अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें

May 1974

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मनुष्य जाति के भाग्य एवं भविष्य को बदलने की समस्त संभावनायें अपने धर्म में नव−निर्माण अभियान छिपाये हुए हैं। उसे सबल एवं सफल बनाने का उत्तरदायित्व जब अखण्ड−ज्योति परिवार के कन्धों पर नियति ने ला ही पटका है तो अब हमें उसे पूरा करने के लिए साहसपूर्वक आगे बढ़ना ही होगा। युग की—मानवता की पुकार को अनसुनी करना अब अपने लिए संभव न होगा। पिछले दिनों जो महत्वपूर्ण भूमिकाएँ इस छोटे से परिवार ने निभाई हैं—उनसे समस्त मानव−समाज ने बड़ी−बड़ी आशायें बाँधनी आरम्भ कर दी हैं। शिथिलता और अन्यमनस्कता अपनाकर अब उस आशा को निराशा में परिणत कर देना न अपने लिए उचित है न सम्मानजनक। हमें आगे बढ़ना ही चाहिए, बढ़ना ही होगा।

नव−निर्माण के महत्वपूर्ण चरणों में एक यह भी है हम अपनी आधी जनता को अपंग स्थिति से उबारने के लिए साहसपूर्ण कदम उठायें नर और नारी लगभग समान संख्या में हैं। अपनी आधी जनसंख्या नारी समाज की है। उसकी जो दयनीय दशा है वह किसी से छिपी नहीं है। भारतीय नारी सम्मान की दृष्टि से संसार प्रसिद्ध है वहाँ उसकी यह आधी जनता अशिक्षा, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता से ग्रस्त पिछड़ेपन की दयनीय स्थिति में गिरी पड़ी है। घरों के छोटे पिंजड़ों में कैद रहकर उसे जिन्दगी गुजारनी पड़ती है। पर्दा प्रथा के कारण उसके वे अधिकार भी छिन गये जो सड़क पर मुँह खोलकर चलते हुए और मन की बात बताने पर स्वतन्त्रता के साथ ले आने के के रूप में पशुओं को भी प्राप्त है। इस पराधीनता के बंधनों में जकड़ी हुई—शिक्षा और स्वावलम्बन की क्षमता से सर्वथा वंचित नारी पिछड़ेपन का केन्द्र बन गई। वह अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य गँवा बैठी। घुटन, प्रताड़ना और परावलम्बन का अभिशाप उसके आँसुओं को सूखने ही नहीं देता। बौद्धिक दृष्टि से उसे कूप−मंडूक से बढ़कर और क्या कहा जा सकता है?

नारी को अपंग एवं बंदी जैसी स्थिति में पटक कर हमने पाया कुछ नहीं खोया सब कुछ। सुविकसित स्तर की नारी अपने दांपत्य−जीवन में जितना रस घोल सकती थी—परिवार को हर दृष्टि से सुव्यवस्थित और समुन्नत स्तर का बना सकती थी—सद्गुणी और स्वस्थ सन्तान उत्पन्न कर सकती थी—कुटुम्ब का वातावरण स्वर्गीय बना सकता था वह इस पिछड़ेपन के रहते हुए सम्भव नहीं। इस आधी जनता को भी यदि मानवोचित नागरिक अधिकार मिले होते तो वह नर के कन्धे से कन्धा मिलाकर वैयक्तिक और राष्ट्रीय सुख−समृद्धि बनाने में असाधारण योगदान दे रही होती। कहने को भारत की आबादी इन दिनों पचास करोड़ है पर यथार्थ में उसे 25 करोड़ ही गिनना चाहिए पिछले दिनों एक लाख पाकिस्तानी युद्ध बन्दियों और बँगला देश के शरणार्थियों का बोझा ढोना पड़ा सच पूछा जाय तो पचास प्रतिशत अपनी अविकसित जनता का—नारी का—बोझ हमारे राष्ट्र को लगभग उसी प्रकार का वहन करना पड़ रहा है। योग्यता और सुविधा के अभाव में वे अपना बोझ भी नर के कन्धों पर ही डालें हुए हैं। यदि यह स्थिति न होती उन्हें सुयोग्य स्वावलम्बी बन सकने का अवसर मिलता तो वे भार रूप न रहकर उलटे समृद्धि वृद्धि में योगदान देतीं, फलस्वरूप आज की हमारी शक्ति जो आधी रह गई हैं उस स्थिति में दूनी होती। चार गुने का अन्तर पड़ता, प्रगति की आकाँक्षा करते हुए अपने राष्ट्र की नारी को इस दयनीय दुर्दशा से निकालना ही पड़ेगा।

