सेवाग्राम में नित्य प्रातःकालीन प्रार्थना होती थी, एक दिन शिष्य ने बापू से कहा कि कल की प्रार्थना में अमुक लोग नहीं आये थे। बापू ने डाँटते हुए उनसे कहा, “तू भी प्रार्थना में न आता तो ठीक था, निन्दा करने से तो प्रार्थना में न आना ही ठीक रहता।”
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