आगे बढ़ने की सामर्थ्य जुटाएँ

November 1976

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आत्म विश्वास बिना पंखों के आसमान पर उड़ने का नाम नहीं है। उसमें अपनी सामर्थ्य तौलनी पड़ती है, अनुभव, योग्यता और साधनों का मूल्याँकन करना पड़ता है और समीक्षापूर्वक इस नतीजे पर पहुँचना पड़ता है कि आज की स्थिति में किस हद तक साहस किया जा सकता है और कितनी ऊँची छलाँग लगाई जा सकती है। जो वस्तुस्थिति की उपेक्षा करके हवाई महल चुनते है, उन्हें शेखचिल्ली की तरह उपहासास्पद बनना पड़ता है।

शेख चिल्ली की वह कहानी बहुश्रुत है जिसमें एक मजूर ने तेल ढोने की मजूरी से मिलने वाले पैसों से मुर्गी, बकरी, भैंस खरीद कर मालदार बनने, अमीर औरत से शादी करने, बच्चा होने और बच्चे को झिड़की लगाने का सपना देखा था और उतावली में बच्चे को झिड़की देने के आवेश में घड़ा फोड़ बैठा था और रंगीन सपना गंवाकर मालिक द्वारा पीटा धमकाया गया था। हममें से अनेकों इसी मार्ग पर चलते हैं। इच्छा और सफलता के बीच जो लम्बी मंजिल पार करनी पड़ती है उसे भूल जाते हैं। हथेली पर सरसों जमाने का जादू चाहते हैं और अन्ततः उपहासास्पद बनते हैं।

आत्म-विश्वास, श्रम, साहस का, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के निर्माण में महत्वपूर्ण स्थान माना गया है, पर वह वास्तविकता पर आधारित होना चाहिए। नशेबाजों की तरह आवेशग्रस्त स्थिति में कुछ भी पाने और कुछ भी बनने के लिए आतुर सपने देखना व्यर्थ है। बेतुकी छलाँगें लगाने वाले अपने हाथ-पैर तोड़ लेते हैं। योग्यता, परिस्थिति, साधन, अनुभव आदि का ताल-मेल बिठाते हुए जो निर्णय किये जाते हैं और नपे-तुले कदम बढ़ाये जाते हैं वे ही सफल होते हैं।

अपने साथ पक्षपात करने की दूषित दृष्टि अपना लेने पर अपने को निर्दोष घोषित करने को जी करता है और कठिनाइयों एवं असफलताओं का दोषी दूसरों को ठहराया जाता है। उस आत्म-प्रवंचना से अपना जी हलका किया सकता है, पर सफलता का लक्ष्य प्राप्त करने में कोई सहायता नहीं मिलती। जिन कारणों से प्रगति का पथ अवरुद्ध बना रहता है और दूसरों का सहयोग नहीं मिलता उनमें अपने गुण, कर्म, स्वभाव की त्रुटियाँ ही प्रमुख होती हैं। अभीष्ट पुरुषार्थ न जुटा सकना, तनिक सी कठिनाई में हिम्मत हार बैठना, एक रास्ता रुक जाने पर दूसरा न तलाशना, साथियों पर झल्लाना, मित्रों को शत्रु बनाने वाली कटुता का परिचय देना, जैसे व्यक्तिगत दोष ही सबसे बड़ा बाधा बनकर सामने आते हैं।

विपरीत परिस्थितियों, साधनों की कमी, साथियों का असहयोग, प्रतिरोध आदि मिलकर किसी की प्रगति में जितनी बाधा पहुँचा सकते हैं, उन सबसे बड़ी कठिनाई अपने व्यक्तित्व की दुर्बलता है। लोग उसकी उपेक्षा करते रहते हैं। अपने साथ पक्षपात और दूसरों के साथ कड़ाई की नीति आमतौर से अपनाई जाती रहती है। दूसरों के दोष ढूंढ़ने, उनकी कटु समीक्षा करने में जो उत्साह रहता है वही रीति यदि अपने साथ अपनाई जाती रहे तो वे कारण समझ में आ जायेंगे, जिनने व्यक्तित्व को दुर्बल बना रखा है और उस दुर्बलता के कोंतर में अनेक ऐसी अवाँछनीयताओं ने अड्डा आ जमाया है जिनके कारण पग-पग पर ठोकरें लगती हैं और प्रगति की दिशा में बढ़ सकना कठिन पड़ता है।

चापलूसों की प्रशंसा शत्रु की निन्दा से अधिक हानिकारक है। शत्रु निन्दा करके हमें हमारी त्रुटियों की याद दिलाते हैं और उन्हें सुधारने का प्रकारान्तर से प्रकाश देते हैं जबकि खुश करने के फेर में पड़े हुए लोग जान या अनजान में हमें त्रुटि रहित बताते और मिथ्या अहंकार बढ़ाते हैं। हमें स्वयं ही अपना निष्पक्ष समीक्षक होना चाहिए और आलस्य, प्रमाद, कटुता, अपव्यय, असंयम, अधीरता, भीरुता आदि दुर्गुणों का जितना अंश पाया जा सके उसे ढूंढ़ना चाहिए और उसके निराकरण की तैयारी करनी चाहिए।अपना सर्वतोमुखी निर्माण प्रगति की तीन चौथाई मंजिल पूरी करने का साधन जुटा देता है। लम्बी-चौड़ी उड़ाने उड़ने- महत्वाकांक्षाओं के रंग-बिरंगे सपने देखने की अपेक्षा यह अच्छा है कि आगे बढ़ने की सामर्थ्य एकत्रित करें। ऐसी कितनी ही योग्यताएं हैं जो मनुष्य को आगे बढ़ाती और ऊंचा उठाती है। इन योग्यताओं में सबसे बड़ी है- आत्म-निरीक्षण कर सकने और आत्म-सुधार के लिए साहस जुटाने की प्रवृत्ति। संसार के सफल व्यक्तियों को यह सामर्थ्य अनिवार्य रूप से जुटानी पड़ी है।

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