सन्ध्या हो चली। सूर्य गंभीर मुख मुद्रा बनाये खिन्न खड़े थे।
दिक् पालों ने उस खिन्नता का कारण पूछा तो सूर्य देव ने उलट कर प्रश्न पूछा तुम्हीं बताओ, मेरे चले जाने के बाद प्रकाश देने का उत्तरदायित्व कौन संभालेगा?
दसों दिक्पाल चुप खड़े थे। विदाई के लिए प्रस्तुत देवता भी बंगले झाँकने लगे। उस निस्तब्धता को तोड़ते हुए एक नन्हें से मिट्टी के दीपक ने कहा- देव, आप शान्त चित्त से विदा हों, अपनी अकिंचन सामर्थ्य के अनुरूप हम आपके पथ का अनुगमन करेंगे।