दिव्य प्रेतात्मा की अदृश्य सहायता

November 1976

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मरने के बाद क्या होता है ? इस प्रश्न के उत्तर में विभिन्न धर्मों में विभिन्न प्रकार की मान्यताएँ हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों में भी कितने ही प्रकार से परलोक की स्थिति और वहीं आत्माओं के निवास का वर्णन किया है। इन मतभिन्नताओं के कारण सामान्य मनुष्य का चित्त भ्रम में पड़ता है कि उन परस्पर विरोधी प्रतिपादनों में क्या सत्य है क्या असत्य?

इतने पर भी एक तथ्य नितान्त सत्य है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता वरन् वह किसी न किसी रूप में बना ही रहता है। मरने के बाद पुनर्जन्म के अनेकों प्रमाण इस आधार पर बने रहते हैं कि कितने ही बच्चे अपने पूर्व जन्म के स्थानों, सम्बन्धियों और घटनाक्रमों का ऐसा परिचय देते हैं जिन्हें यथार्थता की कसौटी पर कसने में वह विवरण सत्य ही सिद्ध होता है। अपने पूर्व जन्म से बहुत दूर किसी स्थान पर जन्में बच्चे का पूर्व जन्म के ऐसे विवरण बताने लगना, जो परीक्षा करने पर सही निकलें, इस बात का प्रमाण बताता है कि मरने के बाद पुनः जन्म भी होता है।

मरण और पुनर्जन्म के बीच के समय में जो समय रहता है उसमें जीवात्मा क्या करता है? कहाँ रहता है? आदि प्रश्नों के सम्बन्ध में भी विभिन्न प्रकार के उत्तर हैं, पर उनमें भी एक बात सही प्रतीत होती है कि उस अवधि में उसे अशरीरी किन्तु अपना मानवी अस्तित्व बनाये हुए रहना पड़ता है। जीवन मुक्त आत्माओं की बात दूसरी है। वे नाटक की तरह जीवन का खेल खेलती हैं और अभीष्ट उद्देश्य पूरा करने के उपरान्त पुनः अपने लोक को लौट जाती हैं। इन्हें वस्तुओं, स्मृतियों, घटनाओं एवं व्यक्तियों का न तो मोह होता है और न उनकी कोई छाप इन पर रहती है। किन्तु सामान्य आत्माओं के बारे में यह बात नहीं है। वे अपनी अतृप्त कामनाओं, विछोह, संवेदनाओं, राग-द्वेष की प्रतिक्रियाओं से उद्विग्न रहती हैं। फलतः मरने से पूर्व वाले जन्मकाल की स्मृति उन पर छाई रहती है और अपनी अतृप्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने के लिए ताना-बाना बुनते रहते हैं। पूर्ण शरीर न होने से वे कुछ अधिक तो नहीं कर सकते, पर सूक्ष्म शरीर से भी वे जिस-तिस को अपना परिचय देते हैं। इस स्तर की आत्माएँ भूत कहलाती हैं। वे दूसरों को डराती या दबाव देकर अपनी अतृप्त अभिलाषाएँ पूरी करने को सहायता करने के लिए बाधित करती हैं। भूतों के अनुभव प्रायः डरावने और हानिकारक ही होते हैं।

इसके विपरीत कुछ ऐसी उच्च आत्माएँ भी होती हैं जो मरण और जन्म के बीच की अवधि को प्रेत बन कर गुजारती हैं और अपने उच्च स्वभाव संस्कार के कारण दूसरों की यथासम्भव सहायता करती रहती हैं। इनमें मनुष्यों की अपेक्षा शक्ति अधिक होती है। सूक्ष्म जगत से सम्बन्ध होने के कारण उनकी जानकारियाँ भी अधिक होती हैं। उनका जिनसे सम्बन्ध हो जाता है उन्हें कई प्रकार की सहायताएँ पहुँचाती हैं । भविष्य ज्ञान होने से वे सम्बद्ध लोगों को सतर्क भी करती हैं तथा कई प्रकार की कठिनाईयों को दूर करने एवं सफलताओं के लिए सहायता करने का भी प्रयत्न करती हैं।

दिव्य प्रेतात्माओं से लगभग देव स्तर का सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। उनकी समस्यायें स्वल्प होते हुए भी सूक्ष्म जगत से सम्बन्धित होने के कारण कितनी ही बातों में इतनी बढ़ी-चढ़ी होती है कि सम्बद्ध मनुष्य उस सहयोग से आशाजनक लाभ प्राप्त कर सकते है। प्रेतात्मा की सहायता से अनेक लाभ मिलते रहे हैं।

वैज्ञानिकों में मूर्धन्य सर विलियम क्रुक्स और सर आलिवर लाज मृतात्माओं से संपर्क स्थापित करने की खोजों को संसार भर में प्रामाणिक माना जाता है। वे लोग इस स्तर के नहीं थे जिन पर गप्पबाजी का आरोप लगाया जा सके।

सर आलीवर लाज ने स्वर्गीय आत्माओं के अस्तित्व एवं क्रिया-कलाप सम्बन्धी जानकारी के लिए एक सुव्यवस्थित शोध संस्थान स्थापित किया था। उसमें आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सर अर्नेस्ट वैनेट जैसे मूर्धन्य मनीषी सम्मिलित थे। इन शोध कार्यों का प्रसारण ब्रिटेन के रेडियो प्रसारण -बी0 बी0 सी0 पर होता रहा है। सर लाज ने ब्रिटेन के अति प्रामाणिक लोगों के भूतों का अस्तित्व सिद्ध करने वाले अनुभवों का संग्रह एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया था।

स्वीडन के शरीर शास्त्र, अर्थशास्त्र, खगोल विद्या, गणित में अठारहवीं सदी के माने हुए विद्वान एमेनुअल स्वेडनवर्ग ने परलोक विद्या पर गहरी खोज की थी और मृतात्माओं से सम्बन्ध स्थापित करने में सफलता प्राप्त की थी। एक बार हालैण्ड के मृत राजदूत की विधवा पत्नी अपने पति के द्वारा कहीं रखे गये दस्तावेजों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के लिए उनके पास उपस्थित हुई। स्वेडनवर्ग ने मृतात्मा से सम्बन्ध स्थापित करके वह गुप्त स्थान बता दिया जहाँ वे महत्वपूर्ण दस्तावेज रखे हुए थे।

थियोसॉफिकल सोसाइटी की जन्मदात्री मैडम ब्लैडवटस्की को चार वर्ष की आयु से ही देव आत्माओं का सहयोग सान्निध्य प्राप्त होने लगा था। वे अचानक आवेश में आकर ऐसी तथ्यपूर्ण बातें कहतीं जिन्हें कह सकना किन्हीं विशेषज्ञों के लिए ही सम्भव था। परिवार के लोग पहले तो उन्हें विक्षिप्त समझने लगे, पर जब उनके साथ देवात्माओं के प्रत्यक्ष सम्पर्क के प्रमाण देखने लगे तो उनकी विशेषता स्वीकार करनी पड़ी।

एक बार एक प्रेतात्मा ने उसके शरीर के कपड़े ही मजाक में बिस्तर के साथ सी दिये। दूसरे लोगों ने जब सिलाई उधेड़ी तभी वे उठ सकीं। एक बार कर्नल हैनरी आल्काट उनसे मिलने आये तो वे सिलाई की मशीन से तौलिये सी रहीं थी और कुर्सी पर से पैर पटक रहीं थीं। आल्काट ने पैर पीटने का कारण पूछा तो उनने कहा एक छोटा प्रेतात्मा बार-बार मेरे कपड़े खींचता है और कहता कि मुझे भी कुछ काम दे दो। कर्नल ने उसी मजाक में उत्तर दिया कि उसे कपड़े सीने का काम क्यों नहीं दे देतीं? ब्लैडवेटस्की ने कपड़े समेट कर अलमारी में रख दिये और उन से बातें करने लगी। बात समाप्त होने पर जब अलमारी खोली गई तो सभी बिना सिले कपड़े सिये हुए तैयार रखे थे।

