आँवला एक बहुत उपयोगी फल है। यह विशिष्ट गुण सम्पन्न है। इसके वृक्ष भारत के हर क्षेत्र में पाये जाते हैं। हिमालय की चार हजार फुट ऊँची पहाड़ियों से लेकर भारत के धुर दक्षिण और लंका तक तथा जम्मू से लेकर पूर्व में असम की गारो-खासी की पहाड़ियों तक इसके वृक्ष लहलहाते देखे जा सकते हैं। यह बहुत ही सहिष्णु पेड़ है। पाले और लू की समान रूप से उपेक्षा करता हुआ जंगलों, वाटिकाओं दोनों की शोभा बढ़ाने से सर ऊँचा किये रहता है।
चाहे इसका फल जंगल से प्राप्त हो चाहे अमीर के उद्यान से, समान रूप से गुणकारी होता है। हाँ स्वाद और आकार में कुछ अन्तर हो सकता है। सस्ता होने के कारण यह गरीब की कुटिया में तथा विटामिन प्रधान होने के कारण अमीर के राज प्रसादों में समान रूप से आदर पाता है। इसके सस्तेपन के कारण ही अमीर इसका तब तक निरादर करता रहा, जब तक कि वैज्ञानिक परीक्षणों ने इसकी महिमा को पुनर्स्थापित नहीं कर दिया। अब तो विदेशों में भी इसकी अच्छी माँग हो रही है और वहाँ भी इससे अनेक औषधियाँ बनाई जा रही हैं।
आज से हजारों वर्ष पूर्व भारत में आँवले को सर्वोत्तम रसायन की मान्यता प्राप्त थी। भारतीय महर्षियों ने इसके जीवनीय गुणों का परीक्षण किया था और इसे प्रथम आहार माना था। बाद में दुर्भाग्यवश ज्ञान के अन्धकार युग में इसके भी गुण भुला दिये गये। अब पुनः वैज्ञानिक परीक्षणों ने इसकी महिमा को पुनर्जीवन देने में भरपूर सहायता दी है। इन परीक्षणों से पता चला है कि इसके फल में 9.6 प्रतिशत एसीटिक अम्ल, 35 प्रतिशत टेनिक व गेलिक अम्ल तथा 10 प्रतिशत ग्लूकोज होता है। इनके अतिरिक्त प्रोटीन 0.5 प्रतिशत वसा 0.1 प्रतिशत खनिज लवण 0.7 प्रतिशत रेशे 3.4 प्रतिशत और कार्बोहाइड्रेट 4.1 प्रतिशत पाये जाते हैं।
विटामिनों का तो यह भण्डार ही है। विटामिन ‘सी’ इसमें सबसे अधिक पाया जाता है। इसमें संतरे के रस से 20 गुना और सेब के रस से कई गुना अधिक विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। यह विटामिन शारीरिक और मानसिक दोनों विकास के लिये अति आवश्यक है। अतः यह बच्चों, बूढ़ों, नौजवानों और गर्भिणियों के लिए अति उपादेय है।
आँवले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सभी प्रकार के प्रकृति वाले व्यक्तियों की, सभी प्रकार के ज्वर, मूत्रकच्छ, योनिदाह एवं उपर्युक्त अनेकानेक रोगों में रामबाण की तरह अचूक पाया गया है।
आँवले में जीवनदायिनी शक्ति पाई जाती है। यह शक्तिवर्धक और स्वास्थ्यवर्धक दोनों ही है। यह शरीर की ऊष्मा को सुरक्षित रखता है, नेत्रों की ज्योति बढ़ाता है बालों की जड़ों को मजबूत बनाता है, दन्त पंक्तियों को उज्ज्वल चमक देता है। यह हृदय तथा मस्तिष्क को बल प्रदान करता है यह मस्तिष्क के तन्तुओं के तरावट रखता है।
इसकी सेवन विधि भी सुगम हैं। मुरब्बा व अचार के रूप में इसका लोकप्रिय प्रयोग तो सर्वविदित है। नमक और कालीमिर्च के साथ इसका कच्चा फल बहुत स्वादिष्ट लगता है। भोजन के बाद इस रूप में इसका सेवन जठराग्नि को प्रदीप्त करता है। क्षुधा को बढ़ाता है। रक्त को साफ रखता है और दांतों को मोती की तरह चमकाने लगता है और शरीर को निरोगता प्रदान करता है। आँवले की चटनी भी बनाई जाती है। धनिया, पुदीना के साथ खटाई के स्थान पर इसका प्रयोग गुणकारी होता है। इसके सूखे टुकड़े सुपारी की तरह खाये जाते हैं। आँवले को आग में भूनकर नमक के साथ भर्ता बनाकर खाया जाता है। भोजन के साथ या बाद में इसके सेवन से परिपाक ठीक रहता है और मस्तिष्क में स्फूर्ति बनी रहती है। त्रिफला एवं अन्य भेषजों में इसका प्रयोग भेषजीय रूप में होता है।