समुद्र की अथाह जल राशि में भी आग लगती दीख पड़ सकती है। शर्त यह है कि उसके अन्तराल में गर्मी भरी पड़ी हो और उसे फूट पड़ने का अवसर मिल सके। सन् 1866 में सान्तिरिन के समुद्र में आग लगी देखी गई। दर्शकों ने आँखों से देखा कि समुद्र जल ज्वाला बना हुआ है और उसकी लपटें तल से 25 फीट तक ऊँची उठ रही हैं। हुआ यह था कि समुद्र की तली में धरती के भीतर कोई ज्वालामुखी फटा और वह इतना तीव्र था कि समुद्र जल को चीरता हुआ अपनी लपटें ऊपर तक उछालने लगा और दर्शकों को लगा कि समुद्र का पानी ही आग बनकर जाज्वल्यमान हो रहा है।
मनुष्य के भीतर की आग जब कभी विद्रोह बनकर फूटती है तो वह व्यापक क्रान्ति की दावानल बनकर दृष्टि-गोचर होती है, पर तत्वदर्शी देखते हैं कि उसके मूल्य में किसी प्राणवान चेतना की अन्तर्वेदना ही प्रज्वलित हो रही है।