गरुड़ देव (kahani)

May 1974

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उस दिन गरुड़ देव भ्रमण के लिए निकले | देखा तो पाटिल पुत्र के विष्णु मन्दिर के चबूतरे पर बैठा कबूतर बेतरह काँप रहा था।

इस निर्भय और सुरक्षित स्थान पर कपोत को अकारण इस प्रकार काँपते देखकर गरुड़ ने आश्चर्य पूर्वक कारण पूछा।

कपोत बोला—अभी यमराज आये थे। मुझे देखकर हँसे और बोले कल प्रातःकाल इस अभागे की मौत आ जायगी। सो मैं प्राण संकट की बात सोचकर अधीर हो रहा हूँ—देव!

गरुड़ को दया आई और साथ ही यमराज को चुनौती देने की बात भी उन्हें सूझी। सो कबूतर को पंजों में दवा कर वे सुदूर यात्रा पर निकल पड़े और मलयगन्ध पर्वत की एक सुरक्षित गुफा में जाकर उसे रख दिया।

दूसरी उड़ान में गरुड़ यमलोक पहुँचे और यमराज को बताया कि वे किस प्रकार कपोत को सुरक्षित स्थान पर पहुँचा चुके हैं।

यम ने  विष्णु वाहन का आदर−सत्कार किया और मृत्यु सम्बन्धी लेखा−जोखा मँगाया। पूर्व व्यवस्था लिखी हुई थी कि पाटिल पुत्र के विष्णु मन्दिर में रहने वाला कपोत अमुक तिथि को मलयगंध पर्वत की गुफा में विदंत सर्प द्वारा भक्षण किया जायगा। वह मृत्यु मुहूर्त कुछ घड़ी पूर्व ही पूरा हुआ है।

गरुड़ चकित रह गये लौट कर पहुँचे तो देखा कि सर्प द्वारा कपोत को उदरस्थ किया जा चुका है। रक्षा के मिस उस निरीह पक्षी को मृत्यु के मुख तक पहुँचाने के निमित्त वे स्वयं ही धन गये हैं यह सोचकर वे भारी मन लेकर अपने घर लौटे।

विष्णु भगवान् ने उनकी उदासी और मनोव्यथा को जाना और समझाते हुए बोले—गरुड़,जन्म तरह मरण भी निश्चित हैं। नियत समय पर मरने से कोई बचता नहीं। इस तथ्य को यदि मोहग्रस्त प्राणी समझ सके होते तो मृत्यु से डरकर साहसिक सत्कर्म करने से न चूकते और शोक−सन्ताप में जिस तरह सिर घुनते हैं उसकी आवश्यकता न पड़ती।


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