मैडम ब्लैडवेटस्की के कथानुसार उनकी सहकारी मण्डली में सता-प्रेत थे, जो समय-समय पर उन्हें उपयोगी परामर्श और मुक्त हस्त सहायता करते थे। कर्नल आल्काट अमेरिका में अपने समय के अत्यन्त सम्मानित नागरिक और प्रसिद्ध वकील थे, उन्होंने मैडम से प्रभावित होकर उनके अध्यात्म कार्य में सदा भरपूर सहयोग दिया।

ब्लैडवेस्टकी एक बार अपने सम्बन्धियों से मिलने के लिए रूस गई। वहाँ उसके भाई के कान में भी उनकी दिव्य शक्ति की चर्चा पहुँची। उसने इतना ही कहा कि मैं मात्र बहिन होने के कारण उनकी बातों पर विश्वास नहीं कर सकता। मैडम ने अपने भाई को एक हलकी सी मेज उठाकर लाने के लिए कहा-वह ले आया। अब उन्होंने फिर कहा इसे जहाँ से लाये हो वहीं रख आओ भाई ने भर-पूर जोर लगाया पर वह इतनी भारी हो गई कि किसी प्रकार न उठ सकी। इस पर घर के अन्य लोग आग गए और वे सब मिल कर उठाने लगे इतने पर भी वह उठी नहीं। जब सब लोग थक कर हार गये तो मैडम ने मुस्करा कर उसे यथावत् कर दिया और मेज फिर पहले की तरह हल्की हो गई। उसे उठा कर आसानी से जहाँ का तहाँ रख दिया गया।

अमेरिका के एक दरिद्र व्यक्ति आर्थर एडवर्ड स्टिलबैल ने अपनी जिन्दगी 40 डालर प्रतिमास जैसी कुलीगीरी की छोटी-सी नौकरी से आरम्भ की और वह प्रेतात्माओं की सहायता से उच्च श्रेणी के यशस्वी धनवान विद्वानों की श्रेणी में सहज ही जा पहुँचा।

पन्द्रह वर्ष की आयु से ही उसके साथ छह प्रेतों व एक मण्डली जुड़ गई और जीवन भर उसका साथ देती रही। इन छह प्रेतों में तीन इंजीनियर, एक लेखक, एक कवि और एक अर्थविशेषज्ञ था। इनके साथ उसका मैत्री बिना किसी प्रयोग परिश्रम के अनायास ही हो गई और वे उसे निरन्तर उपयोगी मार्गदर्शन कराते रहे। प्रेतों ने उसकी लगी लगाई नौकरी छुड़वा दी और कहा चलो तुम्हें बड़ा आदमी बनावेंगे। प्रेतों ने उसे अपने रेल मार्ग बनाने-अपनी नहर खोदने-अपना बन्दरगाह बनाने के लिए कहा। बेचारा आर्थर स्तब्ध था कि नितान्त दरिद्रता की स्थिति में किस प्रकार करोड़ों, अरबों रुपयों से पूरी हो सकने वाली योजनाएँ कार्यान्वित कर सकने में सफल होगा, पर जब प्रेतों ने उसे सब कुछ ठीक करा देने का आश्वासन दिया तो उसने कठपुतली की तरह सारे काम करते रहने की सहमति दे दी और असम्भव दीखने वाले साधन जुटने लगे।

उसने साहित्य के तथा कविता के अति प्रसिद्ध तीस ग्रन्थ भी लिखे। जो साहित्य क्षेत्र में भली प्रकार सम्मानित हुए।

आर्थर से उसकी सफलताओं का जब भी रहस्य पूछा गया तो उसने अपने संरक्षक प्रेतों की चर्चा की और बताया प्रत्येक महत्वपूर्ण योजना, अर्थ साधनों की अर्थ व्यवस्था, कठिनाइयों की पूर्व सूचना, गतिविधियों में मोड़-तोड़ की सारी जानकारी और सहायता इन दिव्य सहायकों से ही मिलती रही है। उनकी अपनी योग्यता नगण्य है। साहित्य सृजन के सम्बन्ध में भी उसका यही कथन था कि वह कृतियाँ वस्तुतः उसके लेखक और कवि प्रेत सहायकों की ही हैं। उसने तो कलम कागज भर का उपयोग करके यह प्राप्त किया है।

