विषय मिरवाइलोवा ही रही और उन पर कितनी ही प्रयोगशालाओं में कितनी ही तरह के प्रयोग होते रहे।
तीसरा नेत्र−आज्ञाचक्र अति प्रभावी है। उसमें संसार की स्थूल और सूक्ष्म परिस्थितियाँ जानने समझने की ही नहीं, वस्तुओं और व्यक्तियों को भी प्रभावित करने की क्षमता है। इतना ही नहीं वातावरण में परिवर्तन इसकी शक्ति का व्यापक प्रयोग करने से सम्भव हो सकता है। दूर−दर्शन अदृश्य दर्शन उसकी आरम्भिक कला है। एक्सरे की किरणें जिस प्रकार ठोस पदार्थों में होकर पार निकल जाती हैं और आँखों से न दीख पड़ने वाली भीतरी स्थिति के भी फोटो खींचती है उसी प्रकार यह आज्ञाचक्र का कैमरा भी अदृश्य को देख सकता है। इस माध्यम से न केवल पदार्थों को देखने का प्रयोजन पूरा होता है वरन् जीवित प्राणियों की मनःस्थिति को समझ सकना भी सम्भव होता है। बात देखने समझने तक ही पूरी नहीं होती आज्ञाचक्र की क्षमता इससे भी आगे है वह दूसरों को प्रभावित परिवर्तित भी कर सकती है।
विषय का हर पदार्थ अपने साथ ताप और प्रकाश की विद्युत किरणें संजोये हुए है। वे कम्पन लहरियों के साथ इस निखिल विश्व में अपना प्रवाह फैलाती है। ईथर तत्व के द्वारा वे दूर−दूर तक जा पहुँचती है। यदि उन्हें ठीक तरह पकड़ा जा सके तो दृश्य बहुत दूरी पर अवस्थिति होते हुए भी उसे देखा जा सकता है। जो घटनाएँ सुदूर क्षेत्रों में घटित हो रही हैं उन्हें निकटवर्ती दृश्यों की तरह देखा जा सकता है। इन किरणों को पकड़ने के लिए नेत्र उपयुक्त माध्यम है। प्रत्यक्ष को−समीपवर्ती को वे ही देखते हैं। एक तीसरा नेत्र आज्ञाचक्र है जिसे नेत्र शक्ति का उद्गम केन्द्र कह सकते हैं। जननेन्द्रिय की काम क्षमता का सूक्ष्म केन्द्र मूलाधार चक्र है। विविध काम सम्वेदनाएँ तथा क्षमताएँ मूलतः वही से उद्भूत होकर जननेन्द्रिय में एवं मनःक्षेत्र में सक्रिय बनती है। इसी तरह नेत्रों की शक्ति को अपने क्रिया कलाप सम्पन्न करने की क्षमता जिस बैटरी−डायनेमो या जेनरेटर से मिलती है उसे आज्ञाचक्र कहा जा सकता है।
इतने पर भी यह नहीं समझ लिया जाना चाहिए कि रूप तत्व का सम्बन्ध मात्र नेत्रों से ही है। अग्नि तत्व की प्रधानता से रूप कम्पन उत्पन्न होते हैं। शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व नेत्र ही करते हैं ऐसा नहीं मान लेना चाहिए। अग्नि तत्व शरीर के अन्य अंगों में भी है। समस्त शरीर पंच तत्वों के गुम्फन से बना है। यदि अन्य अंगों का अग्नि तत्व अनायास ही विकसित हो जाय अथवा साधनात्मक प्रयोगों से उसे विकसित कर लिया जाय तो नेत्रों की बहुत कुछ आवश्यकता उससे भी पूरी हो सकती है।
एक रूसी लड़की कुलेशोवा आँखों में पट्टी बाँध कर मात्र उंगलियों से छूकर पुस्तकें पढ़ती चली जाने की विशेषता से सम्पन्न रहने के कारण संसार भर के वैज्ञानिकों को अचम्भे में डाल चुकी है। डॉ. नोवोमीस्को की अध्यक्षता में इस प्रसंग पर प्रकाश डालने के लिए बने वैज्ञानिकों के आयोग ने इस सम्बन्ध में गहरी जाँच पड़ताल की। समिति न इसमें कोई छल तो नहीं पाया, पर निश्चित कारण बताने में असमर्थता प्रकट की है। अनुमान कई तरह के लगाये और कहा इनमें से कोई अथवा अन्य कारण इस प्रकार की विलक्षण क्षमता का उत्तरदायी हो सकता है पर अभी तो कुछ निश्चित मत प्रकट सकना सम्भव नहीं है।
न्यूयार्क के बर्नाडे कालेज के प्राध्यापक रिचार्ड यूट्स की अध्यक्षता में बनी एक समिति ऐसी ही एक महिला पोद्दोशिया की जाँच कर चुकी है जिसे घोर अन्धकार के बीच भी आँखों से पट्टी बाँधकर रंग पहचान लेने की क्षमता प्राप्त थी।
लेनिन ग्राड यूनिवर्सिटी की शरीर शास्त्री प्रो. वसिलियेव ने रूसी सरकार को प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा था अतिरिक्त ऐन्द्रिक अनुभूति (ई. एस. पी.) की मूल शक्ति को खोजना अणुशक्ति की खोज जितनी ही महत्वपूर्ण है। इस दिशा में हमें अधिक सतर्कता और तत्परतापूर्वक रहना चाहिए। सरकार ने इस दिशा में समुचित ध्यान दिया और उन्हें ही उस विश्वविद्यालय के परामनोविज्ञान विभाग का शोध अध्यक्ष नियत किया गया और उन्होंने उस कार्य को पूरी तत्परता के साथ निबाहने का प्रयत्न किया। पिछले दिनों इस शोध संस्थान के मार्ग दर्शन में विभिन्न स्थानों पर जो तथ्य सामने आये हैं उनसे प्रतीत होता है कि ब्रह्माण्डीय चेतना के सूक्ष्म धारा प्रवाह के साथ मनुष्य अपने आप को जोड़ सकेगा और नये किस्म के ऐसे लाभ प्राप्त कर सकेगा जो अभी तो काल्पनिक और अविश्वस्त ही समझे जाते हैं।