ध्यानपूर्वक देखा जाय तो देश की पचास फीसदी जनता को अपंग स्थिति से उबारना और उसे मनुष्योचित क्षमताओं से सुसम्पन्न करना इतना बड़ा काम है जिसे भारतीय जन शक्ति को दूना और समृद्धि को सौगुना बढ़ा देने वाला अति महत्वपूर्ण आधार कहा जा सकता है। पारिवारिक सुख−सौमनस्य बढ़ाकर उससे स्वर्गीय वातावरण का सृजन करने का यह एक अभिनव प्रयोग सिद्ध होगा। पीड़ियों को हर दृष्टि से सुविकसित और समुन्नत देखना हो तो यह कदम उठाये बिना और किसी प्रकार काम नहीं चलेगा। यह तो नारी उत्थान के लाभ हुए। सुविकसित मनुष्य स्वयं में एक चमत्कार है। अपने इस आज के पिछड़े वर्ग में न जाने कितनी इंद्रागाँधी, लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, सरोजिनी नायडू, कमला चट्टोपाध्याय, गार्गी, मदालिसा, छिपी बैठी होंगी, उनके प्रकाश में आने से हम कितने आगे बढ़ सकेंगे, कितने ऊँचे उठ सकेंगे, इसकी कल्पना मात्र से ही मन में गुदगुदी उठती है जब वह वस्तुस्थिति सामने आयेगी तब पता चलेगा कि यह नारी जागरण का कार्य कितना महान और कितना महत्व पूर्ण था—जिसकी ओर कि किसी का आज ध्यान ही नहीं है।

अखण्ड−ज्योति परिवार को इस महान कार्य का उत्तरदायित्व भी अपने कन्धों पर लेना चाहिए। हममें से प्रत्येक को निश्चय करना चाहिए कि नारी जागरण के महान अभियान में उसका योगदान उपेक्षा एवं अन्यमनस्कता के साथ नहीं वरन् उत्साह भरा हुआ रहेगा। हम लोग मिल−जुलकर कुछ कदम बढ़ायें तो इसका परिणाम अगले ही दिनों चमत्कार बनकर सामने आ खड़ा होगा महत्व हमेशा अग्रगामियों का रहा है। अगली पंक्ति में खड़े होने वालों में—श्रीगणेश शुभारम्भ करने वालों में यदि हम अपनी गणना करा सकें तो अगले ही दिनों पीछे चलने वालों की, अनुकरण करने वालों की कोई कमी नहीं रही यह स्पष्ट दिखाई देगा।

भारत की परम्परागत परिस्थितियाँ ऐसी हैं जिनमें घरों में बन्द रहने वाले—और पुरुषों की छाया से कतराने वाले महिला समाज में केवल महिलायें ही प्रवेश पा सकती हैं और वे ही कुछ काम कर सकती हैं—वे ही उनमें घुल−मिल सकती हैं। पुरुष किसी महिला सम्मेलन में भाग लेने के अतिरिक्त कुछ अधिक नहीं कर सकते। काम प्रवचनों का नहीं उनमें घुलने−मिलने का है। इसलिए हमें पर्दे के पीछे रहकर सूत्र संचालन करना चाहिए और कार्य क्षेत्र में अपने घर की नारियों को उतारना चाहिए। इस दिशा में यदि उनका तनिक भी उत्साह है तो उसे चौगुना सौगुना बढ़ाना चाहिए उन्हें अवसर देना चाहिए कि ये राष्ट्र और संस्कृति के माथे पर लगे हुए इस कलंक को धोने में कुछ कारगर योगदान देने की भूमिका निभा सकें; यदि उनमें उत्साह नहीं है तो प्रयत्नपूर्वक समझाते बुझाते रहना चाहिए, और उन्हें गृह−कार्यों से कुछ समय निकाल कर अपने समीपवर्ती घर, मुहल्लों की महिलाओं के साथ संपर्क बनाने और उनमें नव−जागरण की चेतना उत्पन्न करने में संलग्न होना हर दृष्टि से उपयोगी रहेगा, इससे उनका स्वयं का सर्वतोमुखी उत्कर्ष होगा और साथ ही अन्य बहिनें भी उस प्रकाश से लाभान्वित हो सकेंगी।

