जुए में पांडवों ने द्रौपदी को भी दाव पर लगा दिया, पांडव इस बार भी हारे। दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी को नग्न करने का आदेश दिया, दुशासन उसे नंगी करने लगा, द्रौपदी ने उस अवसर पर उपस्थित उसी लोगों से इस अनाचार के विरुद्ध आवाज उठाने को कहा, परन्तु सब चुप थे। धर्मराज युधिष्ठिर, गांडीवधारी अर्जुन, गदाधारी भीम सभी ने कुछ भी करने में अपनी असमर्थता प्रकट की, वे मात्र सिर नीचा किये मूक दर्शक बने रहे। भीष्म पितामह जैसे वरिष्ठ व ज्ञानी व्यक्ति भी “मौन” साधे रहे। सब ओर से निराश हो द्रौपदी ने कृष्ण को पुकारा तो एक दम अदृश्य सहायता हुई द्रौपदी की लाज बच गई।
इस घटना के कुछ समय बाद द्रौपदी ने कृष्ण से पूछा− “भैया आप तो कहते हैं भक्तों पर पड़ने वाली विपत्ति दूर करने को मैं स्वयं तुरन्त दौड़ा आता हूँ। फिर उस समय आप इतने विलम्ब से क्यों आये? क्या आपको मेरी व्यथा चिन्तित न किये थी? कृष्ण बोले- “द्रौपदी मैं था तो वहीं, पर तूने तो ज्ञानी विरागी भीष्म, धनुर्धारी अर्जुन, गदाधारी भीम व धर्मराज युधिष्ठिर का ही स्मरण कर उन्हीं को समर्थ समझती रही एवं उनसे ही आशा लगाये रही तो मैं क्यों आता, परन्तु जब तूने मेरा स्मरण किया तो मैं तुरन्त ही आ गया।”
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