जीवन सम्पदा का सदुपयोग सीखा जाय

June 1975

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प्राणधारी को दिये गये ईश्वरीय उपहारों मानव शरीर सर्वोपरि है। इससे बड़ी कोई और सम्पदा ईश्वर के पास है ही नहीं। इसे उसकी सर्वोत्तम कलाकृति कहा जा सकता है। जिन विशेषताओं के साथ इसे सँजोया गया है उसका दर्शन समस्त संसार में अन्यत्र कहीं नहीं हो सकता। इसमें जितनी अद्भुत सम्भावनाएँ भरी पड़ी हैं उसे देखते हुए नर को नारायण का छोटा स्वरूप कहने में कोई अत्यधिक नहीं है। इसका स्वरूप और उपयोग यदि समझा जा सके और ठीक तरह प्रयुक्त किया जा सके तो मनुष्य देवोपम हर्षोल्लास भरा-जीवन जी सकता है और अपने संबद्ध क्षेत्र को सुख शान्ति भरे स्वर्गीय वातावरण का लाभ दे सकता है।

यदि जीवन का महत्व, स्वरूप और उपयोग समझा जा सके तो प्रतीत होगा कि और कुछ शेष नहीं है। जो मिला है उसी का सही प्रयोग करना सीखना है। आरोग्य, आनन्द, धन, बल, यश एवं वर्चस्व के समस्त आधार अपने भीतर मौजूद है। कमी एक ही है कि अपने आपको समझना-जीवन सम्पदा का मूल्याँकन करना और उपलब्धियों का सदुपयोग करना नहीं आता। यदि यह भूल सुधारी जा सके तो प्रतीत होगा कि अपने चारों ओर अनन्त आनन्द का समुद्र लहलहा रहा है और उच्चस्तरीय प्रगति का सोपान पूर्णतया खुला पड़ा है।


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