महिला जागरण का प्रथम चरण तीसरे पहर 2 से 5 बजे तक तीन घंटे चलने वाली महिला पाठशालाओं से आरम्भ करना होगा। गली−गली, मुहल्ले−मुहल्ले ऐसी पाठशालायें खुलनी चाहिए जिनमें प्रौढ़ महिलायें पढ़ने आ सकें। छोटी बच्चियों को स्कूल भेजा जाय उन्हें सरकारी पढ़ाई पढ़ने दी जाय सो ठीक है; पर वह सुविधा उन महिलाओं की नहीं मिल सकती जिनके कन्धों पर घर परिवार का—रसोई और बच्चों का उत्तरदायित्व लदा हुआ है। इस वर्ग को उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता। छोटी बच्चियाँ पढ़−लिखकर, प्रौढ़ बनकर सामाजिक चेतना में भाग ले सकने और वातावरण को प्रभावित कर सकने योग्य स्थिति में तब पहुँचेंगी जब 30 वर्ष की आयु के करीब पहुँच जायें। इससे पूर्व न तो घर वाले उन्हें अवसर ही देंगे—न उनकी प्रतिभा ही इतनी विकसित हो जायेगी कि उनका महत्वपूर्ण प्रभाव सामाजिक परिस्थितियों पर पड़ सके। यह कार्य तो वे प्रौढ़ महिलाऐं ही करेंगी जिनने अपना व्यक्तित्व थोड़ा परिपक्व कर लिया है जिनका कुछ प्रभाव अधिकार बनने चलने लगा है।

आज की लड़कियाँ शायद दस−बीस वर्ष बाद महिला समाज को कुछ ऊँचे स्तर तक पहुँचाने में सफल हो सकें पर आज तो समस्या उन महिलाओं की है जो प्रौढ़ हैं। घर−परिवार को सँभाल रही हैं किन्तु शिक्षा और चेतना से वंचित हैं। समय जिस तेजी से बदल रहा है—युग की माँग और पुकार जितनी तेज होती जा रही है उसे देखते हुए हमें वर्तमान को ही सबसे अधिक महत्व देना होगा। आज की समस्यायें आज सुलझानी पड़ेंगी। वर्तमान महिलाऐं तो जैसी हैं वैसी ही बनी रहें और दस−बीस वर्ष नई लड़कियाँ पढ़−लिखकर कुछ काम करेंगी इतनी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती; समय की पुकार को इतनी अधिक देर तक टाला नहीं जा सकता है। आज की समस्या हमें आज ही हल करनी चाहिए।

हमारा सारा ध्यान प्रौढ़ महिला जागरण पर केन्द्रित होना चाहिए और इसका श्रीगणेश तीसरे प्रहर चलने वाले विद्यालयों के माध्यम से आरम्भ करना चाहिए। हमारे घरों की कोई महिला इतनी शिक्षित और प्रभावशाली हो कि तीसरे प्रहर के तीन घण्टे निकाल कर उपरोक्त विद्यालय चला सके तो पूरा साहस एकत्रित करके हमें उन्हें आगे धकेलना चाहिए। घर−गृहस्थी का काम आमतौर से उस समय कम ही होता है। होता हो तो प्रयत्न करना चाहिए कि घर की दूसरी महिलायें उसे सँभाल लिया करें और जो इस संदर्भ में दिलचस्पी लेती हैं उन्हें तीन घण्टे का अवकाश इस परम पुनीत धर्म कार्य के लिए कृपा पूर्वक दे दिया करें। यह सहायता जो महिलायें कर दिया करेंगी—छुट्टी का समय देने और उनका काम स्वयं कर देने की कृपा किया करेंगी वे भी कम पुण्य की भागी न होंगी।

