प्रेम के जागृत होने का यह अर्थ नहीं है कि हम मधुरता और सुख में ही विचरण करें। किन्तु इस जागृति से हममें उन वीरोचित प्रयत्नों का जागरण हो, जहाँ मृत्यु से जीवन को अमरता प्राप्त होती है और कष्ट−सहन के द्वारा वास्तविक आनन्द मिलता है।
—टैगोर