भिक्षु विनायक को वाचालता की लत पड़ गई थी। जोर−जोर से चिल्ला कर जनपद पर लोगों को जमा कर लेता और धर्म की लम्बी−चौड़ी बातें करता।
तथागत को समाचार मिला तो उन्होंने विनायक को बुलाया और स्नेह भरे शब्दों में पूछा—भिक्षु, यदि कोई ग्वाला सड़क पर निकलने वाली गायें गिनता रहे तो उनका मालिक बन जायगा। विनायक ने सहज भाव से कहा नहीं, भन्ते, ऐसा कैसे हो सकता है। गौओं के स्वामी ग्वाले को तो उनकी संभाल और सेवा में लगा रहना पड़ता है। तथागत गम्भीर हो गये। उनने कहा—तो तात! धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त और जनता की सेवा साधना में संलग्न रहकर उसे धर्म प्रेमी बनाओ।