यों हर घर में चौका−चूल्हे का थोड़ा सा ही काम होता है, महिलायें कई होती है; वे चाहे तो एक महिला का पूरा कार्य भार अपने कन्धों पर ले सकती हैं और उसे अधिकाधिक समय सेवा कार्य के लिए दे सकती हैं। घर का वातावरण यदि हम ऐसा बना सके, घर की महिलाओं को इसके लिए सहमत कर सके, तो हम अपने−अपने घरों से ही एक−एक दो−दो ऐसी महिला कार्यकर्त्री निकाल सकते हैं जो भले ही पास−पड़ौस तक अपनी गति−विधियाँ सीमित रखें पर इतने से ही वे एक महान परम्परा का सञ्चालन कर सकती हैं और अगले दिनों उस उत्साह को दवानल की तरह फैलता हुआ देख सकती हैं। इस शुभारम्भ का अनुकरण निश्चित रूप से सर्वत्र होगा।

तलाश करें तो अपने घर में अथवा अखण्ड−ज्योति परिवार के किसी अन्य सदस्य के घर में ऐसी महिलायें मिल सकती हैं जो इस नारी−जागरण के लिए—शिक्षण व्यवस्था संचालन के लिए कुछ कर सकने की क्षमता से सम्पन्न हों उन्हें ढूँढ़ना और आगे लाना चाहिए। इतना किया जा सका तो समझना चाहिए कि आधी समस्या हल हो गई। ऐसी दो−चार महिलाओं की एक टोली गठित हो जाय और व मिल−जुलकर इस तीसरे प्रहर के समय का सदुपयोग महिला जागरण के लिए करने का निश्चय करलें तो समझना चाहिए अपने कर्तव्य का एक महत्वपूर्ण भाग हमने पूरा कर लिया। इस टोली निर्माण का सूत्र संचालन हमें ही करना चाहिए। नर द्वारा नारी को जो सहस्रों वर्षों से सताया जाता रहा है उसका प्रायश्चित्त भी हो तो आखिर हमें ही करना है।

इस टोली का नाम महिला युग−निर्माण शाखा रख जा सकता है। उसका प्रमुख कार्य एक प्रौढ़ महिला विद्यालय चलाना है। इसके लिए अपने लोगों में से भी किसी सदस्य का एक कमरा तीसरे प्रहर प्रयोग करने लिए माँग लेना चाहिए। टोली को घर-घर भेजना चाहिए कि मुहल्ले पड़ौस में संपर्क बनाने जाया करे और उतावली में एक बारगी ही सफलता की आशा न करे−धीरे−धीरे थोड़ा−थोड़ा करके यह प्रसंग चलाया करे इस आरम्भ होने वाले विद्यालय में उस घर की भी कोई प्रौढ़ महिला पढ़ने आया करे। यह कार्य देखने में सरल है पर व्यवहार में बहुत कठिन है। रूढ़िवादी बुढ़ियायें होगा कि कोई बाहर की शिक्षित महिला उनके घर में प्रवेश करे और न वे यह चाहते हैं कि कोई घर की औरत देहरी से बाहर पैर रखे। शिक्षा की—स्वावलम्बन की—सुधार की बात सुनते ही उन्हें जूड़ी चढ़ती है। यह सारे दोष यदि रूढ़िवादिता में न होते वह मानवी प्रगति के लिए अभिशाप न होती तो हमें क्यों उसे विरोध में खड़ा होना होता।

