जहाँ मन निःशंक है और स्वाभिमान से माथा ऊँचा रहता है जहाँ ज्ञान नियुक्ति है, जहाँ वाणी सदा सत्य मूलक है जहाँ अथक उद्योग अपनी भुजायें पूर्णता की ओर प्रसारित करता है,जहाँ विवेक की निर्मल धारा मृत रूढ़ियों के शून्य मरुस्थल में विलुप्त नहीं हो गई है और जहाँ पिता! स्वतन्त्रता के ऐसे स्वर्ग स्थल में मेरा देश जागृत हो।