चार्ल्स डिकेन्स अपने उपन्यास ‘मिस्ट्री आव एडविन हुड’ के बीस अध्याय लिखकर ही स्वर्गवासी हो गये थे। मृत्यु के दो वर्ष बाद उन्होंने थामस जेम्स को लिखने का माध्यम बनाने के लिए तैयार किया और उनकी कलम से अपना शेष कार्य स्वयं पूरा कराया।

श्रीमती जान कूपर का ‘टेल्का’ उपन्यास विशेष रूप से और अन्य सामान्य रूप से प्रख्यात हुए हैं। श्रीमती कूपर का कथन है इस लेखन में उन्हें किसी दिव्य आत्मा का मार्गदर्शन और सहयोग मिलता रहा है।

अमेरिका की श्रीमती रुथ मान्टगुमरी का कथन है कि उनका ‘ए वर्ल्ड बियोन्ड’ ग्रन्थ स्वर्गीय आर्थर फोर्ड की आत्मा ने बोल-बोल कर लिखाया है।

इंग्लैण्ड के सुप्रसिद्ध लेखक तोएल कोवर्ड ने अपनी प्रख्यात रचना ‘दि ब्लिथे स्प्रिट’ के सम्बन्ध में लिखा है कि यह लेखन उसने किसी अदृश्य साथी के सहयोग से लिखा है।

‘जान आफ आर्क’ ने अपने आत्म परिचय में यह जानकारी दी थी कि उन्हें विशिष्ट काम करने की प्रेरणा और शक्ति किसी अदृश्य आत्मा से मिलती है।

ब्रिटिश कस्बे गलोसेस्ट-शायर में रहने वाली छियालीस वर्षीय पैट्रिशिया मूलतः कनाडा की रहने वाली लेखिका है। उनका कहना है कि कई वर्ष पूर्व वे महान नाटककार जार्ज बर्नार्ड शा से आयरलैंड की किर्लानी झील के तट पर एक होटल के एक कमरे में मिली थीं और दोनों में प्यार हो गया। बर्नार्डशा अपनी मृत्यु के बाद भी प्रतिदिन रात में मेरे कमरे में आकर मुझसे मिलते हैं। मृत्यु उपरान्त पहली रात जब-जब शा की आत्मा आई, तो दोनों ने एक वर्णमाला तैयार कर ली। उसी के आधार पर दोनों में बाते होती हैं।

पेट्रीशिया जार्ज बर्नार्डशा को ‘बर्नी’ कहती है। उनके अनुसार बर्नी ने उन्हें एक अँगूठी विवाह की रस्म पर दी थी। यह ‘विवाह’ बर्नार्ड शा के बाद हुआ। वह अंगूठी पेट्रीशिया की हथेली पर हरदम चमचमाती रहती है। पेट्रीशिया के एक बच्चा भी है, जिसे वह शा का यानी अपने बर्नी का बताती है। हालाँकि जार्ज बर्नार्डशा की मृत्यु के 10 वर्ष बाद यह बच्चा हुआ है।

पेट्रीशिया के अनुसार वह इन दिनों जो कुछ भी साहित्य लिख रही है वह बर्नी की ही प्रेरणा से। उसके कमरे में जार्ज बर्नार्डशा की एक बड़ी-सी तस्वीर है। मकान में इस युग में भी कभी बिजली नहीं जलती। बारह कमरों वाले दो मंजिले मकान में सिर्फ दो-तीन कमरों में पुराने लैम्प टिमटिमाते हैं। शेष भाग घने अन्धकार में लिपटे रहते हैं एकान्त में वह अक्सर अदृश्य ‘बर्नी’ से बातें करने लगती हैं।