इस विद्यालय के लिए छात्राएँ जुटाना टेड़ी खीर है। फिर भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, अपने निज के घरों की—अखण्ड−ज्योति परिवार के, उनके संपर्क के लोगों के परिवारों की महिलायें जुटाने का प्रयत्न करना चाहिए। चार छै ही सही—आरम्भ तो उनसे भी हो सकता है। संख्या वृद्धि पीछे क्रमशः ही होगी। समझाने बुझाने का क्रम धीरे−धीरे चालू रखना चाहिए। जहाँ से पहली बार स्पष्ट इनकार का उत्तर मिला था उनसे न तो निराश होना चाहिए और न बुरा मानना चाहिए। हँसते−हँसाते वातावरण में जब तब उस प्रसंग की चर्चा करते रहने से कल नहीं तो परसों इस दिशा में सफलता मिलती चलेगी और शिक्षार्थी महिलाओं की संख्या बढ़ती चलेगी।

प्रौढ़ महिला प्रशिक्षण के चार विभाग हैं (1) साक्षरता—माध्यमिक शिक्षा जितनी योग्यता उत्पन्न करने वाला पाठ्यक्रम (2) गृह शिल्प—सिलाई प्रमुख रूप से और कढ़ाई, बुनाई, घुलाई, रँगाई, साबुन बनाना, मोमबत्ती, तरह−तरह की स्याहियाँ, सुगन्धित तेल, खुशबूदार शरबत, घर में टोकरी तथा गमलों में शाक−भाजी उगाना, बिस्कुट, डबल रोटी, लेमजूस, टॉफी आदि बनाना। घर की प्रत्येक टूट−फूट की मरम्मत करके व्यर्थ बर्बाद होने वाली वस्तुओं को काम में आने योग्य बनाना, चारपाई बुनना आदि सरल उद्योग सिखाये जाँय। जहाँ सुविधा हो वहाँ तरह−तरह के अति सुन्दर और सस्ते खिलौने बनाना, जैसे गृह उद्योगों का आरम्भ करना। यह अभी उद्योग ऐसे हैं जिन्हें सीखकर कोई भी महिला आजीविका वृद्धि का नया द्वार खोल सकती है। (3) घर−गृहस्थी में काम आ सकने एवं भावनायें उत्पन्न करने जैसा सुगम संगीत (4) जीवन जीने की कला—स्वास्थ्य संरक्षण, परिवार व्यवस्था बनाना, सामाजिक समस्याओं और उनके समाधानों की जानकारी—धार्मिकता और आस्तिकता का यथार्थ स्वरूप, कर्तव्यपालन का व्यावहारिक मार्ग, लोक−जीवन के विभिन्न विषयों का सामान्य ज्ञान, आदि अनेक विषय जीवन जीने की कला के अंतर्गत आते हैं उन सभी की सामान्य जानकारी।

इन चार विषयों को लेकर चलने वाले महिला प्रौढ़ विद्यालयों का प्रशिक्षण एक वर्ष का रखा जा सकता है। इतने समय में कोई सामान्य स्तर की अशिक्षित किन्तु उत्साही महिला आसानी से उपरोक्त पाठ्यक्रम पूरा कर सकती हैं।

इन चारों धाराओं का ही अपना−अपना महत्व है। शिल्प वाली बात सामान्य लोगों को अधिक आकर्षक लगेगी क्योंकि उसमें आर्थिक लाभ की बात स्पष्ट दीखती है। सिलाई जानने वाली महिला अपने घर में अच्छी−खासी बचत कर सकती है। पुराने कपड़ों को काट−छाँट कर छोटे−छोटे नये बना लेने की बात ही यदि चल पड़े तो उससे ढेरों पैसे की बचत हो सकती है। बर्तनों की, फर्नीचरों की, मकान की टूट−फूट सुधारना उन्हें सुसज्जित रखना ही यदि आ जाय तो घर कितना अच्छा दिखाई पड़ेगा। शाक−भाजी बोने उगाने की कला का उपयोग घर आँगन में ही हो सकता है और उतने से ही भोजन की पौष्टिकता तथा आर्थिक बचत में चार चाँद लग सकते हैं।

