गुलाब का पौधा किसी राजनीतिज्ञ के पास पहुँचा और पूछा—वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका क्या है?
राजनीतिज्ञ ने बताया—भौतिकवादी बनो। यह साबित करो कि तुम उसे मजा चखा लौटता। इससे उसे घृणा ही मिली, वर्चस्व की छाया भी हाथ न लगी।
खिन्न मन गुलाब एक दिन किसी सन्त के पास पहुँचा और वही वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका पूछने वाला प्रश्न दुहराया।
सन्त ने कहा—हँसो और हँसाओ। सौंदर्य बढ़ाओ और सुगन्ध फैलाओ।
गुलाब ने सुरभित फूल उगाये और उसका मनोरथ पूरा हो गया।
पड़ौस में उगे पौधों ने गुलाब से पूछा—बन्धु, तुमने वर्चस्व प्राप्त करने का रास्ता पा लिया हो तो हमें भी बताओ। राजनेता और सन्त के परामर्शों का निष्कर्ष सुनाओ।
गुलाब ने अपने स्वरूप और क्रिया−कलाप के पृष्ठ उलट कर उन्हें दिखाये और कहा—सही तो संत थे, पर
राजनीतिज्ञ को भी गलत कहना कठिन है