महान सन्त सुकरात के बारे में बताया जाता है कि प्रारम्भिक जीवन में उन्हें धर्म-कर्म एवं अदृश्य जीवन पर कतई विश्वास नहीं था। एक दिन उन्हें एक प्रेत मिला। उसने अतीन्द्रिय दर्शन की क्षमता उनमें विकसित करने हेतु भगवत् भजन का परामर्श दिया। शीघ्र ही सुकरात की यह क्षमता विकसित हो गई। प्रेत उन्हें आजीवन विशिष्ट मामलों में जानकारी व परामर्श देता रहा। इससे सुकरात सहस्रों व्यक्तियों का कल्याण करते। उन्होंने बताया तो यह तथ्य अपने साथियों को भी। पर साथी-सहयोगी प्रेत को देख नहीं सकते थे, अतः वे सुकरात के भविष्य कथन आदि को उन्हीं की चमत्कारिक शक्ति मानने लगे।

सुकरात का इस प्रेत से सतत सम्पर्क रहता था। उसी के द्वारा वे कई रहस्यपूर्ण बातें जान जाते थे तथा भविष्य की घटनाओं का पूर्वाभास पा जाते थे। ‘दि जेनियो सोक्रेटीज’ के अनुसार एक बार वे मार्ग में चलते-चलते सहसा रुक गए तथा उस सड़क पर आगे खतरे की सम्भावना बता दूसरी ओर चलने लगे। उनके जिन साथियों ने इस पर विश्वास न किया, वे उसी सड़क से गये और थोड़ी दूर पर जंगली सुअरों के आक्रमण से आहत हो गए।

प्लेटो ने भी अपनी थीसिस में एक ऐसी घटना लिखी है- भोजन करते समय सुकरात के पास बैठा एक युवक तिमार्कस सहसा उठकर जाने लगा, तो सुकरात ने रोककर कहा’-‘‘तुम्हें यहाँ से जाने पर खतरा है।” वह युवक न माना और जाकर साथियों के साथ एक षडयन्त्र में भागीदार बन गया जबकि पहले से उसे स्वयं भी इस षड़यन्त्र की कोई जानकारी नहीं थी। तिमार्कस ने उस षड़यन्त्र में शामिल होकर एक व्यक्ति की हत्या कर दी और प्राणदण्ड का भागी बना।

सुकरात पर जब मुकदमा चला और प्राणदण्ड दिया जाने लगा, उस समय उसके पास ऐसे प्रमाण थे और साधन थे, जिनसे प्राणदण्ड से छुटकारा सम्भव था। ऐथेंस की जेल से उसके मित्र एवं शिष्य भगा ले जाने हेतु भी पूर्ण तैयारी कर चुके थे। किन्तु सुकरात ने न्यायालय में स्वीकार किया- ‘अभी-अभी मेरा देवता, ‘डेमन’ मेरे कानों में कहकर गया है कि मृत्यु दण्ड मिलेगा, उससे डरने की कोई बात नहीं है, ऐसी मृत्यु मनुष्य के लिए श्रेयस्कर होती है।’

इंग्लैण्ड के राज घराने में प्रेतात्माओं की अनुभूतियों का संकलन डॉ0 लीज ने अपनी लिखी तीन पुस्तकों में विस्तृत रूप से किया है। उस समय पंचम जार्ज राज्य कार्य सम्हालते थे। उनकी बहिन ‘लुईस’ शीघ्र ही विधवा हो गई। लेकिल लुईस को अपने पति ‘ड्यूक आफ फिक’ से बहुत प्यार था। मरने के बाद भी स्नेह में अन्तर नहीं आया, अस्तु दिवंगत आत्मा ने लुईस से सम्पर्क बनाए रखा। किन्तु लुईस भी संसार से शीघ्र उठ गईं। बाद में उनके सचिव एलिजाबेथ गोर्डन ने लुईस और उनके पति की प्रेतात्मा के मिलन सम्भाषण आदि के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से बतलाया।

इसी प्रकार एडवर्ड सप्तम की पत्नी महारानी एलेग्जेण्ड्रा को प्रेतात्माओं पर अधिक विश्वास था। बुलाई गई एक प्रेतात्मा सेयांस ने उन्हें आगाह किया “सम्राट एडवर्ड अब कुछ ही दिन जीवित रह सकेंगे।’’

महारानी विंडसर प्रसाद में रह रही थीं। सम्राट सम्बन्धी उन्हें समाचार मिला कि वे कुछ-कुछ अस्वस्थ हैं। फिर भी महारानी प्रेतात्मा के संदेश के अनुसार वहाँ पहुँची। एडवर्ड बेहोश थे। केवल रानी को देखकर वे परलोक वासी हो गये।