इन बातों का महत्व समझाकर प्रौढ़ महिलाओं को इन विद्यालयों की ओर आसानी से आकर्षित किया जा सकता है। प्रशिक्षण का मूल उद्देश्य है विचार क्रान्ति। जीवनोत्कर्ष के लिए आवश्यक प्रकाश का उनकी मनोभूमि में प्रवेश कराना। जीवन−जीने की कला वाले पक्ष में इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरी−पूरी गुंजाइश है। शिक्षार्थी का सच्चे अर्थों में उन सबसे हित साधन होता है साथ ही महिला जागरण का अपना प्रयोजन भी पूरा होता है जा महिला एक साल तक मिशन के प्रकाश में विविध−विधि प्रेरणायें प्राप्त करती रही है निश्चित रूप से उसका स्तर सुविकसित होगा। उसका दृष्टिकोण एवं क्रिया−कलाप उस दिन की अपेक्षा काफी ऊंचा उठ चुका होगा; जिस दिन कि उसने इस विद्यालय में प्रवेश कि या था। इन्हीं प्रशिक्षित महिलाओं का वर्ग अपनी महिला युग−निर्माण शाखाओं का अंग बनता चला जायगा। दूसरी प्रभावशाली महिलायें भी उसकी ओर आकर्षित होंगी और सम्मिलित होती चली जायेंगी।

उपरोक्त विद्यालयों की स्थापना को हमें प्रमुखता देनी चाहिए। पर उसी तक महिला जागरण का कार्य समाप्त नहीं हो जाता। उनके लिए साप्ताहिक सत्संगों—भजन कीर्तनों, प्रवचनों का क्रम चलना ही चाहिए। जिससे बड़ी संख्या में महिलायें सम्मिलित होती रहें और नव जागरण के प्रकाश से लाभान्वित होती रहें। ऐसा पुस्तकालय चलना चाहिए जो महिला जीवन से—परिवार व्यवस्था से सम्बन्धित सभी समस्याओं पर प्रकाश डालने वाली पुस्तकों से भरा−पूरा हो। इसके द्वारा घर−घर पुस्तकें पहुँचाने और वापिस मँगाने का कार्यक्रम चले। सत्संग और पुस्तकालय संचालक भी महिला युग−निर्माण शाखाओं के महत्वपूर्ण अंग रहेंगे यों उनका प्रधान कार्य प्रौढ़ महिला विद्यालयों का सञ्चालन होगा। साथ में यों यह कार्य भी जुड़े रहेंगे तो गंगा, यमुना, सरस्वती के सम्मिलित से बनने वाली त्रिवेणी की तरह महिला जागरण अभियान की पुण्य धारा का प्रवाह अपने देश में ऐसी भव्य चेतना उत्पन्न करेगा जिसकी कल्पना कर सकना भी आज की स्थिति में कठिन है।

यह त्रिविध कार्यक्रम जो महिलायें चला सकेंगी उन से यह आशा की जा सकेगी कि वे नवनिर्माण की सर्वतोमुखी क्राँति के विभिन्न मोर्चों को सँभालने के लिए सशक्त अधिकारिणी बन गई। महिला जागरण के अभियान की आगे बढ़ाने के लिए हमें अपने घरों की, मित्र−सम्बन्धियों की महिलाओं को कार्यक्षेत्र में उतारना है और उनसे एक प्रौढ़ विद्यालय की स्थापना करनी है साथ ही सत्संग एवं पुस्तकालय की प्रक्रिया आरम्भ करनी है। आज हम इतनी सीमा तक ही सोचें और उसे करने के लिए तत्परता दिखायें तो यह भी कम महत्वपूर्ण—कम साहस का—कम सराहनीय कदम नहीं है। पुरुषों को इस अभियान का पूरी दिलचस्पी के साथ सूत्र संचालन करना चाहिए किन्तु अग्रिम पंक्ति में या कार्यक्षेत्र में उत्साही एवं सुयोग्य महिलाओं को ही उतारना चाहिए।

