42 पुत्र जो अन्ततः मंगलमय ही सिद्ध हुआ

June 1974

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नारवे के उपजाऊ इलाके में वह सबसे,खुशहाल किसान था। मामूली लोगों के बीच रहता और खेती −बाड़ी का साधारण सा काम करता, तो भी वह था महान्। भौतिक साधनों की दृष्टि से वह बड़ा नहीं था, पर सुदृढ़ सदाचार और परिमार्जित अन्तःकरण के कारण उसकी माहनता धीलियम पद्धति के समान उच्च और वेरिस हिम प्रदेश की भाँति श्वेत थी। उस किसान का नाम था ‘थोर्ड ओवे रास ‘।

प्रभात की सुनहरी बेला में थोर्ड ने गिरजाघर में प्रवेश किया। पादरी ने उसके अभिवादन का उत्तर देते हुए सत्कार पूर्वक आसन दिया और शिष्टाचार के बाद आगमन का कारण पूछा।

किसान की मुख−मुद्रा प्रसन्नता से खिली जा रही थी। उसने कहा— “ मेरे घर पुत्र उत्पन्न हुआ है, बतलाइये उसे वपतिस्मा के लिए कब लाऊँ? “

पादरी ने वपतिस्मा का समय निश्चित करके पुत्र की प्राप्ति पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए उसे बधाई दी और आशीर्वाद दिया ‘ईश्वर करे यह बालक तुम्हारे लिए मंगल−कारक हो।’

नियत समय पर बालक का वपतिस्मा हुआ, पादरी को दक्षिणा मिली। सब लोग मंगल−गान करते हुए अपने घरों को लौट गये।

दिन जाते देर नहीं लगती। एक−एक सोलह वर्ष व्यतीत हो गये। थोर्ड आज फिर गिरजाघर पहुँचा।

पादरी ने उसे देखते ही पहिचान लिया और आवभगत करते हुए कहा−” मि. थोर्ड तुम्हारा शरीर निस्संदेह सोने की शिला जैसा है। सोलह वर्ष बीत गये तुम्हारे शरीर में एक भी परिवर्तन तो दिखाई नहीं देता।”

थोर्ड ने मुसकराते हुए कहा— ‘सो तो आपकी कृपा है पिताजी मैं अमीर नहीं हूँ, तो भी खुश रहता हूँ और आप यह तो जानते ही हैं कि प्रसन्न रहने वाला स्वस्थ ही रहता है।

और भी इधर−उधर की बातें होती रहीं,अन्त में किसान ने कहा— ‘ कल मेरे पुत्र का दीक्षा संस्कार आपको करवाना है, उसी के लिए निमंत्रण देने आया हूँ।’

पादरी ने कृतज्ञता पूर्वक उसे स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन दीक्षा हुई। दक्षिणा में दस डालर प्राप्त हुए पादरी ने वही आशीर्वाद फिर दुहराया− ‘ईश्वर करे बालक तुम्हें मंगल−कारक हो।’

दिन और बीते, आठ वर्ष का अरसा गुजरा, आज थोर्ड बहुत से साथियों के साथ हँसी के कहकहे लगाता हुआ गिरजा पहुँचा।

बिना आवभगत की प्रतीक्षा किये, थोर्ड ने दूर से ही अपना मन्तव्य कह सुनाया— पादरी साहब, मेरे लड़के का विवाह निश्चित हो गया है। यह देखिए भूरा टोप पहिने मि. गुडमेण्ड खड़े हुए है। इन्हीं की सुलक्षिणी पुत्री स्टोर्लिउन के साथ शादी हुई है।

पादरी और थोर्ड की घनिष्टता बढ़ी हुई थी। शादी के हर्ष समाचार से पादरी को हार्दिक प्रसन्नता हुई। उसने आगन्तुकों को एक छोटा −सा प्रीतिभोज दिया। आज प्रीतिभोज में मित्रों के बीच थोर्ड बहुत ही आनन्दिल हो रहा था, मानो सुरमित फुलवारी में गुलाबजल का फव्वारा चल रहा है।

शुभ मुहूर्त में विवाह होने का निश्चय होना था— पादरी ने संस्कार का दिन नियत कर दिया। एक−एक प्याला चाय और पी गई। तदुपरान्त विवाह की तैयारी की चर्चा करते हुए सब लोग विदा हो गये।

नियत दक्षिणा से तिगुनी पाकर पादरी बहुत प्रसन्न हुआ। उसने तीसरी बार अपने उसी पुराने आशीर्वाद को दुहराया−” ईश्वर करे यह बालक तुम्हारे लिए मंगल−कारक हो।”