अलबर्ट अपनी सूक्ष्म अभिव्यक्ति डी0 ब्राउन के माध्यम से किया करते थे। प्रेतात्मा जो अधिकारी व्यक्ति होता है उसी के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। लीज ने ही ब्राउन को खोज निकाला था। लीज के इस उपकार का बदला चुकाने के लिए महारानी ने उसे बड़ा पद देना चाहा। किन्तु लीज ने यह कहकर इन्कार किया कि “आत्मिक जिम्मेदारियों का बोझ इतना अधिक होता है कि उसे वहन करते हुए लौकिक कार्यों को ठीक प्रकार नहीं किया जा सकता है। दोनों में से एक कार्य ही प्रमुख रह सकता है।” इस पर महारानी ने केवल सलाह लेना ही उचित समझा और राज्य पद लीज को नहीं दिया।

महारानी को अपने मृत पति की आत्मा से दिन पर दिन सहयोग एवं परामर्श लेने की अधिक आवश्यकता होती रही। इसके लिए ब्राउन के शरीर और अलबर्ट की आत्मा का समन्वय बहुत ही उपयुक्त रहा। किन्तु जान ब्राउन भी अधिक दिनों तक संसार में न रह सके। इसका आघात महारानी को बहुत पहुँचा। महारानी ने अपनी गहरी संवेदना ब्राउन की कब्र पर इस प्रकार अंकित करवाई है “मुझ वियोगिनी और व्यथिता के लिए-वरदान स्वरूप एक विलक्षण व्यक्ति की स्मृति में”। महारानी के निजी सचिव सर हेनरी पौन सोनवी ने ‘टाइम्स’ में महारानी की गहरी संवेदना भी अभिव्यक्त की है। इस आघात से महारानी बहुत दुर्बल भी हो गई थीं।

यदि सम्पर्क उचित माध्यम से किया जा सके तो मरणोपरान्त आत्माएँ उचित परामर्श, सहयोग, सान्निध्य देने में समर्थ रहती हैं। इसमें सन्देह नहीं है।

अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन अक्सर आत्मवादी कुमारी नैटीकोल बर्न को आदरपूर्वक ह्वाइट हाउस में आमन्त्रित किया करते थे और उससे रणनीति तथा दूसरे महत्वपूर्ण तथ्यों पर परामर्श किया करते थे। उस लड़की पर कई प्रेतात्माएँ छाई रहती थीं और वे इस स्तर की थीं कि किन्हीं रहस्यपूर्ण तथ्यों का उद्घाटन कर सकें। लिंकन ने कई बार अपनी कार्य पद्धति उन प्रेतात्माओं की सहायता से बनाई थी और कई ऐसी रहस्यपूर्ण बातों का पता लगाया जिन्हें खोज सकना जासूसी जाल द्वारा भी सम्भव न हो सका।

अदृश्य आत्माओं द्वारा स्थूल सहायताएँ भी पहुँचाई जा सकती हैं। द्वितीय महायुद्ध में ‘मोन्स’ की लड़ाई में ब्रिटिश सेना जर्मनों द्वारा बुरी तरह मारी-काटी गई और सिर्फ 500 ब्रिटिश सैनिक बच रहे। जर्मन सैनिक 10 हजार थे। इन पाँच सौ का भी नाम शेष कर देने की तैयारी थी। तभी एक ब्रिटिश सैनिक को इंग्लैण्ड के स्वर्गीय महान सेनानायक सेंट जार्ज की एक होटल में देखी तस्वीर याद आई। उसने सभी सैनिकों को उनका स्मरण कराया। भावना तथा आत्म-शक्ति से सभी ब्रिटिश सैनिकों ने सेन्ट जार्ज का स्मरण किया। एक बिजली सी कौंध गई। 500 सैनिकों के पीछे हजारों श्वेत वस्त्रधारी सैनिकों की आभा दृष्टिगोचर हुई और अगले क्षण दस हजार जर्मन सैनिक रणभूमि में मृत पड़े थे। बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के, प्रहार के, निशान के। इस घटना ने पूरे इंग्लैंड व विश्व में तहलका मचा दिया था।