हमारे घरों की बहुयें, वयस्क बेटियाँ इस कार्य में उत्साहपूर्वक भाग ले सकती हैं। जो लड़कियाँ अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकीं किन्तु शादी का सुयोग न बनने से घरों में बैठीं व्यर्थ ही समय काट रही हैं वे इस प्रयोजन के लिए सर्वोत्तम माध्यम हो सकती हैं। घर से बाहर न निकलने देने के बन्धन लगाकर उन्हें और भी अधिक कुण्ठाग्रस्त करना—सरासर अन्याय है। जहाँ ऐसी शिक्षित लड़कियाँ मिल सकें वहाँ उन्हें भी उत्साह देकर—उनके घर वालों को समझा−बुझा कर यह महत्वपूर्ण सेवा करने का सुयोग बनाना चाहिए। हमने कभी इस दिशा में सोचा ही नहीं यदि परिजनों का ध्यान इस ओर मुड़े और वे सच्चे मन से दिलचस्पी लेना आरम्भ करें तो हर क्षेत्र में महिला युगनिर्माण शाखायें स्थापित हो सकती हैं और उपरोक्त त्रिविधि चेतना प्रक्रिया हर जगह आरम्भ हो सकती है। समय आ गया कि अखण्ड−ज्योति परिवार का हर सदस्य इस दिशा में कुछ सोचे कुछ साहस एकत्रित करे और कुछ क्रियात्मक कदम उठाये। युग की पुकार को पूरा करने के लिए हमें इतनी भूमिका तो निबाहनी ही चाहिए।

महिला जागरण के लिए कार्य करने वाली विभूतियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था शान्ति कुञ्ज में की गई है। पिछले अंक में तथा इस अंक में ऐसी महिलाओं के प्रशिक्षण की व्यवस्था की सूचना छपी है जिनके ऊपर पारिवारिक उत्तरदायित्व नहीं है और जो अपना पूरा समय इस महान प्रयोजन के लिए लगा सकने की स्थिति में हैं। ऐसी सुशिक्षित एवं सुयोग्य महिलाओं की आज अत्यधिक आवश्यकता है।

इनके अतिरिक्त ऐसी महिलाओं के प्रशिक्षण की भी आवश्यकता समझी गई जो पारिवारिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त नहीं हुई हैं पर स्थानीय महिला जागरण के लिए प्रसन्नतापूर्वक तीन घंटे का समय लगाती रह सकती हैं। इन्हें विद्यालय संचालन के लिए निर्धारित चार प्रकार के पाठ्यक्रम को चलाने की योग्यता होनी चाहिए। संगठन, सत्संग और पुस्तकालय व्यवस्था चला सकने की—कुछ प्रवचन कर सकने की भी क्षमता जिनमें हो।

यह योग्यता शिक्षित एवं सेवाभावी महिलाओं में भी नहीं होती। इसके बिना वे इच्छा रहते हुए भी कुछ विशेष कार्य नहीं कर सकतीं। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए शान्ति कुञ्ज में इन कार्य−कर्त्रियों के लिए भी चार−चार महीने की शिक्षण व्यवस्था इस वर्ष 1 जुलाई से ही आरम्भ की जा रही है। पहला सत्र जुलाई, अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर में। दूसरा नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फरवरी में और तीसरा मार्च, अप्रैल, मई, जून, में होगा। अभी एक वर्ष का ही कार्यक्रम घोषित किया गया है। आवश्यकतानुसार इस प्रक्रिया को आगे भी चलाया जाता रहेगा।

हमारे परिवारों की सेवाभावी एवं कम से कम आठवें दर्जे तक की शिक्षा योग्यता वाली महिलायें इस प्रशिक्षण के लिए भेजी जानी चाहिये। उनका शरीर से स्वस्थ, प्रखर बुद्धि एवं सरल स्वभाव होना आवश्यक है। शरीर से रुग्ण, मंद बुद्धि एवं झगड़ालू, आलसी प्रवृत्ति की शिक्षार्थी नहीं ली जायेंगी। बच्चे जिनके बड़े हो गये हैं घर पर रह सकते हैं उन्हें ही आना चाहिए। छोटे बच्चे साथ लेकर आने की आज्ञा किसी को भी नहीं मिलेगी। पारिवारिक उत्तरदायित्वों से बच्चों की जिम्मेदारी से हल्की महिलाओं को प्राथमिकता दी जायगी।

