आशा आस्था और आत्मीयता की दिव्य उपलब्धियाँ

June 1974

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सेन्टपाल ने संसार के सबसे बड़े तीन सत्य बताये है−(1) आशा (2) आस्था (3) आत्मीयता। वे कहते थे जीवन का आनन्द केवल तभी तक है जब तक अब की अपेक्षा बड़ी सफलताएँ मिलने की आशा है। इसी प्रकाश दीप के सहारे जिन्दगी की लम्बी मंजिल पार की जा सकती है। जिसे भविष्य में कुछ करना नहीं है— कुछ पाना नहीं है। जिसके सामने किसी बड़े लक्ष्य की पूर्ति में लगाये रहने वाली योजना नहीं, समझना चाहिए वह मरणासन्न वृद्धावस्था में जा पहुँचा। वह इस प्रकार की हारी और अंधियारी जिन्दगी कितने ही दिनों क्यों न जी ली जाय वस्तुतः वह अपने आपकी लाश ढोने के बराबर है। जिसके सामने आँखों में चमक — मन में उत्साह और भुजाओं में पुरुषार्थ उत्पन्न करने वाला आशा भरा आलोक विद्यमान है, सच्चे अर्थों में जीवित तो उसी को कहा जा सकता है।

आशा की तरह ही जीवन का दूसरा तथ्य है— आस्था। जिसे अपने आप पर — अपने साहस एवं पौरुष पर विश्वास है उस आस्थावान के संकल्प प्रायः पूरे होकर ही रहते हैं। अनिश्चित और शंकाशील प्रकृति के लोग पूरे मन और पूरे श्रम के साथ देर तक किसी काम में लगे नहीं रह सकते एक के बाद दूसरा मनोरथ बदलना और बार−बार उन्हें छोड़ना अनास्था का प्रतीक है। ऐसे डाँवाडोल मनुष्य किसी लम्बी राह पर देर तक नहीं चल सकते। स्वल्प प्रयास में बड़ी सफलता की बाल बुद्धि के कारण उन पर उतावली छाई रहती है, छोटी−सी असफलता मिलने अथवा सोचे समय से अधिक समय लगने पर वे विलाप करने लगते हैं, इतने से व्यवधान उन्हें पर जैसे कष्टकारक दीखते हैं।

ऐसे लोगों को सदा दुर्भाग्य का ही रोना रोते रहना पड़ेगा। महत्वपूर्ण सफलताएँ तो उन्हें मिली हैं जिन्होंने रह अवरोध के बाद दूने उत्साह से काम करने का मनोबल सँजोकर रखा है। अनवरत प्रयास के बिना किसी के गले में विजन बैजंती नहीं पहनाई गई। धैर्य और साहस की ढाल तलवार पकड़े बिना जीवन संग्राम में कोई विजयी नहीं हुआ। आस्था ही व्यक्तित्व को प्रखर एवं प्रतिभाशाली बनाती है।

आत्मीयता का स्थान इन दोनों से ऊँचा है। उसकी शक्ति आशा एवं आस्था से भी बड़ी है। दूसरे को अपना समझना और उनके दुख−सुख में सच्चे मन से सहानुभूति रखना, योगदान देना एक ऐसा सद्गुण है जिसके आधार पर सुसंबद्ध व्यक्तियों का हृदय जीता जा सकता है− उन्हें अपना मित्र एवं सहयोगी बनाया जा सकता है। स्पष्ट है कि जिसे जितना सद्भाव एवं सहयोग उपलब्ध रहेगा वह उतना ही आगे बढ़ेगा, उतना ही प्रसन्नचित्त रहेगा।

आत्मीयता भरे उदार व्यवहार का नाम है प्रेम। प्रेम एक उच्चकोटि का सद्भाव है जो सेवा, सहायता एवं सत्प्रवृत्तियों के रूप में क्रियान्वित होता है। ऐसे आचरण से जहाँ दूसरे लोग मुग्ध होकर रहते हैं— भाव भरे श्रद्धा सम्मान सहित नत−मस्तक होते हैं वहाँ अपना अन्तःकरण भी कम सरस सद्भावनाओं को लाभ नहीं लेता। प्रेम जहाँ दूसरों को प्रमुदित करता है वहाँ अपने आपको भी कम आनन्द नहीं देता।

सेन्टपाल का यह प्रतिपादन सर्वथा सत्य है कि आशा आस्था और आत्मीयता से भरा मनुष्य सामान्य स्थिति में रहते हुए भी देव मानव की गणना में गिना जाने योग्य है।


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