विश्व ज्ञान कोष मस्तिष्क

February 1978

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अमेरिका का नगर कैन्टुकी। पास ही एक छोटा−सा गाँव है। गाँव में एक के नवयुवक पुत्र को एकाएक मांसपेशियों में जकड़न तथा दर्द उठ खड़ा हुआ। प्राथमिक उपचार किया गया किन्तु उसकी अवस्था में कोई सुधार परिलक्षित होने की अपेक्षा स्थिति बदतर होती गई और युवक अचेत हो गया।

बहुत देर तक मूर्छा समाप्त नहीं हुई तब फिर कैन्टुकी से योग्य डॉक्टर बुलाये गये। उसने युवक−एडगर केसी को होश में लाने की अनेक चेष्टाएँ कीं, पर सफलता मिली नहीं। डॉक्टर अभी परिस्थिति की गम्भीरता पर परस्पर परामर्श कर रहे थे कि एकाएक एडगर ने आंखें खोल दी और चिल्लाकर डाक्टरों से कहा−डॉक्टर तुम्हारा निदान सही नहीं−मुझे अमुक बीमारी है, उसकी अमुक दवा है। साथ ही उसने कुछ औषधियों के नाम गिनाकर उनका पेस्ट (मरहम) बनाकर पीठ पर मालिश करने को कहा। उसके यह शब्द सुनकर वहाँ का हर व्यक्ति आश्चर्यचकित हो गया−घर वाले इसलिए कि एडगर केसी अनपढ़ है, ग्रामीण भाषा में बात करता है, किन्तु आज वह एकाएक शुद्ध अँग्रेजी का उच्चारण कैसे कर रहा है? डॉक्टर इसलिए विस्मित थे कि एडगर ने जो औषधियाँ बताई थी वे वस्तुतः प्रभावशील थीं तथा मरीज के बताये अनुसार उपचार से मरीज अच्छा हो गया और डाक्टरों ने वे जहाँ गये इस विलक्षण घटना की रिपोर्ट दी। फलतः बहुत से डाक्टरों ने भी वहाँ जाकर उसका परीक्षण किया, पर अब वहाँ उस तरह की कोई बात नहीं थी अतएव सब कुछ यथावत शान्त हो गया।

कुछ दिनों उपरांत एडगर केसी का एक मित्र बीमार पड़ा, बीमारी असाध्य थी डॉक्टर बुलाये गये इस बार भी डाक्टरों की उपस्थिति में चमत्कार हो गया। एडगर केसी वहाँ उपस्थित था। कुछ देर में ही वह तड़ित तन्द्रा में चला गया और एकाएक लैटिन में कुछ कहने लगा, कुछ डॉक्टर लैटिन समझते थे उन्होंने एडगर केसी के शब्द लिख लिये उनका अर्थ मित्र की बीमारी से ही सम्बद्ध था। उसे क्या बीमारी है तथा किस औषधि से वह अच्छा हो जायेगा, औषधि कहाँ मिलेगी? उस स्थान का अता−पता सब कुछ था। डॉक्टर एडगर केसी इस अद्भुत क्षमता पर आश्चर्यचकित थे। उसी इलाज से मित्र ठीक हो गया। इस बार इस घटना की चर्चा व्यापक रूप से फैल गई। वहाँ के मेडिकल एसोसिएशन ने वस्तुस्थिति की जाँच के लिए योग्यतम डाक्टरों और विशेषज्ञों का एक आयोग बनाया और स्थिति का पूरा अध्ययन कर रिपोर्ट देने को कहा।

एक दिन आयोग के सदस्य डॉक्टर एक बहुत धनाढ्य और असाध्य रोगी को लेकर एडगर केसी के पास आ गये। यह व्यक्ति अब तक सैकड़ों डाक्टरों का इलाज करा कर हार चुका था, पर बीमारी जहाँ की तहाँ थी। एडगर केसी को उस पर दया आ गई उसने अविलम्ब ध्यान समाधि ली−डाक्टरों ने परीक्षण कर यह लिखा कि उस अवस्था में एडगर का शारीरिक संस्थान सामान्य रूप से काम कर रहा है किन्तु उसकी चेतना विद्यमान नहीं है।

कुछ ही देर में एडगर ने पहले रोग का विश्लेषण करना प्रारम्भ किया। उसने जहाँ−जहाँ दर्द जो−जो लक्षण बताये वह उस व्यक्ति ने बिलकुल सत्य बताया, यही नहीं कुछ ऐसे कष्ट जिसे वह अनुभव करता था, पर व्यक्त नहीं कर पाता था, एडगर ने वह सब भी बताये जबकि मरीज ने कोई भी बात नहीं कही थी, एडगर का रोग की स्थिति की जानकारी देना वस्तुतः आश्चर्यचकित कर देने वाला था डॉक्टर प्रत्येक स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन करते जा रहे थे। अब एडगर ने सारी दवाइयां भी बताई पर वह अत्यन्त दुर्लभ थीं, डाक्टरों की राय में उनका कैन्टुकी तो क्या अमेरिका के किसी बड़े शहर में भी मिलना कठिन था। तो भी उस व्यक्ति ने सब तरफ छानबीन कराई वस्तुतः औषधि मिली नहीं। इस पर उसने सभी ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय में विज्ञापन निकलवाये। उसके फलस्वरूप पेरिस के एक नवयुवक डॉक्टर ने पत्र लिखकर बताया कि ऐसा फार्मूला काफी समय पूर्व बनाया था, पर वह चला नहीं अतएव अमुक लैबोरेटरी को बेच दिया गया है। उस लैबोरेटरी से दवा की पुष्टि हो गई अब तक वह दवा केमिस्टों के लिए बिक्री नहीं हुई थी, पर उन सज्जन को औषधि मिल गई और वे उसी से अच्छे हुये। इससे एडगर की सर्वत्र ख्याति फैल गई−मेडिकल एसोसिएशन ने पहली बार एक ऐसे अनपढ़ युवक को डॉक्टर की डिग्री प्रदान की तथा उसे मेडिकल फैलोशिप प्रदान कर रोगियों को उपचार और मार्ग−दर्शन देने को कहा तब से वे प्रतिदिन दो मरीजों को देखते हैं। उनसे कोई फीस वे नहीं लेते।