चार महीने में उन्हें (1) शिल्प उद्योगों के वे सभी विषय जो महिला प्रशिक्षण में सम्मिलित हैं (2) सुगम संगीत (3) जीवन विद्या (4) साक्षरता पाठ्यक्रम के चारों वर्ग इस सीमा तक सिखा दिये जायेंगे कि वे अपना स्थानीय विद्यालय एक कुशल अध्यापिका की तरह चला सकें। साथ ही संगठन, सत्संग, पुस्तकालय आदि के संचालन की व्यावहारिक कुशलता एवं प्रवचन क्षमता भी उनमें उत्पन्न कर दी जायेंगी। यह शिक्षा न केवल समाज सेवा की दृष्टि से वरन् व्यक्ति गत योग्यता एवं प्रतिभा के विकास की दृष्टि से भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। जो यह पाठ्यक्रम पूरा करके जायेंगी वे अनुभव करेंगी कि उनने इतना सीख लिया जो तथाकथित ग्रेजुएट महिलाओं की तुलना में कही अधिक उपयोगी और व्यावहारिक है। इस चार महीने के शिक्षण को प्राप्त करने वाली महिला कम से कम अपने निजी जीवन में इतनी सुयोग्य हो सकेंगी कि अपने घर परिवार को सँभालने में एक सन्तोषजनक भूमिका सम्पन्न कर सकें। जिन वयस्क लड़कियों की शिक्षा समाप्त हो गई है और जो घर पर बेकार बैठी हैं उनके लिए भी तो यह प्रशिक्षण और भी अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

स्थान बहुत ही सीमित हैं। एक सत्र में 25 से अधिक महिला शिक्षार्थियों की व्यवस्था नहीं जुटाई जा सकेगी। अस्तु जिन्हें भेजा जाना हो उनका पूरा परिचय भेजते हुए जल्दी ही स्वीकृति प्राप्त कर लेनी चाहिए। देर से आवेदन−पत्र भेजने वालों को पीछे के किसी सत्र में स्थान प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। शिक्षार्थी महिलाओं के सम्बन्ध में निम्न दस विवरणों सहित आवेदन−पत्र भेजा जाना चाहिए (1) पूरा नाम (2) पूरा पता (3) आयु (4) शिक्षा (5) स्वास्थ्य (6) परिवार के सदस्यों का परिचय (6) विवाहित या अविवाहित। (7) पिछले दिनों कुछ सार्वजनिक सेवा की हो तो उस अनुभव का विवरण (8) इन दिनों जो उत्तरदायित्वों कन्धे पर हो उसका विवरण (9) सिलाई, संगीत आदि की पूर्व जानकारी (10) महिला जागरण के लिए भविष्य में कुछ करने की आकाँक्षा।

शान्ति कुञ्ज में चल रही प्रशिक्षण व्यवस्था में रह एक और नया अध्याय जुड़ता है कि जो पारिवारिक उत्तरदायित्वों से पूर्ण निवृत्त तो नहीं है केवल महिला जागरण के लिए तीसरे प्रहर का तीन घंटे समय लगाते रह सकने की स्थिति में हैं उनके लिए भी चार−चार महीने का शिक्षा व्यवस्था का क्रम आरम्भ किया जा रहा है। अखण्ड−ज्योति परिजन अगले दिनों अपने महिला जागरण अभियान के लिए जो महत्वपूर्ण कदम उठाने वाले हैं उनमें यह अतिरिक्त शिक्षण व्यवस्था अतीव उपयोगी सिद्ध होगी ऐसा विश्वास है। हमें अपने घर−परिवारों की महिलाओं को इस प्रशिक्षण में प्रशिक्षित करने और अपने क्षेत्र में इन प्रयासों को अग्रगामी बनाने के लिए पहल करनी चाहिए।


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