जापान की जनश्रुतियों में सत्रहवीं सदी के महाप्रेत सोगोरो की कथा एक ऐतिहासिक तथ्य की तरह सम्मिलित हो गई है और अनाचार बरतने वालों को अक्सर वह घटना−क्रम इसलिए सुनाया जाता रहता है कि वे अनीति से बाज आये।
जापान उन दिनों सामन्ती जागीरों में बटा हुआ था। राजधानी तो यदो नगरी थी पर जागीरदार अपने−अपने छोटे ठिकानों से राज−काज चलाते थे। ऐसा ही एक ठिकाना था शिरोसा प्राप्त का साकूरागढ़। इसका एक सामन्त था—कोत्सुके। उसने प्रजा पर अत्यधिक कर लगाये और किसानों पर इतने ्रजुल्म ढाये कि वे त्राहि−त्राहि कर उठे। अन्ततः 136 गाँवों के किसानों ने मिल कर अपना दुखड़ा जागीरदार के कानों तक पहुँचने का निश्चय किया। वे सोचते थे शायद छोटे कर्मचारी उन्हें सताते हैं। सामन्त को बात मालूम पड़ेगी तो वह उनकी पुकार सुनेगा। इस विचार से वे उनके प्रतिनिधि साकूरा चल पड़े। उनका जत्येदार था 48 वर्षीय सोगोरो। उन लोगों ने लम्बी अर्जी लिखी। और प्रयत्न किया कि उसे जागीरदार को दें। अधिकारियों ने उन्हें भेंट करने की इजाजत नहीं दी। और को पढ़कर वापिस लौटा दिया। इतने पर भी उसने हिम्मत नहीं छोड़ी और जब सामन्त अपने गढ़ में प्रवेश का रहा था तो उसकी बग्घी रोक कर अर्जी हाथ में थमा ही दी। वहाँ भी उसे रद्द कर दिया गया। अन्य किसानों को तो वापिस लौटा दिया गया पर सोगोरों एक सराय में ठहरा ही रहा और उसने जापान सम्राट् तक किसानों की दुखगाथा पहुँचाने का निश्चय किया। संयोग वश सम्राट् अपने पूर्वजों की समाधि पर पूजा करने के लिए वहाँ आने वाले थे। कृषक मुखिया ने यह अच्छा अवसर समझा और उस अर्जी की नकल सम्राट् का भी रास्ता रोक का उनके हाथ में थमा दी।
परिणाम तो कुछ नहीं निकला पर सामन्त ने सोगोरो को गिरफ्तार करा लिया। उन पर शासकों के विरुद्ध धृष्टता बरतने और षड़यन्त्र करने का मुकदमा चलाया गया। दण् में केवल उसे वरन् उसके सारे परिवार को कत्ल कर देने का आदेश सुनाया गया। जन−समूह की उपस्थिति में 48 वर्षीय सोगोरो उसकी 38 वर्षीय पत्नी मिन, 13 वर्षीय पुत्र जेन्नोसूके, 10 वर्षीय पुत्र सोहैयी, 7 वर्षीय पुत्र किहावी का सिर धड़ से उड़ा दिया गया। दर्शक कलेजा थाम कर इस कुकृत्य को देखते रह गये।
लाशें दफना दी गई पर वातावरण में न जाने कैसा भयंकर उभार आया कि सर्वत्र एक आग और घुटने अनुभव की जाने लगी। शासकों को विचित्र भयानकता ने घेर लिया। तीसरे ही दिन सुधार घोषणाएँ हुई। किसानों पर अत्याचार की जाँच आरम्भ हुई। और साकूरागढ़ के समस्त सलाहकार, चार जिलों के शासनाध्यक्ष, बाईस अफसर,सात न्यायाधीश तीन लेखा परीक्षक बर्खास्त कर दिये और किसानों पर से समस्त बढ़े हुए कर तथा लगे हुए प्रतिबन्ध उठा लिये गये।
ऐसा विचित्र परिवर्तन कैसे हुआ? सामन्त यकायक कैसे बदल गया? यह सब आश्चर्य का विषय था पर जानने वाले कहते थे सोगोरो का प्रेत इस बुरी तरह राज्य परिवार के पीछे पड़ा है कि अब उन्हें किसी प्रकार अपनी खैर दिखाई नहीं पड़ती। सामन्त कोत्सुके नोसूके और उसकी पत्नी सोते जागते भयंकर प्रेत छाया को अपने चारों ओर अट्टहास करते हुए देखते और अनुभव करते उन्हें अब तो मृत्यु का ग्रास बनाना ही पड़ेगा। नंगी तलवार पहरा बिठाया गया, ओझा—तान्त्रिक बुलाये गये पर पड़ी और चारपाई पर से उसकी लाश ही उठी। वह स्वयं विक्षिप्त सा रहने लगा। एक अवसर पर राजधानी याहीशी में सभी सामन्त सम्राट् को वार्षिक भेंट देने के लिए उपस्थित हुए थे। इनमें से साकेयी के साथ कोत्सुके की झड़प हो गई उसने आव गिना न ताव झट तलवार चला दी और उसकी हत्या कर दी। इसके बाद वह जान बचा कर भागा और अपनी गढ़ी में आ छिपा। सम्राट् ने पाँच हजार सैनिक भेजकर उसकी गढ़ी पर कब्जा कर लिया बुलाया। जहाँ उसका शिर उसी तरह उड़ाया गया जैसा कि सोगोरो का उड़ाया गया था।
अनीति पूर्वक सताने वालों को इस घटनाक्रम को सुनाकर यह शिक्षा दी जाती है कि दुर्बल को सताने वाला यह न समझे कि वह सर्व समर्थ है। अन्याय के प्रति विद्रोह की आग इतनी प्रचण्ड होती है और अत्याचारी को उसके कुकृत्य का मजा चखा सकती है।