स्काटलैण्ड के राजा जेम्स चतुर्थ को उन्हीं का कोई पूर्वज, जो प्रेतयोनि में था, बार-बार दर्शन देता था। इंग्लैण्ड पर आक्रमण करते समय जेम्स चतुर्थ को वह प्रेत रक्तपात न करने की चेतावनी देता। पर जेम्स ने कभी सुना नहीं। एक बार पुनः जब वह युद्ध के लिए चला, तो प्रेत ने मना करते हुए कहा-‘इस युद्ध से तुम जीवित न लौट सकोगे।’ जेम्स माना नहीं और मारा गया।

नैपोलियन बोनापार्ट को भी उसकी मृत्यु होने की सूचना एक प्रेतात्मा ने दी थी जबकि वह सेंट हेलेना द्वीपों में था। उसके साथियों ने इसे व्यर्थ की बात समझकर टाल दिया। किन्तु नैपोलियन की मृत्यु प्रेतात्मा के कथनानुसार ही हुई।

एक दिन सन्ध्या समय फ्रांस के सम्राट हेनरी चतुर्थ बड़ी देर तक घूमते रहे। लौटते समय एक छाया जैसी आकृति उन पर मंडराने लगी। इससे हेनरी घबरा से गये और उससे प्रश्न किया कि तुम कौन हो? तत्काल ही उस छाया जैसी आकृति ने उत्तर दिया कि मैं प्रेतात्मा हूँ और यह बताने आया हूँ कि तुम्हारी मृत्यु किसी छाया षड़यन्त्र के द्वारा शीघ्र ही हो जावेगी। चाहो तो सुरक्षा की व्यवस्था कर लो।

इस घटना को हेनरी ने अपने दरबारियों को सुनाया। इस पर वे इसे दिवास्वप्न कहते हुए हँसने लगे। किन्तु कुछ दिनों बाद प्रेतात्मा के संकेतानुसार हेनरी की हत्या हो गई।

‘दि होल्ड्स’ लन्दन के सम्पादक मौरिस बारबानिल का कथन है कि “इस दृश्य विश्व से परे एक विलक्षण विश्व है। वहाँ मृत्यु के उपरान्त जीवन है।”

ब्रिटेन के अवकाश प्राप्त एयर मार्शल लार्ड डाडिंग भी मृतात्माओं से सम्पर्क के प्रयोग करते थे।

ब्रिटेन के सम्मानित नागरिक सर आर्थर कानन डायल ने अपने स्वर्गीय पुत्र डेनिस की आत्मा से सम्पर्क बना कर प्रेत लोक की स्थिति के बारे बहुत सी जानकारियाँ एकत्रित की थीं और उन से जन साधारण को परिचित कराया था।

‘विज्ञान और मानव विकास’ तथा ‘मैं आत्मा के अमरत्व में क्यों विश्वास करता हूँ’ नामक पुस्तकों में मरणोत्तर जीवन पर विस्तृत प्रकाश डाला है। सर विलियम क्रुक्स, सर एडवर्ड मार्सल, सर आर्थर कानन-डायल, डॉ0 मेयर्स, एलफ्रेड आदि अनेक वैज्ञानिक विद्वानों ने इस दिशा में विभिन्न खोजें की हैं व उनके निष्कर्ष विश्वभर में प्रकाशित हुए हैं, जो पुनर्जन्म के प्रचुर प्रमाण देते हैं, साथ ही दो जन्मों के बीच के अन्तराल में सूक्ष्म शरीर में ही प्रेतादि योनियों में रहने वाले व्यक्तियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क कर उनके विवरण भी छापे हैं।

सन् 1893 में पादरी जे0एच0 बरोस ने सेन्टपाल, बुद्ध, सुकरात, जेरी टेलर, जान मिल्टन, रोजर, विलियस, लैसिंग, अब्राहिम लिंकन, टैनिसन, ह्विटियर और फिलिप्स क्रुक्स आदि की आत्माओं से सम्पर्क किया था।

