जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति

May 1974

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

आशा को जीवन का चिह्न मानना चाहिए। इसके अभाव में दो स्थिति रह जाती हैं जिन्हें अति मानवी या अमानवी कह सकते हैं। एक परमहंस—ब्रह्मज्ञानी—अवधूत, आत काय ब्रह्म−निष्ठ जिन्हें भीतर ही सब कुछ मिल रहा है बाहर जिन्हें न कुछ आकर्षक लगता है और न उपयोगी। ऐसे लोग सुने जरूर गये हैं पर देखे नहीं गये। यदि देखे जाँय तो अति मानव—देव पुरुष कहना चाहिए। दूसरे स्तर के वे हैं जो आहार निद्रा के अतिरिक्त और न स्थिति। किसी तरह दिन कट जाना और साँसें पूरी कर लेना ही उन्हें कोई महत्वाकाँक्षा नहीं सताती। शरीर यात्रा पूरी होती रहे इतने में ही उन्हें सन्तोष रहता है इस प्रकार के प्राणियों को अमानव कहा जाता है। मनुष्य योनि में से ऐसे अमानव—अविकसित मनःस्थिति के प्राणी पाये जा सकते हैं। उन्हें भी आशा निराशा में कुछ लेना देना नहीं होता। जो है सो ठीक—जो होगा सो ठीक। आगे की बात सोचने से क्या लाभ।

जिसकी आशा का दीपक बुझ गया—जिसे निराशा ने घेर लिया—जिसकी आकाँक्षाएँ समाप्त हो गई—भविष्य के लिए जिसके पास कुछ सोचने या करने को नहीं है उस ढर्रे की जिन्दगी को मौत की भौंड़ी खुराक ही कहना चाहिए। जीवन का अर्थ साँस लेना, खाना, सोना नहीं वरन् कुछ ऊँचा है। जहाँ वह ऊँचाई न हो वहाँ जीवित मृतक की स्थिति मानी जा सकती है। कई व्यक्ति जिन्दगी के कन्धों पर मौत की लाश लादकर ढोते रहते हैं। आशा विहीन लोगों को इसी श्रेणी में गिना जाना चाहिए।

जीवन रथ का पूरा दूसरा चक्र है गति। चेष्टा—क्रिया—हलचल के उस स्तर को गति कहते हैं जो शरीर यात्रा के प्रकृति−प्रदत्त क्रम उपक्रम से आगे की सक्रियता जुड़ी हुई हो। शरीर यात्रा की हलचल तो घास−पात, पेड़−पौधे, अदृश्य जीवाणु और कीट पतंग में भी होती है। गति इससे ऊपर की ऐसी चेष्टा है जो किन्तु महत्वकाँक्षाओं की प्रेरणा से उत्पन्न होती है। इस ‘गति’ की प्रखरता के सत्परिणामों को ही ‘प्रगति’ कहा जाता है।

गतिशीलता में जितनी शक्ति खर्च होती है उससे कहीं अधिक आशा और प्रदत्त लक्ष्य की पूर्ति के लिए प्रबल मनोयोग और प्रखर श्रम, साधन सहित निरन्तर अग्रगामी रहना पड़ता है। इसी को जीवन रथ का सुरम्य संचालक कहा जा सकता है। आशावान और गतिशील को ही जीवित कह सकते हैं। यों साँस तो लुहार की धोंकनी भी लेती, छोड़ती रहती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles