साहसी चोर (kahani)

May 1974

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बर्लिन के समाप पोट्स डाम राजमहल के दीवानखाने की दीवार पर लगी एक बहुमूल्य घड़ी को एक आदमी उतारने की कोशिश कर रहा था। पर सीढ़ी के पैर बार−बार फिसल जाते थे इसलिए उतारने वाला अपने प्रयास में सफल नहीं हो पा रहा था।

इसी बीच भोर हो गई। सम्राट् फ्रेडरिक जगे और उस असफल प्रयास को कुछ देर तो देखते रहे पीछे उस उतारने वाले के पास गये और पूछने लगे—तुम कौन हो और यह सब क्या कर रहे हो?

उतारने वाले ने साहस और धैर्य पूर्वक कहा—मैं शाही घड़ी साज हूँ। मरम्मत के लिए यह घड़ी उतारनी है पर सीढ़ी के पैर जम ही नहीं पाते।

फ्रेडरिक ने स्वयं सीढ़ी पकड़ ली और उस व्यक्ति को घड़ी उतारने में सहायता की। उसने घड़ी उतारी बगल में दावी और चलता बना।

दूसरे दिन पुलिस को रिपोर्ट पहुंची कि दीवानखाने की कीमती  घड़ी कोई चोर चुरा ले गया। सम्राट् को चोर के साहस और धैर्य पर आश्चर्य सिश्रित प्रसन्नता हुई। रिपोर्ट के एक कोने पर फ्रेडरिक ने नोट लगाया। वह चोर सम्राट की सहायता से अपना मन चाहा उपहार पाने में सफल हुआ।

पाप और अनाचार के चोर हमारी बहुमूल्य संपदाओं को अक्सर चुराते हैं। उस चोरी में फ्रेडरिक की तरह हम स्वयं ही सहायता कर रहे होते हैं।


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