तपोवनों में प्रकाश उतरा (kavita)

November 1976

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लगा रहा है, पुकार कोई-नया सबेरा पुकारता है॥

अखण्ड दीपक की, ज्योति जागी,बना दिया है, प्रभात बागी,

न काम देगा खुमार कोई-नया उजेला, पुकारता है।

जगी तपस्या, अनीति भागी,मिटी रूढ़ियां, कुरीति भागी,

नये सृजन का शृंगार कोई-नया वितेरा, संवारता है।

नयी नहीं है, कथा पुरानी,सुनो समय की भविष्य वाणी,

किया न जिसने सुधार अपना,उसे न कोई, उबारता है।

गन्त को दे दिया बुलावा,बसन्त को दे दिया बुलावा,

लगा गगन तक किरण नरोनी, स्वर्ग, धरनि पर उतारता है।

दुःखी जनों में, सुहास उतरा। तपोवनों में, प्रकाश उतरा,

मनुष्यता का विकास सपना, भरे नयन से निहारता है।

-लाखनसिंह भदौरिया ‘सौमित्र’

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*समाप्त*


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