थियोसॉफिकल सोसाइटी के सुविख्यात सन्त लेड विटर की पुस्तक है “स्प्रिचुअल हीलिंग” उसमें भी कहा गया है कि मृत्यु के उपरान्त जीव विचार-लोक में जीवित रहता है। यह पदार्थ-जगत उस विचार-जगत की छाया मात्र है।

श्री प्रो0 बी0 डी0 ऋषि इन्दौर में जज थे। धर्म-पत्नी सुभद्रादेवी की मृत्यु ने उनमें मृत-पत्नी से वार्ता की इच्छा जगाई तथा वे इसी खोज में लग गये। वे सफल हुए व पूरा जीवन परलोक विद्या के लिए ही समर्पित कर दिया। उन्होंने कई मृतात्माओं को बुलाकर अत्यन्त महत्वपूर्ण व्यक्तियों के समक्ष विभिन्न प्रमाणों सहित वार्तालाप किया-कराया था। मृतात्माएँ ऐसे तथ्य उद्घाटित करतीं, जो नितांत निजी होते।

प्रसिद्ध पत्रकार एवं शिक्षा-शास्त्री पं0 श्री नारायण चतुर्वेदी के पिता स्वर्गीय पं0 द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी भी मृतात्माएँ बुलाने के प्रयोग करते थे। एक मेज पर वे पंच पात्र व एक चमची रख देते। मृतात्मा के आते ही पंचपात्र स्वयं बज उठता।

प्रख्यात पत्रकार, इलाहाबाद से प्रकाशित अंग्रेजी ‘दैनिक लीडर’ के भूतपूर्व सम्पादक स्वर्गीय सर सी0 वाय0 चिन्तामणि राव का भी किसी अदृश्य आत्मा से सम्पर्क था।

सत्रहवीं सदी के पादरी जेरेन्सी टेलर ने अपनी स्मरण पुस्तक में प्रेतात्मा सम्बन्धी आँखों देखा वर्णन किया है। जब पादरी घोड़े पर सवार होकर बेलफास्ट से डिल्स गेटो जा रहे थे, कोई अपरिचित व्यक्ति अचानक ही उसके पीछे घोड़े पर बैठ गया उससे बैठने का कारण पूछने पर उसने अपना नाम-हैडक जेम्स बताते हुए कहा आप मेरी पत्नी तक संदेश पहुँचा देवें कि उसका नया पति शीघ्र ही उसकी हत्या करने वाला है। पादरी ने बताये गये पते पर संदेश दे दिया। किन्तु उसकी पत्नी ने विश्वास नहीं किया।

कुछ दिनों के बाद उस स्त्री की हत्या कर दी गई। यह मामला कैरिक फोरेन्स की अदालत में चला। पुलिस को शंका थी कि हत्या नये पति ने पत्नी की सम्पत्ति छीनने के लिए की है। उसकी साक्षी पादरी जेरेंसी टेलर ने प्रेतात्मा के शब्दों में दी।

किन्तु साक्षी अमान्य रही और मजिस्ट्रेट ने कहा कि यदि सत्य है तो प्रेतात्मा स्वयं आकर इसका प्रमाण दें। इस पर एकदम बिजली कड़की एक अदृश्य हाथ निकला और उसने अदालत की मेज पर तीन बार जोर-जोर से थपकी दी। इस पर अदालत ने दूसरे पति डेवीज को अपराधी घोषित करके उसे उचित दण्ड दिया।

दिव्य प्रेतात्मा से कभी-कभी किन्हीं-किन्हीं का सीधा सम्बन्ध उनके पूर्वजन्मों के स्नेह सद्भाव के आधार पर हो जाता है। कई बार वे उपयुक्त सत्पात्रों को अनायास ही सहज उदारता वश सहायता करने लगते हैं किन्तु ऐसा भी सम्भव है कि कोई व्यक्ति अपने आपको साधना द्वारा प्रेतात्माओं का कृपा पात्र बना ले और अपने साथ अदृश्य सहायकों का अनुग्रह जोड़ कर अपनी शक्ति को असामान्य बना ले एवं महत्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त करने का पथ प्रशस्त करे।


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