विधि का विधान बड़ा विचित्र है। कभी−कभी रंग में भंग होने की बड़ी अप्रिय घटनाएँ घटित होती है, जिनसे बुद्धि विचलित हो जाती है और मनुष्य विह्वल हो जाता है।

दो सप्ताह भी व्यतीत न होने पाये थे कि एक भयंकर दुर्घटना घटित हो गई। उस दिन शान्त सन्ध्या में थोर्ड अपने पुत्र के साथ नाव में बैठकर झील को पार कर रहे थे। अचानक एक चट्टान से टकरा कर नाव उलट गई और दोनों उस अथाह जलराशि में निमग्न हो गये।पिता तो बच गया, पर पुत्र तैरने में कुशल न होने के कारण जल में गोते लेने लगा और कुछ ही क्षण में प्राण छोड़ दिया।

तैरती हुई लाश बाहर निकाली गई। छाती पर पत्थर रख कर पिता ने उसे देखा। आज से तीसरे दिन लड़के का विवाह होने वाला था, पर हाय! आज यह कैसा विवाह हो रहा है। घटनाक्रम बिलकुल पलट गया था, पर थोर्ड की मुख−मुद्रा नहीं बदली थी। हाहाकारी रोदन की घड़ियों में भी मुसकराहट को वह छाती से चिपकाये हुए था।

श्मशान में लाश पहुँचाई गई। अंत्येष्टि क्रिया का शान्ति पाठ करने के लिए पादरी आया। उसने घुटने टेक कर मृतात्मा की सद्गति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। क्रियाकाण्ड पूरा करके पादरी लौट रहा था। उसके होठ बन्द थे, फिर भी भीतर ही भीतर कोई थोर्ड को आशीर्वाद दे रहा था— ‘ईश्वर करे यह बालक तुम्हारे लिए मंगल−कारक हो।’

पुत्र के मृत्यु के उपरान्त पिता के हृदय में हाहाकारी तूफान उठने लगे। इन हाहाकारों न उसके हृदय को मथ डाला। इस मंथन ने उसके विचारों में बड़ा भारी परिवर्तन कर दिया। अब उसका दृष्टिकोण दार्शनिक बनने लगा। जीवन और मृत्यु की समस्या पर उसने नये सिरे से विचार आरम्भ किया। तत्व की शोध करते−करते उसने जाना कि नाशवान् वस्तुओं पर ममता बढ़ाने से ही संपूर्ण दुखों की सृष्टि होती है। मानव जीवन की उद्देश्य दुःखों को उत्पन्न करना और उनमें उलझें रहना नहीं, वरन् अपना और पराया कल्याण करते हुए दुख द्वंद्वों से छुटकारा पाना है।

दार्शनिकों की तरह आत्म तत्वों पर विचार करते हुए दिन पर दिन बीतने लगे। उसकी हँसी गम्भीर में परिणित होने लगी।

एक वर्ष बीता, पुत्र के श्राद्ध का दिन आ पहुँचा। राज भर वह किसी गम्भीर .गुत्थी को सुलझाने में लगा रहा। प्रातःकाल होते ही श्राद्ध का कर्मकाण्ड करने के लिए गिरजे में पहुँचा।

एक वर्ष बीता, पुत्र के श्राद्ध का दिन आ पहुँचा। राज भर वह किसी गम्भीर .गुत्थी को सुलझाने में लगा रहा। प्रातःकाल होते ही श्राद्ध का कर्मकाण्ड करने के लिए गिरजे में पहुँचा।

चाहता हूँ कि यह धन अज्ञान के बन्धनों में बँधे हुए कैदियों को ज्ञान का मुक्ति सन्देश देने के लिए लगाया जाय।

पादरी सुना करता था कि थोर्ड के किसान शरीर में देवदूत की आत्मा रहती है। आज उसने उसका दर्शन अपनी आँखों से कर लिया। पादरी का मस्तक उस देवता के सामने नत हो गया।

बाइबिल की पोथियाँ तैयार करने के लिए वह रुपया दे दिया गया। पादरी और थोर्ड पास−पास कुर्सियों पर मौन भाव से बैठे थे। सहसा पादरी ने निस्तब्धता भंग करते हुए कहा— ‘मैं समझता हूँ कि आखिरकार वह पुत्र तुम्हारे लिए मंगल−कारक सिद्ध हुआ।’

थोर्ड की बड़ी−बड़ी आँखों से आँसुओं की दो बूँद ढुलक पड़ीं, उसने स्वीकृति सूचक शिर हिलाते हुए उत्तर दिया— ‘हाँ मैं भी ऐसा ही समझता।’


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