जादू अविकसित मस्तिष्कों का शोषक

June 1974

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अविकसित मस्तिष्क का यह अभिशाप है कि वह बालकों की तरह अद्भुत और अचंभे की वस्तुओं से अत्यधिक प्रभावित होता है। प्राचीनकाल में जादू के बल पर ही चतुर लोग सामान्य जनता को अपने चँगुल में जकड़ते थे। चमत्कारों से चकित और दैवी प्रकोप से भयभीत करके उन अविकसित लोगों का बुरी तरह शोषण किया जाता था।

धार्मिक क्षेत्र में घुसकर बैठी हुई जादूगरी किस प्रकार पिछड़े लोगों के शोषण का कारण सिद्ध होती रही है इसका एक छोटा सा उदाहरण अलजीरिया निवासियों के साथ प्रयुक्त किया गया फ्राँसीसी राजनीतिज्ञों का जादू भी था।

अफ्रीका के एक पिछड़े हुए देश अलजीरिया पर फ्राँस का कब्जा था। जिन दिनों भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध अलजीरियनों ने भी विद्रोह खड़ा कर दिया। विद्रोह बहुत भयंकर था। फ्राँस वालों के पैर उखड़ने लगे।

अलजीरिया अपने अन्ध−विश्वासों के लिए प्रसिद्ध था। वहाँ भूत−पिशाच, जादू, टोना का पूरा जोर था। ओझा और तान्त्रिक उस देश के निवासियों पर पूरी तरह छाये हुए थे, उन्हीं की तूती बोलती थी। इन्हीं के प्रोत्साहन पर विद्रोह उभरा था और वहाँ के लोग यह विश्वास करते थे कि जादू के ओर से फ्राँसीसियों को उखाड़ फेंका जा सकेगा। इसलिए वे पूरे आवेश और उत्साह के साथ लड़ रहे थे। फ्रांसीसियों के लिए इस आग का मुकाबला कर सकना बहुत कठिन पड़ रहा था।

फ्रांसीसियों को एक तरकीब सूझी उन्होंने अपने देश के एक जादूगर को पटाया। उनका नाम था राबर्ट होडिन। वह अलजीरिया पहुंचा और एक से एक अचम्भे में डालने वाले कारनामे दिखायें। उसने एक हलके बक्से को स्वयं उठाकर दिखाया और दूसरों से भी उठवाया वह सचमुच बहुत हलका था। इसके बाद उसने कुछ उस देश के प्रमुख ओझाओं से कहा वे उस बक्से को उठाकर दिखायें। सारा जोर लगा कर भी वे उसे उठा न सकें। इस पर सभी कबीलों में अफवाह फैल गई कि फ्रांसीसी जादूगर बहुत ही जबरदस्त हैं जादूगर आया है और उसने अपने देश के भूतों को मार कर भगा दिया है। बस इतनी भर अफवाह से विद्रोह समाप्त हो गया हो और डर के मारे सभी ने हथियार डालकर आत्म समर्पण कर दिया।

जादूगर ने किया यह था कि लोहे के पेंदे वाले बक्सों दोनों चिपक कर इतने सघन हो गये कि बहुत ताकत लगाने पर भी उन ओझाओं के लिए उठा सकना सम्भव न हो सका। दर्शक दिन−दिन अधिकाधिक संख्या में बढ़ते रहे। देखे हुए अचम्भे भरें कारनामों की अफवाह इन दर्शकों के द्वारा तेजी के साथ फैलती रही। होडिन अपने देश में मामूली नागरिकों की तरह रहता था और मामूली कपड़े पहनता था पर उसने अलजीरिया में जाकर अपनी पोशाक पहनता था पर उसने अलजीरिया में जाकर अपनी पोशाक बिलकुल तांत्रिकों जैसी बनाली और लगभग उन्हीं से मिलते जुलते हड्डियों से बने उपकरण धारण कर लिये।

इस प्रकार विद्रोह समाप्त ही नहीं हुआ अन्ध−विश्वासी आदिवासी फ्रांसीसी सरकार के समर्थक भी बन गये। जो कार्य सैन्य बल से बहुत शक्ति खर्च करने पर भी सिद्ध नहीं हो रहा था, वह पिछड़े लोगों की मनोभूमि के साथ मनोवैज्ञानिक खिलवाड़ करके फ्राँसीसी सरकार ने सहज ही पूरा कर लिया।

आज भी अनेक व्यक्ति संत, महात्मा, ओझा, ताँत्रिक का अवतरण ओढ़े जादूगरी के अस्त्र का उपयोग करके अविकसित लोगों को अपने चँगुल में फँसाये रहने में सफल हो रहे हैं। न जाने कब तक हम इस अज्ञान से छूट कर यथार्थवादी दृष्टि प्राप्त कर सकने में सफल हो सकेंगे।


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