मंत्र विद्या की अकूत शक्ति

February 1978

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भारतीय मनीषियों ने शब्द को ब्रह्म कहा है ब्रह्म या परमात्मा एक विराट् तथा सर्वव्यापी तेजस सत्ता का नाम है−जिसकी शक्ति का कोई पारावार नहीं। इस तरह से तत्वदर्शी भारतीयों ने शब्द की सामर्थ्य को बहुत पहले ही जान लिया था। यही नहीं उस पर गम्भीर खोजें हुई थीं और मन्त्र−विज्ञान नाम की एक स्वतन्त्र शाखा की ही स्थापना हुई थी। मन्त्र-शक्ति की महत्ता इन्हीं शब्दों से ज्ञात हो जाती है−

मन्त्र परम लघु जासु बस विधि हरिहर सुरसर्व। महामन्त्र गजराज कहँ बस कर अंकुश खर्व ॥

जिस शब्द तत्व को इतना निरूपित किया गया है वह चाहे जो कुछ चाहे जैसे मुँह से बोल देने वाले शब्द नहीं। वरन् विशेष गति, लय, क्रम में गुम्फित अक्षरों की विशेष ध्वनि ही यह कार्य करती है। विज्ञान जगत में इस तरह की ध्वनि को ‘अश्रव्य’ ध्वनि कहते हैं। अश्रव्य का अर्थ है जो सुनाई न दे, किन्तु जिसका अस्तित्व हो। विभिन्न प्रकार की विशेष ध्वनियों से इस्पात की मोटी चादरें काटने से लेकर चिकित्सा, कृषि, पशुओं से दुग्ध उत्पादन आदि अनेक प्रकार के आश्चर्यजनक काम होने लगे हैं प्रकारान्तर से चिकित्सा जगत फिर से अपने उसी प्राचीन मन्त्र−तन्त्र के सिद्धान्त पर लौट रहा है।

मन्त्र के सम्बन्ध में भी यही तथ्य काम में आता है। ध्वनि को अश्रव्य स्थिति में तीव्र आवृत्ति देने का जो काम यन्त्र करते हैं वह तालु, कण्ठ, ग्रीवा आदि से सम्पन्न कर लिया जाता है। भावनाओं द्वारा इन्हें नियन्त्रित किया जाता है और फिर किसी भी स्थान विशेष पर इन तरंगों के विखण्डन, मार्जन आदि के द्वारा उपचार, प्रताड़न, मारण, मोहन उच्चाटन आदि के विभिन्न प्रयोग किये जाते हैं। दोनों अवस्थाओं में काम शब्द−शक्ति ही करती है, पर उनकी बनावट, गति और भावनाओं के अनुरूप उनकी शक्ति घट−बढ़ होती है और उसी अनुपात में उसके परिणाम प्रस्तुत होते हैं।

भले ही मन्त्र विद्या के जानकार अब उँगलियों में गिनने लायक ही लोग बचे हों, पर इस विज्ञान की सुनिश्चितता से इनकार नहीं किया जा सकता। अनुमान है कि उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि तरंगों से भविष्य में रुधिर संचार की गतिविधि शरीर के ऊर्जा स्रोतों की जानकारी और उन्हीं से रोगों के निवारण की अन्तःव्यवस्था भी होने लगेगी। इन ध्वनियों का जो चमत्कारिक पक्ष प्रस्तुत होने जा रहा है वह है पदार्थ की संरचना सम्बन्धी गूढ़ से गूढ़ जानकारी। इतना हो जाने के बाद शब्द शक्ति से ही परमाणु विखण्डन पदार्थ को शक्ति में बदल कर उसके मनमाने उपयोग का मार्ग खुल जायेगा मन्त्र विद्या से ऐसे ही चमत्कारों की परिकल्पना की जाती है जो अब विज्ञान द्वारा साकार होने जा रहे हैं।

शब्द को प्रकाश से भी अधिक समर्थ शक्ति माना जाने लगा है इन दिनों सुपर सोनिक नामक जो माइक्रोस्कोप बने हैं वह प्रकाश−सिद्धान्त पर बने माइक्रोस्कोपों से अधिक शक्तिशाली होते हैं। रचना में ध्वनि तरंगें प्रकाश तरंगों से बहुत कुछ मिलती−जुलती होने पर भी गुणों में उनसे ठीक विपरीत होती हैं। प्रकाश−तरंगें उन्नतोदर लेन्स में तो संगठित होकर शक्तिशाली बनती हैं जबकि नतोदर में बिखर जाती है किन्तु अश्रव्य ध्वनि तरंगों के बारे में स्थिति ठीक इससे विपरीत रहती है। इस केन्द्रित शक्ति से न केवल शरीर अपितु पौधों, धातुओं आदि के दोषों का पता लगाना संभव हो गया है और इस नई शक्ति से औद्योगिकी में व्यापक क्रान्ति आने की सम्भावनाएँ व्यक्त की जा रही है।

मन्त्रों में उपरोक्त प्रकार की सम्भावनाओं से भी अधिक समर्थ अपेक्षायें विद्यमान हैं, जो भी शब्द बोला जाता है वह दूसरे को सुनाई ही तब पड़ता है जब हवा में से उसके कम्पन दूसरे कानों तक पहुँचते हैं। हर शब्द से हर दूसरा व्यक्ति प्रभावित होता है, पर जब वही शब्द प्रखर संवेगों और भावनाओं से प्रेरित होते हैं तो उसका अर्थ अश्रव्य कम्पनों का निर्माण ही होता है। मन्त्र विद्या के कुछ अन्य पहलू भी है जो शब्द उच्चारण में प्रयुक्त होने वाले शरीर यन्त्रों से सम्बन्धित है तालु, जिह्वा, विवर तथा कुछ विशिष्ट चक्रों, उपत्यिकाओं से भी है जो शब्दों को गति प्रवाह, भ्रमर आदि में बदल देते हैं यह उन यन्त्रों की तरह ही हैं जैसे ट्रान्स्ड्यूसर यन्त्र जो ध्वनि को सूक्ष्म आवृत्ति वाला बनाकर उन्हें अति समर्थ बना देते हैं।

मंत्र विज्ञान एक अति समर्थ तथा सूक्ष्म विज्ञान है उसे समझा तो जाये, पर जिस आधार पर यह शक्तियाँ मिलती हैं उस आत्मिक धरातल को भी सुदृढ़, विकसित और पवित्र बनाया जाना आवश्यक रहता है उसके बिना मन्त्र विद्या का कुछ अर्थ ही नहीं हो सकता।


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