जब उनसे यह पूछा जाता है कि वे अचेतावस्था में ही ऐसा क्यों करते हैं तथा उनके लिये रोगी की इतनी अच्छी स्थिति तथा इतना अच्छा निदान किस तरह ज्ञात होता है। एडगर केसी का कहना है कि मुझे अनायास ही किसी के भी मस्तिष्क से अपने मस्तिष्क को जोड़ लेने की क्षमता मिल गई है। सामान्य स्थिति में मन एकाग्र नहीं होता अचेतावस्था इसलिए आती है कि इस क्रिया के लिये असीमित शक्ति शरीर के कोशों से मिलती है इसी से उस समय मूर्छा आ जाती है। जब में रोगी के मस्तिष्क से सम्बन्ध जोड़ता हूँ तो उसके कष्ट की अनुभूतियाँ जो पहले से ही उसके मस्तिष्क में विद्यमान रहती है मेरे मस्तिष्क में उस भाषा के शब्दों के साथ उतर आती है रोगी जिस भाषा का व्यक्ति होता है। तत्पश्चात् मेरा मन उस बात के जानकार की ओर घूमता है अभी तक मस्तिष्क के 1 /10 भाग को ही जानकारी मिल सकी है 9/10 भाग अभी तक भी शरीर शास्त्रियों और वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बनी हुई है इस 9/10 भाग में असीमित क्षमताएँ भरी पड़ी है जो टेलीविजन से भी स्पष्ट संसार का कोई भी दृश्य−बोध, संसार की कोई भी जानकारियाँ रेडियो तरंगों से भी शीघ्र देने में सक्षम है उस क्षमता के एक नन्हें से कण का उपयोग उस समय करके मैं डॉक्टर या उस विषय के जानकर के मस्तिष्क से जोड़ कर निदान मालूम कर लेता हूँ।

विज्ञान ने भी अब यह सिद्ध कर दिया है कि ऐसा होना असम्भव नहीं। जड़ इलेक्ट्रानों से निर्मित कृत्रिम मस्तिष्क−संगणक (कंप्यूटर) में जब इस तरह की क्षमताएँ हो सकती है तो चेतन मस्तिष्क की क्षमताओं का तो कहना ही क्या? शिक्षित और विचारशील लोग किस तरह उतने ही ज्ञान तथा विचारों से नये दर्शन, नये निर्माण और वैज्ञानिक आविष्कार कर लेते हैं, पर योग साधनायें तो उन सम्भावनाओं से भी हजार लाख करोड़ गुनी अधिक सामर्थ्य प्रदान कर सकती है इसे निम्न विवेचन से भली प्रकार समझा सकता है।

अमेरिका में भौतिक विज्ञान की अद्यतन उपलब्ध जानकारियाँ एक कम्प्यूटर में भी भरी पाई हैं उन जानकारियों के आधार पर यह कम्प्यूटर न केवल भौतिक विज्ञान की असंख्य समस्याओं का निराकरण कर देता है अपितु नई शोधों का भी मार्ग प्रशस्त करता है। इसी तरह एक कम्प्यूटर ज्यूरिच में बना है जो मेडिकल इलेक्ट्रानिक्स का कमाल है वह रोग उपचार केमिकल फार्मूलों की हर समस्या हल कर सकता है। इसी प्रकार का कम्प्यूटर काहिरा में है जो नक्षत्रों का विशेषज्ञ है। अभी तक ने कम्प्यूटर अपने विषय की ही जानकारी दे सकते थे, पर यह वैसे ही कम्प्यूटर हैं जैसे एडगर केसी का मस्तिष्क। यदि कोई काहिरा के एस्ट्रानामी कम्प्यूटर से कई मेडिकल का प्रश्न पूछे तो काहिरा का कम्प्यूटर अविलम्ब उस बात को ज्यूरिच कम्प्यूटर के लिए सम्प्रेषित (ट्रान्समिट) करता है। ज्यूरिच कम्प्यूटर उसका उत्तर निकाल कर पुनः सन्देश काहिरा कम्प्यूटर को भेज देता है और इस तरह मशीनी दुनिया में भी यह सम्भव हो गया है कि एक विषय का अनभिज्ञ वह ज्ञान दूसरों से लेकर प्रसारित कर सकता है।

हमारा मस्तिष्क एक जादुई पिटारा है, एक हजार फनों वाला सहस्रार है जो एक नामा सेकिंड (सेकिंड के अरबवें हिस्से) में ही सारे ब्रह्माण्ड को देख लेने, जान लेने उस पर किसी का हस्तक्षेप तक करने में समर्थ है। इतनी समर्थ सत्ता के स्वामी हम फिर भी दीन−हीन इन्द्रिय लिप्सा का जीवन जियें तो यह धिक्कार की बात है, मनुष्य का और उसे बनाने वाले परमात्मा का अपमान है।

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